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- करोंगे डट के तो मिलेंगा कुछ हटके.......?
Posted by : achhiduniya
17 April 2015
काम
केवल इसलिए छोड़ देते हैं क्योंकि हमारे मन में उसके सफल होने की गारंटी नहीं होती.......
“अजगर करे न चाकरी पंक्षी करे
न काम, दास मलुका कह गए सब के दाता राम” अर्थातु:- इस संसार
मे पंक्षी कोई काम नही करते,अजगर जैसा विशाल काय साँप भी दिन
भर पड़ा रहता है वह किसी की चाकरी यानी नौकरी नही करता फिर भी इन सभी की प्रभु राम ही
संभाल करते है,उनके खाने पीने से लेकर सभी कुछ देते है।
लेकिन
गीता मे श्री कृष्ण जी कहते है:- -‘कर्मणेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।’ हे
अर्जुन तू कर्म कर फल की इच्छा मत कर वह मुझ पर [श्री कृष्ण] छोड़ दे। यह वचन श्री कृष्ण
ने अर्जुन से जरूर कहे लेकिन सभी मनुष्यो को ध्यान मे रखते हुए कहे क्योकि बेजुबान
प्राणी को कर्म करने की समझ नही होती उसके लिए पेट भरना [पालना] जरूरी होता है।
इंसान
को ईश्वर ने शक्ल के साथ अक्ल [ बुद्धी ] भी दी है जिससे वह अच्छे – बुरे मे फर्क समझ
सके और श्रेष्ठ कर्म कर सके सिर्फ पेट भरने और आजीविका तक ही सीमित ना रहे। अपने समाज
के प्रती भलाई व परोपकार भी करता चले।आइए श्री कृष्ण जी कुछ बातों पर गौर करके जीवन
मे कामयाबी और सफलता पाने का प्रयास करे। जब देखो तब डरते ही रहते
हो। काहे इतना डरते हो। सबसे बड़ा डर क्या है। मौत। लेकिन मौत से डरने की जरूरत
नहीं है।
मौत अस्थायी चीजों के साथ होने वाली एक सतत प्रक्रिया है। तुम साधारण
मनुष्य होकर मौत से डरते हो...उस सिपाही से पूछो जो रोज सीमा पर खड़ा होकर मौत को
चुनौती देता है। वो मरने से नहीं डरता क्योंकि वो जानता है कि उसका शरीर अस्थायी
है लेकिन देश की रक्षा का जज्बा स्थायी है। वो जज्बा कभी नहीं मरता। एक बार सोचो कि अगर
तुम्हारे दिमाग और दिल से मौत का डर निकल जाए तो जिंदगी कितनी सुंदर और मजेदार हो
जाएगी।
जब देखो दूसरों पर शक करना तुम्हारा शगल बन गया लगता है। टीवी सीरियल कम
देखा करो और चीजों को दूसरे केनजरिए से देखना सीखो। भगवत गीता
में लिखा है कि अपने आप का आकलन करो और देखो कि तुम कितने बड़े शंकालु हो। सब पर
शक करते हो। बेवजह शक करते हो...दोस्तों पर, दफ्तर के साथियों पर और यहां तक कि अपने परिजनों को भी शक
की निगाह से देखते हो। इतना शक करना सही नहीं। ये विवाद और परेशानी का सबब है।
जरूरी नहीं कि सारी दुनिया तुम्हारा बुरा करने पर तुली है। भगवान कृष्ण कहते हैं
कि एक शंकालु व्यक्ति को इस दुनिया और दूसरी किसी दुनिया में शांति नहीं मिलती।
एक
बार शंका को मन से निकाल कर देखो। अपने दोस्तों पर खुले मन से विश्वास करके देखो।
इस बात को सोचो कि तुम्हारे परिजन तुम्हारा भला चाहते हैं। विश्वास करोगे तो
विश्वास पाओगे और शक करोगे तो फल वैसा ही मिलेगा क्योंकि व्यक्ति जैसा लगातार सोच
रहा होता है वैसा फलित होने लगता है। आज छोकरी चाहिए कल नौकरी चाहिए, परसों कार...जरा थम जाओ और
सांस ले लो। फिल्म नहीं है जो ढाई घंटे में सब कुछ मिल जाएगा। भगवत गीता में लिखा
है कि सब कुछ एक साथ सोच लोगे तो फलित होने में लगने वाला समय तुम्हें बहुत परेशान
कर देगा।
हर चीज का समय होता है। हर समय दिमाग में कुछ न कुछ पाने की इच्छा रखना
और इच्छाओं की लंबी चौड़ी लिस्ट बना लेना सही नहीं। कर्म करने के बाद जब
तुम्हारे पास पैसा हो तो वो चीज खरीद लो जो तुम्हें जरूरत की लग रही हो। लेकिन
सालों पहले से उस चीज को पाने की इच्छा बना लेने से मन में इच्छाओं की भीड़ लग
जाती है। इससे मन अशांत होता है और सोचने विचारने की ताकत कम होती जाती है। ये
करूंगा तो वो मिलेगा.वो करूंगा तो ऐसा होगा..ये चिंता दूसरों पर छोड़ दो।
कम से कम
फल के पकने तक फल की चिंता मत करो। अगर तुम किसी काम के सफल और असफल होने की चिंता
करते रहोगे तो काम कब करोगे। तुम नया काम करो, बिना ये सोचे कि ये सफल
होगा या नहीं। हम अपनी जिंदगी में कई बेमिसाल काम केवल इसलिए छोड़ देते हैं
क्योंकि हमारे मन में उसके सफल होने की गारंटी नहीं होती। तुम फेल होने से क्यों डरते
हो।
जितनी बार फेल होगे उतना ज्यादा अनुभव तुम्हारे पास एकत्र होगा। जो व्यक्ति
जिंदगी में संभावित सफलता और असफलता से अप्रभावित रहता है वहीं कुछ नया करने का श्रेय
ले पाता है।