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Posted by : achhiduniya
01 March 2015
लहरों से डरकर नौका पार नही
होती.... कोशिश
करने वालो की हार न्ही होती......
मित्रो प्रणाम.......हम आपको
किसी जंग या लड़ाई के लिए उत्साहित नही कर रहे बल्कि रोज मर्रा के जीवन मे आने वाली
छोटी-छोटी बाते हो सकती है जैसे हाल ही मे आए बजट के कारण कई लोगो के जीवन मे जैसे
अंधेरा छा गया हो मानो ज़िंदगी समाप्त हो गई। लेकिन इस तरह की बातो से [ बजट ] जीवन
मे कुछ फरक जरूर पड़ता है इसलिए हमे अपने सोच को सकारात्म रखते हुए आगे बडना चाहिए।
लहरों से डरकर नौका पार नही होती.... कोशिश करने वालो की हार न्ही होती......आदर्श
और नैतिकता से सिर्फ झोपड़ियां बनाई जा सकती हैं, महल खड़े नहीं हो सकते। इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ कि आज जैसे-जैसे
विकास के नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं, वैसे-वैसे आदर्श धूल-धूसरित हो रहे हैं। वस्तुत: हर दौर में अच्छे, ईमानदार और आदर्शवादी व्यक्ति मौजूद होते हैं।
अपने जीवन में जब भी
हम ऐसे गुणों का निर्वाह करते हैं तो इससे न केवल हमारे चेहरे पर संतुष्टि का भाव
झलकने लगता है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व में भी
उसकी गरिमा दिखाई पड़ती है। अच्छाई, ईमानदारी
और आदर्श आदि उदात्त गुणों के निर्वाह से हमारे चेहरे पर सकारात्मक भाव क्यों....? और कैसे....?
प्रकट हो जाते हैं, क्या...? इन भावों का हमारे स्वास्थ्य और विचारों से भी कोई संबंध है। अपने बीते हुए दिनों और घटनाओं पर जरा नजर डालिए। आपने भी अपने जीवन
में कई बार इन अच्छाइयों का परिचय दिया होगा। उस समय आपकी मनोदशा कैसी थी और उस
मनोदशा का आपके स्वास्थ्य और विचारों पर क्या....? प्रभाव पड़ा था।
निश्चित ही आपका उत्तर सकारात्मक
होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप या तो यह बात कह सकते हैं कि गुलाब में कांटे हैं
या इस पर खुश हो सकते हैं कि कांटों से भी गुलाब खिलते हैं। गिलास
आधा खाली है या इस उम्मीद से जीते है की गिलास आधा भरा है। यह तो आप पर निर्भर है की
आप परिस्थितियो को किस सोच के आधार पर लेते है। जब भी हम ईमानदारी से अपने
कर्तव्य का पालन करते हैं, किसी
की मदद करते है, तो उससे अपने भीतर हम संतोष
महसूस करते हैं। तब वही भाव हमारे चेहरे और विचारों पर भी झलकने लगता है। इससे
हमारे पूरे व्यक्तित्व में एक सकारात्मक परिवर्तन होता है। हमें अपना हर काम इस
तरह करना चाहिए।
जैसे हम सौ साल तक जीएंगे, पर ईश्वर से रोजाना प्रार्थना ऐसे करनी चाहिए, जैसे कल हमारी जिंदगी का आखिरी दिन हो। जब हम ईश्वर के प्रति इतने
पवित्र और परोपकारी बनकर प्रस्तुत होंगे, तभी जीवन को सार्थकता तक पहुंचा सकेंगे। वैसे भी अमीर वह नहीं है, जिसके पास सबसे ज्यादा दौलत है, बल्कि वह है, जिसे
और कुछ नहीं चाहिए।जिसके पास संतोष है।
जिंदगी
तो सभी जीते हैं, लेकिन इस संदर्भ में यह बात
मायने नहीं रखती कि आप कितना जीते हैं, बल्कि लोग इसी बात को ध्यान में रखते हैं कि आप किस तरह और कैसे जीते
हैं।सभी की मदद करते हुए आप एक तरफ मन मे खुशी के साथ लोगो की दुवाए और इज्जत
मुफ्त पाते है । तभी तो कहते हिम्मते [कोशिशे] मर्दा मददे खुदा।