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- अपने अंदर के गुण को पहचानिए...........
Posted by : achhiduniya
18 June 2015
आत्मविशवास का यह मतलब नही की आप बे वजह का गुरूर करे अपनी दादागीरी दिखा कर गरीब और मज़लूमों पर अन्याय व अत्याचार करे। अपनी शक्ति,अपने रुतबे,अपने अधिकार का गलत उपयोग करे। अपने कर्तव्य को बिलकुल ना भूले चलिए, आज आपको एक कहानी सुनाते हैं। एक ऋषि के पास एक दिन साँप जा बैठा और उनसे कुछ ज्ञान देने की प्रार्थना की। ऋषि नें उसे अहिंसा का उपदेश दिया। बस, उस दिन से साँप नें व्रत ले लिया कि अब वह किसी को न काटेगा। कुछ दिन बीते कि ऋषि अपनी तीर्थयात्रा पर चले गए और साँप के व्रत की बात आसपास सबको मालूम हो गई।
अब हुआ ये कि वहाँ खेलते हुए बच्चे उस साँप को पकड लेते और घंण्टों तोडते मरोडते। एक दिन एक ग्वाले नें उसे पकडकर अपनी गाय के सींगों में बाँध दिया और दिन भर गाय झाडियों में सींग मारती घूमती रही। अब बेचारे साँप की तो शामत आ गई। बेचारा लहूलुहान होकर बडी मुश्किल से शाम को छूटा। दूसरे दिन बच्चों नें उसे फिर पकड लिया और उसके मुँह में रेत भर दी। उन बच्चों में एक उदण्ड टाईप का लडका भी था उनमें साँप की आँखों में सींक देकर अन्धा करने की कोशिश कर ही रहा था कि अचानक ऋषि उधर से आ निकले। उन्हे देख कर आश्चर्य हुआ कि मोटा-मतंगा साँप बिलकुल रस्सी जैसा मरियल पड़ा है। गुस्सा होकर बोले: अरे साँप तुझे यह क्या हुआ.....? महाराज, आपने ही तो अहिँसा का उपदेश दिया था। साँप नें भक्ति-भाव से, करुणामई स्वर में कहा।
ऋषि समझ गये कि उसके साथ क्या हुआ है और बोले: अरे मूर्ख, मैने यही तो कहा था कि काटना मत. पर यह कहाँ कहा था कि फुँकारना भी भूल जाना! साँप समझ गया और आज बहुत दिन बाद उसने फन उठाकर फुंकार मारी. बस, सारे लोग वहा से भाग खड़े हुए। उस दिन के बाद साँप अब का व्रत भी कायम है और मौज भी। इससे यह बात साबित होती है कि उदार रहो, कृपा करो, सबके साथ समानता निभाओ पर सस्ते यानी कमजोर न बनो।
अपना भेद न दो कि दूसरे सिर पर-से रास्ता करने की ठानें यानी आप को कमजोर समझे । इसलिए अपने मूल स्वभाव को त्यागे बिना आगे बड़ते रहो। बेशक सुने सभी की लेकिन उस पर अपने विवेक बुद्धी द्वारा विचार जरूर किया करे। साँप की तरह रहे किसी को नुकसान भीं न पहुचाए और अपनी भी रक्षा करते हुए आगे बड़ते रहे।