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- “खालसा मेरो रूप है खास खालसे मे हौ करौ निवास”.
Posted by : achhiduniya
14 April 2015
वैसाखी संपन्नता के साथ खुशहाली का
माहौल.......दक्षिण भारत के
तमिलनाडू में इसे
एक नव-वर्ष के रूप में मनाया......
वैसाखी के त्योहार को
सिख धर्म से जोड़कर देखा जाता है जो एक प्रकार से सही है
लेकिन इस पर्व का एक दूसरा
पहलू भी है सबसे पहले सिख धर्म के अनुसार देखते है।
भारत देश एक कृषी प्रधान देश होने
से यह खेती के लिए पूरे विश्व मे विख्यात है।
जिससे इस देश के पंजाब प्रांत अर्थात
सिखो [सरदारो] के द्वारा की जाने वाली खेती
का महत्व होता है। हम भी एक खेती से जुड़े समाज में रह रहे होते है, यह हमारे
लिए भी बहुत महत्वपूर्ण दिन
होताहै। इस दिन के बाद से रहन-सहन पूरी तरह से
बदल जाता है। जो इंसान
खेती से जुड़ा है, उसे गर्मी की शुरुआत में अपना रहन-सहन
बदलना पड़ता है। आजकल हम
अपने घर में आराम से एयर कंडीशनर और पंखे
चला कर बैठते हैं। बहुत से लोगों को यह
पता भी नहीं चलता की वातावरण में क्या
बदलाव हो रहे हैं। सिर्फ पानी की कमी हो
जाने पर हमें पता चलता है कि गर्मियां
शुरू हो गयीं हैं। जब इस दिन के बाद से सूरज
की किरणों की प्रचंडता और बढ़
जाएगी, तब क्यों न हम भी और ज्यादा तीव्रता को
अपना लें या फिर जब बिजली बार-
बार परेशान करने लगती है तो हमें यह अच्छे
से समझ आ जाता है कि गर्मियां शुरू
हो गयीं हैं। इसी दिन यानी वैसाखी के दिन सिख धर्म के दसवे अवतार
श्री गुरु
गोबिन्द सिंध जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। अपने सिखो को अमृत छकाया
[खंडे -बाटे ]यानी पूरी तरह से मर्यादा मे रहकर अपना रूप कहा:- “खालसा मेरो रूप
है खास खालसे मे हौ करौ निवास” अर्थात जो भी सिख पूरी रहत मर्यादा मे रहेगा
उसमे मै [श्री
गुरु गोबिन्द सिंध जी ]निवास करूंगा और जिसे भी मेरा दर्शन करना
हो वह पंज पियारों
या किसी भी खालसा के रूप मे मेरा दर्शन कर सकता है। पंजाब
में बैसाखी और तमिलनाडु में नव-वर्ष मनाया जा रहा है। 14 अप्रैल को एक तरफ
उत्तर भारत, विशेष तौर पर पंजाब में बैसाखी के उत्साह की लहर होती है तो
दूसरी
तरफ दक्षिण भारत के तमिलनाडू में इसे एक नव-वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
यह
वो समय होता है जब रबि की फसल कट कर पैदावार किसानों के घरों में आ जाती
है। घर
में संपन्नता के साथ खुशहाली का माहौल होता है। दूसरी तरफ तमिल नव-
वर्ष का मतलब है
कि सूरज अपने प्रचंड रूप में आने वाला है। अग्नि नक्षत्र जो
दक्षिणी भारत में सबसे
गर्म दिन होते हैं, शुरू होने वाला है। यह तमिल नव-वर्ष की
शुरुआत है। दो दिनों में
कुछ नया होने वाला है। इसीलिए हमनें इसे नए साल की
शुरुआत माना है। इस अवसर पर
दक्षिण भारत में, तमिल परंपरा में जैसा कि हमने
कहा, अग्नि नक्षत्र के
शुरू होने पर आपको अपना रहन-सहन बदलना होता है। आप
क्या खाते हैं, कैसे चलते हैं, किस समय उठते हैं, क्या काम करते
हैं, कैसे बर्ताव करते
हैं, सभी चीज़ों में
बदलाव आ जाता है। जो खेती से जुड़ा है, उसे तो सब कुछ बदलना
ही पड़ता है।
हालांकि हम खेती से जुड़े नहीं हैं, लेकिन हमारा जीवन खेती की वजह से
ही चल
रहा है। तमिल नव-वर्ष जीवन में एक नया गुण पैदा करने का अवसर है। यह
हमारे भीतर एक
जोश जगाता है। जब इस दिन के बाद से सूरज की किरणों की
प्रचंडता और बढ़ जाएगी, तब क्यों न हम भी
और ज्यादा तीव्रता को अपना लें?
तमिल नाडू में सभी लोग, इस नव वर्ष पर आध्यात्मिक तीव्रता, जीवन की तीव्रता,
और शरीर और मन की
तीव्रता को बढाते हैं, और उसे एक नए स्तर तक ले जाते हैं।