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- श्री राम जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऍ.........
Posted by : achhiduniya
27 March 2015
मर्यादा
पुरुषोत्तम'… श्री राम ने जन्म लेकर
आसुरी शक्तियों का नाश किया...
चैत्र मास के
शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। इससे ठीक नौ दिन पहले गुढ़ी
पड़वा पर हिंदू नववर्ष का उत्सव मनाया जाता है। जिस तरह दशहरे से पहले नवरात्रि
मनाई जाती है, उसी तरह रामनवमी भी चैत्र नवरात्रि का अंतिम दिन हुआ
करता है। राम नवमी का हमारे लिए गहरा सांकेतिक महत्व है।
ये हमें आश्वासन देता है
कि जब कभी भी पृथ्वी पर अन्याय, शोषण और भय बढ़ेगा तब-तब राम
का जन्म [अवतरण] होगा। अन्याय-अत्याचार और कुरीतियों का अंत
करने के लिए हमेशा राम अवतार लेंगे। वाल्मीकि रामायण तथा पुराणादि ग्रंथों के अनुसार
वे आज से कई लाख वर्ष पहले त्रेता युग में हुए थे। पाश्चात्य विद्वान उनका समय ईसा
से कुछ ही हजार वर्ष पूर्व मानते हैं। श्री राम दैवीय शक्ति संपन्न राजा हुए हैं, लेकिन हमारे यहां श्री राम को आदर्श पुरुष की तरह पूजा जाता हैं।
रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था। श्री राम भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष के तौर पर स्थापित हैं। ये हमारी आस्था और परंपरा के प्रतीक हैं। श्री राम का जन्म पृथ्वी पर असुरों के नाश के उद्देश्य से हुआ है। जब पृथ्वी पर हर तरफ संघर्ष और भय का राज्य था, तभी श्री राम ने जन्म लेकर आसुरी शक्तियों का नाश किया।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम हिन्दू धर्म में विष्णु के 10 अवतारों में से एक हैं। श्री राम का जीवनकाल एवं पराक्रम, महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित, संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है। उनके उपर तुलसीदास ने भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस रचा था। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय माने जाते हैं। श्री राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे।
राम की पत्नी का नाम सीता था। जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती है। और इनके तीन भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान भगवान राम के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। श्री राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया। अनेक विद्वानों ने उन्हें 'मर्यादा पुरुषोत्तम' की संज्ञा दी है।
भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके। श्री राम न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।
श्री राम दीनों, असहायों, संतों और धर्मशीलों की रक्षा के लिए जो कार्य किए, आचार व्यवहार की जो परंपरा कायम की, सेवा और त्याग का जो उदाहरण प्रस्तुत किया तथा न्याय एवं सत्य की प्रतिष्ठा के लिए वे जिस तरह अनवरत प्रयत्नवान रहे, जिससे उन्हें भारत के जन-जन के मानस मंदिर में अत्यंत पवित्र और उच्च आसन पर आसीन कर दिया है।