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- तिरुपति बालाजी.....
Posted by : achhiduniya
17 January 2015
श्रद्धा और आस्था के साथ श्रद्धालु
अपने सिर
के बालों को कटवाते हैं....
मित्रो प्रणाम ....यात्रा मे आज आपको ले चलते
है भारत के तिरुपति मंदिर सबसे वैभवशाली मंदिर यह दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश के चित्तूर
जिले में है। तिरुपति बालाजी मंदिर विश्व भर के हिंदुओं का प्रमुख वैष्णव तीर्थ है।
यह पूरी दुनिया में हिंदु धर्म का सबसे अधिक धनी मंदिर माना जाता है। सात पहाडों का
समूह शेषाचलम या वेंकटाचलम पर्वत श्रेणी की चोटी तिरुमाला पहाड पर तिरुपति मंदिर स्थित
है । तिरुमाला पहाड पूरी दुनिया में दूसरी सबसे प्राचीन चट्टानें मानी जाती है।
इसलिए
इसे तिरुपति बालाजी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसका इतिहास इस प्रकार है, तिरुमाला तिरुपति मंदिर का हिन्दु धर्म के अनेक पुराणों में अलग-अलग महत्व
बताया गया है। वाराह पुराण में वेंकटाचलम या तिरुमाला को आदि वराह क्षेत्र माना गया
है। वायु पुराण में तिरुपति क्षेत्र को भगवान विष्णु का वैकुंठ के बाद दूसरा सबसे प्रिय
निवास स्थान लिखा गया है। स्कंदपुराण में वर्णन है कि तिरुपति बालाजी का ध्यान मात्र
करने से व्यक्ति स्वयं के साथ उसकी अनेक पीढिय़ों का कल्याण हो जाता है और व विष्णुलोक
को पाता है।
इसी प्रकार भविष्यपुराण में उल्लेख है कि भगवान विष्णु को शयनकाल में महर्षि
भृगु ने आकर छाती पर पैर से आघात किया। इससे माता लक्ष्मी बहुत दु:खी होकर वहां से
चली गई। तब भगवान विष्णु भी देवी लक्ष्मी के चले जाने से दु:खी होकर पापों का नाश करने
वाले देवता के रुप में निवास करने लगे। ऐसी मान्यता है कि इसीलिए भगवान का नाम श्रीनिवास
हुआ। पुराणों की मान्यता है कि वेंकटम पर्वत वाहन गरुड द्वारा भूलोक में लाया गया भगवान
विष्णु का क्रीड़ास्थल है।
वैंकटम पर्वत शेषाचलम के नाम से भी जाना जाता है। शेषाचलम
को शेषनाग के अवतार के रुप में देखा जाता है। इसके सात पर्वत शेषनाग के फन माने जाते
है। वराह पुराण के अनुसार तिरुमलाई में पवित्र पुष्करिणी नदी के तट पर भगवान विष्णु
ने ही श्रीनिवास के रुप में अवतार लिया। भगवान
वेंकटेश को विष्णु का अवतार भी माना जाता है। भगवान विष्णु यहां वेंकटेश्वर,
श्रीनिवास और बालाजी नाम से प्रसिद्ध है। हिंदू धर्मावलंबी तिरुपति बालाजी
के दर्शन अपने जीवन का ऐसा महत्वपूर्ण पल मानते हैं, जो जीवन
को सकारात्मक दिशा देता है।
इस मंदिर की यात्रा कर श्रद्धालु स्वयं को धन्य मानते हैं।
देश-विदेश के हिंदू भक्त और श्रद्धालुगण यहां आकर यथाशक्ति दान करते हैं, जो धन, हीरे, सोने-चांदी के आभूषणों
के रुप में होता है। इस दान के पीछे भी प्राचीन मान्यताएं जुड़ी है। जिसके अनुसार भगवान
से जो कुछ भी मांगा जाता है, वह कामना पूरी हो जाती है। इसलिए
भक्तगण दिल खोलकर दान दान करते हैं। यहां पर होने वाला दान का मूल्य करोड़ों रुपयों
का होता है। माना जाता है कि दान की यह परंपरा विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय द्वारा
इस मंदिर में सोने-चांदी-हीरे के आभुषण का दान दिया था। उसी समय से भक्तगण इस मंदिर
को खूब दान देते आ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि अनेक लोग गलत तरीकों से कमाए धन का
कुछ हिस्सा दान कर मन की शांति और संतुष्टि पाते हैं, जो वास्तव
में पाप मुक्ति ही रुप है। श्रद्धालुओं की यह आस्था है कि तिरुपति बालाजी भी दु:खों,
कष्टों का अंत कर देते हैं। अनेक श्रद्धालु यहां आकर मनोकामनाओं को पूरा
करने और सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। मनोरथ पूरा होने पर भगवान की कृपा
मानकर श्रद्धा और आस्था के साथ श्रद्धालु अपने सिर के बालों को कटवाते हैं।
यहां प्रतिदिन
हजारों की संख्या में तीर्थयात्री मुण्डन कराते हैं। यहां मंदिरों में इन कटे बालों
से बहुत राजस्व मिलता है। साथ ही इनके निर्यात से विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है।
मुण्डन करने वाले लोगों का स्थानीय भाषा में तमिल मोत्ताई कहा जाता है। यह एक ऐसा तीर्थ
है जहां पर लाखों की संख्या में तीर्थयात्री निरंतर आते हैं। हर समय इस मंदिर में श्रद्धालुओं
का तांता लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर स्वयं ब्रहदेव भी रात्रि में
मंदिर के पट बंद होने पर अन्य देवताओं के साथ भगवान वेंकटेश की पूजा करते हैं।
भगवान
तिरुपति बालाजी की आरती प्रात: 7:30 से 12:00 बजे और सांय 6:00 बजे से रात्रि
10:30 के मध्य होती है। कैसे पहुंचे ....? वायु मार्ग - तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंचने के लिए प्रमुख हवाई अड्डे हैं
तिरुपति, हैदाराबाद, बैंगलोर और चेन्नई।
रेलमार्ग - रेलमार्ग से तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंचने के लिए प्रमुख रेल्वे स्टेशन
हैं - चेन्नई सेंट्रल, हैदराबाद, बैंगलोर,
तिरुपति और कुर्नूल। सड़क मार्ग - तिरुपति बालाजी सडक मार्ग से पहुंचने
के लिए प्रमुख स्टेशन में बैंगलोर, चेन्नई, हैदराबाद और कुर्नुल प्रमुख हैं।
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| यात्रा की हार्दिक शुभकामनाऍ...HAPPY JOURNEY...... |
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