Posted by : achhiduniya 20 March 2015

 मछली पर सवार देव...वरुण देवता.[जय झुलेलाल]

                  

भारत देश मे विभिन्न नदियो का संगम है उसी प्रकार भाषाओ के साथ ही संस्क्र्तियों का समावेश है। विभिन्नता मे एकता का प्रतीक भारत देश।  आज आपको उसी देश की एक भाषा जिसे पूरे विश्व मे सिन्धी समाज के रूप मे जाना जाता है। सिन्धी समाज के उदय और उनकी संसक्र्ती से अवगत कराएंगे। सिन्धी समाज के इष्ट देव झुलेलाल जी है।

सिंधु घाटी सभ्यता पर वर्तमान मे आर्य सभ्यता का प्रभाव पड़ा। हिन्दू शब्द सिन्धु का ही परिवर्तित रूप है।अत: आज के हिन्दू धर्म आर्य के समय से सिंध प्रांत से हुआ ऐसा कहना अतिशयोक्ति न होगा। आजादी के विभाजन के बाद सिंध प्रांत सिंधु नदी के पास पाकिस्तान मे स्थित है। इसी सभ्यता की देंन है वरुण देवता [श्री झुलेलाल] जी। 

इस धरती पर जब भी अत्याचार बड़े,धर्म की हानी हुई। तब-तब स्वयं ईश्वर ने अवतार धारण कर भक्तो की रक्षा की.....राम के रूप....रावण वध हो, कृष्णके रूप मे कंस वध हो, नरसिंह के रूप मे.....हिरण्या कश्यप वध हो। इसी प्रकार लगभग एक हजार त्रेसठ [1063] वर्ष पूर्व सिंध प्रांत की राजधानी ठठ्ठा नगर मे मिर्ख बादशाह का शासन था। 

उनके वजीर का नाम अह था। वजीर ने मिर्ख बादशाह को हिन्दू धर्म की प्रजा के खिलाफ कार्यवाही हेतु उकसाया,वजीर ने बादशाह को गलत जानकारी देकर धर्म परिवर्तन के लिए तथा प्रजा को जबरन इस्लाम धर्म कबूलने के लिए बादशाह से फरमान जारी करवाया जिसमे यह ऐलान करवाया गया की जनता इस्लाम धर्म स्वीकार करे अन्यथा उन्हे उनकी संपप्ती से बेदखल करके कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। 

इस फरमान के बाद जनता मे त्राही –त्राही मची। सभी ने मिलकर बुजुर्गो से चर्चा कर मिर्ख बादशाह से अनुरोध किया की हमे धर्म परिवर्तन करने के बारे मे सोचने का समय दे। बादशाह ने उन्हे सात दिनो का समय दिया और निश्चित हो गया की सात दिनो के बाद ये खुद ब खुद इस्लाम स्वीकार करेंगे क्योकि इनकी रक्षा कोई नही कर सकता। सिंध देश के हिन्दू वैदिक काल से ही जलपति वरुण की पूजा करते थे। उन्होने वरुण देव की शरण ली और सिंधु नदी के पावन तट पर इष्ट देव की पूजा शुरू करके लगातार सात दिन अखंड आराधना की।  

         

जिसके फल स्वरूप भक्तो की करुणा भरी पूजा से भगवान का दिल पसीज उठा एक दिन अचानक दरिया मे लहरों मे उथल पुथल हुई जिसमे से स्वंम वरुण देवता मछली पर सवार होकर जलपत के रूप मे दर्शन देकर सारी प्रजा व भक्तो को आश्वत किया कि मै स्वम धर्म कि रक्षा के लिए नरसरपुर मे ठकुर रतनराय के घर माता देवकी कि कोख से मनुष्य रूप मे अवतार लेकर सभी भक्तो का दुख दूर करूंगा। 

विक्रम सवंत 1007 ईस्वी सन 951 कि शुक्ल पक्ष चैत्र मास कि चंद्र तिथी पर शुक्रवार के दिन वरुण के रूप मे अवतार लिया। बालक का नाम उद्यचंद रखा गया। मिर्ख बदशाह को भी उनके अवतरित होने कि खबर लगते ही उन्होने वजीर को गुलाब के फूल मे विष डालकर कहा की जाओ और बालक के दर्शन करके किसी भी तरीके से यह फूल भेट करके सुंघाने का प्रयास करना जिससे बालक मूर्छित हो जाएगा। 

बादशाह का हुकुम मानकर वजीर बालक उदयचंद को देखने के लिए निकर पड़ा। वजीर ने जब बालक को देखा तो हैरान हो गया उसे अवतार मानने मे उसे कोई शंका नही लगी,क्योकि सभी को वह बालक रूप मे नजर आ रहा था, लेकिन वजीर को युवा अवस्था के शूरवीर रूप मे। वजीर एक तरफ उनसे प्रभावित भी हुआ और वही उसके मन मे खौफ भी पैदा हो गया। वजीर तुरंत ही बादशाह के पास आया और उसने बालक के बारे सारी जानकारी देकर समझाने का प्रयत्न करने लगा। प्रकर्ति के चमत्कार से बालक उदयचंद शीघ्र ही एक शूरवीर योद्धा मे परिवर्तित हो गया। 

नवयुवक के रूप मे उन्होने मिर्ख बादशाह को संदेश भिजवाया कि उन्हे अत्याचार व अमानवीय व्यवहार और ज़ोर जबर्दस्ती से धर्म परिवर्तन बंद करके धर्म निरपेक्षता का आचरण अपनाने कि सलाह दी। इस बात से नाराज मिर्ख बादशाह जो पूरी तरह से कट्टर इस्लामी था।  उसे बहुत गुस्सा आया और हमले कि तैयारी मे जुट गया। उदय चंद [वरुण देव अवतार ]भी अपनी सेना लेकर नीले घोड़े पे सवार होकर ठट्ठा नगर कि ओर चल पड़े, मिर्ख के बादशाह को युद्ध मे मात देकर घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। 

उदयचंद के रूप वरुण देव के चमत्कारी गुणो से प्रभावित होकर मिर्ख बादशाह अपने दुर्व्यवहार हेतु क्षमा याचना करने लगा। उन्हे अपना अनुयायी बनाने के लिए निवेदन करने लगा। उदयचंद के रूप वरुण देव ने उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान के उपदेश देकर सभी जाती, धर्म के भेद भाव से उठकर हिन्दू- मुस्लिम एकता व भाईचारे से रहने का उपदेश दिया। साथ ही भक्तो को आशीर्वाद भी दिया कि जो कोई भी मेरे जाने के बाद जल और ज्योति कि स्थापना करके पूजा करेगा उनकी सारी मनोकामना पूरी होगी। 

वैसे तो कोई भी धर्म बिना जल और ज्योती के नही चलता। सिन्धी समाज के इष्ट देव श्री झुलेलाल है। हिन्दू धर्म के भक्त आज भी जल और ज्योती के स्वरूप श्री अमरलाल, झुलेलाल, उडेरोलाल, लालसाई, पल्लेवारों आदि नामो से स्मरण करते है। प्रत्येक चैत्र मास कि दूज तिथी [चंद्रमा ] पर उनका जनम दिवस [चेट्री –चंद्र] और गुड़ी पड़वा सिंध-हिंद नव वर्ष के रूप मे देश विदेश मे धूम-धाम से मनाया जाता है।

सहकार्य–प्रस्तुतकर्ता:-नगर सेवक श्री सुरेश जगयासी[जरीपटका कांग्रेस कमेटी नागपुर]

 संकलन:- कीर्तनकार श्री प्रकाशलाल जी चेलानी ।                               

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