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- क्यू नही फसती मकड़ी अपने जाल मे.........?
Posted by : achhiduniya
27 September 2015
मकड़ी आथोर्पोडा स्पीशिज की एक प्राणी है। मकड़ी एक प्रकार का कीट है। एक रिसर्च के अनुसार मकड़ी हमारी धरती के प्राचीनतम जीवों में से है। यह लगभग पिछले 4.5 करोड वर्षों से इस धरती पर रह रही है। साइंटिस्ट को मकड़ी का लगभग सवा करोड वर्ष पुराना जीवाश्म भी मिला है। रूस के एक साइंटिस्ट प्रो. अलेग्जेंडर पीटरनेकोफ ने मकड़ियों पर गहन स्टडी किया। उनके अनुसार मकड़ियों की प्रमुख 92 प्रजातियां ही हैं। इसकी लगभग 40000 प्रजातियां बताई जाती हैं। पीटरनेकोफ ने अपनी प्रयोगशाला में बहुत सी मकड़िया रखी हुई थीं।
वे उनकी हर प्रकार की हरकतों पर ध्यान रखते थे। मकड़ी का शरीर शिरोवक्ष और पेट में बंटा होता है। इसके शिरोवक्ष से इसके चार जोडे पैर लगे होते हैं। मकड़ी के पेट में एक थैली होती है, जिससे एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है। मकड़ी के पिछले भाग में स्पिनरेट नाम का अंग होता है। स्पिनरेट की हेल्प से ही मकड़ी इस चिपचिपे द्रव को अपने पेट से बाहर निकालती है। बाहर निकलकर यह द्रव सूख कर तंतु जैसा बन जाता है। इस से ही मकड़ी अपना जाला बुनती है। मकड़ी के जाले में दो प्रकार के तंतु होते हैं, जिस तंतु से मकड़ी जाले का फ्रेम बनाती है वह सूखा होता है। जाले के बीच के धागे स्पोक्स नाम के चिपचिपे तंतु से बने होते हैं।
जाले के चिपचिपे तंतुओं से ही चिपक कर शिकार फंस जाता है। एक बार चिपकने के बाद शिकार छूट नहीं पाता। शिकार के फंसने के बाद मकड़ी सूखे तंतुओं वाले धागों पर चलती हुई शिकार तक पहुंचती है। इसी कारण मकड़ी अपने जाले में नहीं उलझती। मकड़ी के शरीर पर तेल की एक विशेष परत चढी होती है, जो उसे जाले के लेसदार भाग के साथ चिपकने से बचाती है। प्रो. अलेग्जेंडर पीटरनेकोफ के अनुसार मकड़ी की छह प्रजातियां ऐसी भी हैं जो स्वयं के बनाए जाले में उलझ कर रह जाती हैं। वास्तव में वे जाला अपने चारों ओर ही बुन लेती हैं। फिर जाले से बाहर निकलने या उसमें घूमने से असर्मथ रहते हुए मर जाती है।