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Posted by : achhiduniya
04 January 2015
तिल मात्र का भी पुनय नही…..
मित्रो प्रणाम....माँ –बाप घर परिवार मे उस
बगीचे या जंगल के उस बरगत के पेड़ की तरह होते है जिस पर परिंदे रैन बसेरा करते है। जो उन्हे धूप,वर्षा के पानी से बचाकर उन्हे आसरा देता है। माँ –बाप भी अपने बच्चो को उसी
पेड़ की तरह अपने से जोड़कर हर मुसीबत से बचाते है । उनकी छत्र छाया मे बच्चे अपने आप
को सुरक्षित और सहज महसूस करते है चाहे वह छोटे हो या बड़े बच्चे इसलिए कहते है दोस्तो
भूलो सभी को माँ –बाप को भूलो नही ,उपकार अनगिनत है इस बात को भूलो नही । पत्थर कई पूजे तुम्हारे जन्म के खातिर
अरे !पत्थर बनकर माँ –बाप की छाती के अरमान कुचलो नही। मुख का निवाला दे अरे! जिसने
तुम्हें बड़ा किया । अम्रत दिया जिसने तुमको जहर उनके लिए उगलो नही ।
कितने लड़ाए लाड़
सब अरमान भी पूरे किए ,पूरे करो अब अरमान उनके यह बात भूलो नही
।लाखो कमाते हो लेकिन माँ –बाप से ज्यादा नही । सेवा बिना सब राख है, मद मे कभी भूलो –फूलो नही। संतान की सेवा मिले,संतान
बनकर सेवा करो । जैसी करनी वैसी भरनी ,इस सत्य को भूलो नही ।आइये
आपको एक छोटी सी कहानी बाताते है , किसी गांव में एक ब्राह्मण
रहता था। एक बार किसी कार्यवश ब्राह्मण को किसी दूसरे गांव जाना था। उसकी मां ने उससे
कहा कि किसी को साथ ले लो क्योंकि रास्ता जंगल का है। ब्राह्मण ने कहा मां तुम डरो
नही, मैं अकेला ही चला जाऊंगा क्योंकि कोई साथी मिल नहीं रहा।
मां ने उसका यह निश्चय जानकर कि वह अकेले ही जा रहा है, पास की
नदी से एक केकड़ा पकड़ कर ले आई और बेटे को देते हुए बोली, बेटा,
अगर तुम्हारा वहां जाना आवश्यक है तो इस केकड़े को ही साथ के लिए ले
लो। एक से भले दो। यह तुम्हारा सहायक सिद्ध होगा। पहले तो ब्राह्मण को केकड़ा साथ ले
जाना अच्छा नहीं लगा। वह सोचने लगा कि केकड़ा मेरी क्या...? सहायता
कर सकता है। फिर मां की बात को आज्ञा रूप मान कर उसने पास पड़ी एक डिब्बी में केकड़े
को रख लिया। यह डिब्बी कपूर की थी। उसने इसको अपने झोले में डाल लिया और अपनी यात्रा
के लिए चल पड़ा। कुछ दूर जाने के बाद धूप काफी तेज हो गई। गर्मी और धूप से परेशान होकर
वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा।
पेड़ की ठंडी छाया में उसे जल्दी ही नींद भी आ गई।
उस पेड़ में कोटर में एक सांप भी रहता था। ब्राह्मण को सोता देख कर वह उसे डंसने के
लिए कोटर से बाहर निकला। जब वह ब्राह्मण के करीब आया तो उसे कपूर की सुगंध आने लगी।
वह ब्राह्मण के बजाय झोले में रखे केकड़े वाली डिब्बी की तरफ हो लिया। उसने जब डिब्बी
को खाने के लिए झपटा मारा तो डिब्बी टूट गई जिससे केकड़ा बाहर आ गया और डिब्बी सांप
के दांतों में अटक गई। केकड़े ने मौका पाकर सांप को गर्दन से पकड़ कर अपने तेज नाखूनों
से कस लिया। सांप वहीं पर ढेर हो गया। उधर नींद खुलने पर ब्राह्मण ने देखा कि पास में
ही सांप मरा पड़ा है।
उसके दांतों में डिबिया देखकर वह समझ गया कि इसे केकड़े ने ही
मारा है माँ की आज्ञा मान लेने के कारण आज
मेरे प्राणों की रक्षा हो गई, नहीं तो यह सांप मुझे जिंदा नहीं
छोड़ता इसलिए हमें अपने बड़े, माता-पिता और गुरुजनों की आज्ञा
का पालन जरूर करना चाहिए। सोकर स्वम गीले मे सुलाती थी तुम्हें सुखी जगह ,माँ की बरसती भावनाओ को कभी कुचलो नही । जिसने बिछाए फूल थे हरदम तुम्हारी
रहो मे उस रहबर के प्राण को कंटक बनकर कुचलो नही । धन तो मिलेगा फिर मगर माँ-बाप कहा
मिल पायेंगे,उनके चरण की धूल लेना तुम कभी भूलो नही। सुख चाहो
तो सुख दो ,दुख चाहो तो दुख दो ।
माँ-बाप की सेवा से ही ईश्वर
का आशीर्वाद प्राप्त होता है, वरना वह बेजान पत्थर की तरह होती
है। अगर जीवित आत्मा को दुखाकर आप तीर्थों पर ,मक्का मदीना या
चारो धामो की यात्रा पर भी जाएंगे तो तिल मात्र
का भी पुनय नही यह तो उस मनमसती की पिकनिक की तरह है जिसमे पैसे और समय की बरबादी के
सिवा कुछ भी नही । समय रहते उस ब्राह्मण की तरह माँ-बाप की सेवा करके उसका कहना मान
कर अपने जीवन को सुखमय और आनंदित कर ले ।





