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- कामेडी किंग महमूद ड्राइवरी का काम और टाफिया बेचते थे..........
Posted by : achhiduniya
05 October 2015
महमूद
का जन्म सितंबर
1933 को
मुंबई में हुआ।
उनके पिता मुमताज
अली बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में
काम किया करते
थे। बाल कलाकार
से हास्य अभिनेता
के रूप में
स्थापित हुए महमूद
ने सफलता हासिल
करने से पहले
कई परेशानियों का
सामना किया। बचपन
के दिनों से ही महमूद
का रुझान अभिनय
में था। अपने
विशिष्ट अंदाज, हाव भाव
और आवाज से
लगभग पांच दशक
तक दर्शकों को
हंसाने और गुदगुदाने
वाले महमूद ने
फिल्म इंडस्ट्री में
‘किंग
ऑफ कॉमेडी’ का दर्जा
हासिल किया।
लेकिन
उन्हें इसके लिए
काफी संघर्ष करना
पड़ा था और
यहां तक सुनना
पड़ा था कि
वे ना तो
अभिनय कर सकते
हैं और ना
ही कभी अभिनेता
बन सकते हैं।घर
की आर्थिक जरूरत
को पूरा करने
के लिए महमूद
मलाड और विरार
के बीच चलने
वाली लोकल ट्रेनो
में टॉफियां बेचा
करते थे। इस बीच
महमूद ने कार
ड्राइव करना सीखा
और निर्माता ज्ञान
मुखर्जी के यहां
बतौर ड्राइवर काम
करने लगे क्योंकि
इसी बहाने उन्हें
मालिक के साथ
हर दिन स्टूडियो
जाने का मौका
मिल जाया करता
था, जहां वे
कलाकारों को करीब
से देख सकते
थे. इसके बाद
महमूद ने गीतकार
गोपाल सिंह नेपाली, भरत
व्यास, राजा मेंहदी
अली खान और
निर्माता पीएल संतोषी
के घर पर
भी ड्राइवर का
काम किया।
अपने पिता
की सिफारिश की
वजह से 1943 में उन्हें
बॉम्बे टॉकीज की
फिल्म ‘किस्मत’ में
अपनी किस्मत आजमाने
का मौका मिला।
फिल्म में महमूद
ने अभिनेता अशोक
कुमार के बचपन
की भूमिका निभाई। इस फिल्म
में महमूद को
300 रूपये
मिले, जबकि बतौर
ड्राइवर उन्हें महीने
में सिर्फ 75 रूपये ही
मिला करते थे।
इसके बाद महमूद
ने ड्राइवरी का
काम छोड़ दिया
और अपना नाम
जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन
मे दर्ज करा
दिया। यहीं
से उन्होंने फिल्मों
में काम पाने
के लिए संघर्ष
करना शुरू किया।
इसके बाद बतौर
जूनियर आर्टिस्ट महमूद
ने ‘दो
बीघा जमीन’, ‘जागृति’, ‘सीआईडी’, ‘प्यासा’ जैसी फिल्मों
में छोटे मोटे
रोल किए जिनसे
उन्हें कुछ खास
फायदा नहीं हुआ।अपने
चरित्र में आई
एकरूपता से बचने
के लिए महमूद
ने अपने आप
को विभिन्न प्रकार की
भूमिका में पेश
किया। इसी क्रम
में वर्ष 1968 में फिल्म
‘पड़ोसन’ का
नाम सबसे पहले
आता है।
‘पड़ोसन’ में महमूद
ने नकारात्मक भूमिका
निभाई और दर्शकों
की वाहवाही लूटने
मे सफल रहे।
फिल्म में महमूद
पर फिल्माया गाना
‘एक
चतुर नार करके
श्रृंगार’ काफी लोकप्रिय
हुआ। इस
फिल्म की सफलता
के बाद बतौर
हास्य अभिनेता महमूद
फिल्म इंडस्ट्री में
अपनी पहचान बनाने
में सफल हो
गए। महमूद को अपने सिने करियर में तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पांच दशक में उन्होंने करीब 300 फिल्मों में काम किया। 23 जुलाई 2004 को महमूद इस दुनिया से हमेशा के लिए रूखसत हो गए। उनके निभाए किरदारों को हमेशा याद रखा जाएगा। [साभार]