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- पति-पत्नी के बीच संबंध वैवाहिक या बलात्कार……….जाने...?
Posted by : achhiduniya
25 May 2015
भारत में
देखें तो यहां महिला की सहमति के बिना उससे संबंध बनाने को ही मुख्यतः बलात्कार के
रूप में परिभाषित किया जाता है। अगर बलात्कार का आरोप साबित हो जाता है तो अपराधी
को दंडस्वरूप सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा सुनाई जा सकती है। हालांकि भारतीय
कानून विवाहित लोगों के साथ अलग व्यवहार करता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अनुसार किसी पुरुष द्वारा
अपनी पत्नी के साथ,
जिसकी
उम्र 15
साल से
कम न हो,
बनाया
गया यौन संबंध बलात्कार नहीं है। वकीलों के बीच इस परिच्छेद को बलात्कार के
वैवाहिक स्तर पर मिली रियायत के रूप में जाना जाता है। यह तार्किक रूप से इस बात
का अनुपालन करता है कि वर्तमान कानून के अनुसार पत्नी का बलात्कार नहीं किया जा
सकता है। आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 के बाद भारतीय दंड संहिता में
शामिल की गई धारा 376
साथ ही
एक अपवाद भी प्रस्तुत करती है।
यह पति से अलग रह रही पत्नी के साथ बिना उसकी इच्छा
के शारीरिक संबंध बनाने को सजा के दायरे में तो लाती है पर इसे बलात्कार नहीं कहती।
वैवाहिक स्तर पर यह रियायत इस सोच से संचालित है कि शादी के बाद कोई महिला हमेशा
के लिए पति की इच्छा पर शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमत हो चुकी है। वैवाहिक स्तर
पर मिली इस रियायत को खत्म करने के लिए यह जरूरी होगा कि शारीरिक संबंध बनाने से
जुड़े हर कार्य में,
यहां तक
की विवाह संस्था के भीतर भी, हर मौके पर विशिष्ट सहमति जरूरी
हो।
हिंसा हमेशा ही अपराध की श्रेणी में आती है और वैवाहिक स्तर पर ऐसी कोई रियायत
नहीं हैं जो इसे छिपाए अगर पति, पत्नी को पीटता है तो वह उसके
खिलाफ उन्हीं कानूनी उपायों का सहारा ले सकती है जो किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ
उसे लेने का अधिकार है। सिर्फ शारीरिक संबंधों से जुड़े
मामलों में पति के लिए यह एक अपवाद है। वैवाहिक जीवन की किसी भी अवस्था में अगर
पत्नी उस परिकल्पित सहमति से खुद को अलग करना चाहती है तो उसके लिए अलग होकर जीने
का रास्ता खुला है।
इसके बाद किसी भी तरह का जबरन यौन संबंध धारा 367 (बी) के तहत अपराध होगा। भारतीय दंड संहिता में 498 ए को पति या परिवारवालों के
हाथों किसी स्त्री की प्रताड़ना के खिलाफ हथियार के रूप में लाया गया था। 498 ए संज्ञेय धारा है,इसके तहत
गिरफ्तार हुए आरोपी को जमानत नहीं मिलती है, लेकिन ऐसा देखने में आया है कि
कई महिलाओं ने इसका दुरुपयोग किया है। उन्होंने पति और उसके परिवारवालों को
प्रताड़ित करने के लिए इस धारा का इस्तेमाल किया। इस धारा के तहत पति और उनके रिश्तेदार
की गिरफ्तारी बहुत आसानी से हो जाती है।
कई मामलों में पति के निशक्त माता-पिता या
दशकों से विदेशों में रहनेवाले उसके भाई-बहनों की भी गिरफ्तारियां हुईं। 498 ए के तहत तीन साल की कैद और
बलात्कार साबित होने पर उम्रकैद की सजा होती है। सहमति से संबंध बनाने की उम्र 16 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई है, मगर 15 साल से बड़ी उम्र की पत्नी से
सहवास अभी भी बलात्कार नहीं माना जाता।2013
के
संशोधन ने विवाह और सहमति से संभोग की उम्र 18
साल कर
दी है मगर धारा 375 के अपवाद में आज भी यह प्रावधान
बना हुआ है कि (नाबालिग) पत्नी के साथ जिसकी उम्र 15 साल से अधिक है, जबरन यौन संबंध ‘बलात्कार’ नहीं माना जाएगा. इन कानूनों
में किए गए प्रावधानों में जब सहमति से सहवास की उम्र 18 साल कर दी गई है, तब 15 साल से बड़ी पत्नी के साथ सहमति से भी यौन संबंध की स्वीकृति कैसे दी
जा सकती है? 15 साल की उम्र शारीरिक और मानसिक
परिपक्वता की दृष्टि से बहुत ही छोटी उम्र है और हां, इस उम्र में नाबालिग लड़की पर किसी भी तरह का दबाव बनाना ज्यादा आसान
हो सकता है।
संशोधन अधिनियम 2013
के लागू
होने से पहले बिना सहमति के किसी औरत के साथ यौन संबंध स्थापित करना या 16 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ (सहमति के साथ भी) संबंध स्थापित
करना बलात्कार की श्रेणी में आता था। अंत में एक बात और यह कि आखिर दाम्पत्य में
बलात्कार कानून से पुरुष समाज क्यों डरा हुआ है? इस कानून को न बनाए जानेवाले ये तर्क देते हैं कि वैवाहिक बलात्कार
कानून बन जाने से विवाह और परिवार जैसी पवित्र संस्था को खतरा पहुंच सकता है। जवाहर
लाल नेहरू जी के शब्द हम हर भारतीय स्त्री से सीता होने की अपेक्षा करते हैं लेकिन
पुरुषों से मर्यादा पुरुषोत्तम राम होने की नही। अधिवक्ता:- विक्रम खूबचन्द नानकाणी जी नागपुर [मेल
द्वारा,जनहित मे जानकारी]