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- 100 कौरवों का जन्म कैसे हुआ.......?
Posted by : achhiduniya
02 November 2015
आप सभी यह जानते है की द्वारपर युग मे भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लेकर कंस को उसके
पापो की सजा देकर प्रजा को अत्याचार से मुक्त किया था। वही आप यह भी जानते है की हत्सिनापुर
के राजा धतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन और दुशासन के अलावा 100 पुत्र थे यानी दुर्योधन
को 100 भाई थे। लेकिन वे आए कहा से क्या उस समय कोई परिवार नियोजन की व्यवस्था नही
थी। आइए जाने की क्या.....?वाकई मे वे दुर्योधन के सगे
भाई थे। महाभारत के आदि पर्व में इसका वर्णन निम्नानुसार है- कूवारी कुंती
को मंत्रो चार से सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ है जिसे सूद पुत्र कर्ण के नाम
से जाना जाने लगा।
लोक लज्जा के कारण कुंती ने उसे त्याग दिया था। विवाह के बाद पांडु व कुंती को युधिष्ट्र के रूप मे पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। गांधारी जो पांडु के ज्येष्ट भ्राता धतराष्ट्र की पत्नी यानी पांडु की भाभी थी। यह सुनकर गांधारी-जिसे दो वर्षों से गर्भ होने के बावजूद संतान प्राप्ति नहीं हुई। जिससे परेशान हो स्वयं गर्भपात कर लिया। गर्भपात के बाद लोहे के गोले के समान मांसपेशी निकली। इस समय द्वैपायन व्यास ऋषि को बुलाया गया। उन्होंने इस ठोस मांसपेशी का निरीक्षण किया। व्यास ऋषि ने इस मांसपेशी को एक कुंड में ठंडा कर विशेष दवाओं से सिंचित कर सुरक्षित किया।
बाद में इस मांसपेशी को 100 पर्वों यानी भागो में बांटा तथा 100 कुण्ड घी से भरे हुए थे। उनमें इन्हें रखकर दो वर्ष तक सुरक्षित रखा। तथा गांधारी यानी दुर्योधन की माता को इनकी देखभाल करने के लिए कहा तथा दो वर्षो के बाद द्वैपायन व्यास ऋषि ने आकर देखा तब क्रमानुसार 100 भ्रूण कौरवों का जन्म हुआ।यह उस युग के विज्ञान का ज्ञान जो ऋषियों-मुनियो के पास था। इस कथा को अलग-अलग तरीके से पेश किया गया जिससे यह लगे की ये सभी 100 पुत्र गांधारी के गर्भ से उत्पन्न हुए है।गर्भपात के बाद की गई प्रकिया से उत्पन्न होने के कारण उन्हे गांधारी के पुत्र होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
लोक लज्जा के कारण कुंती ने उसे त्याग दिया था। विवाह के बाद पांडु व कुंती को युधिष्ट्र के रूप मे पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। गांधारी जो पांडु के ज्येष्ट भ्राता धतराष्ट्र की पत्नी यानी पांडु की भाभी थी। यह सुनकर गांधारी-जिसे दो वर्षों से गर्भ होने के बावजूद संतान प्राप्ति नहीं हुई। जिससे परेशान हो स्वयं गर्भपात कर लिया। गर्भपात के बाद लोहे के गोले के समान मांसपेशी निकली। इस समय द्वैपायन व्यास ऋषि को बुलाया गया। उन्होंने इस ठोस मांसपेशी का निरीक्षण किया। व्यास ऋषि ने इस मांसपेशी को एक कुंड में ठंडा कर विशेष दवाओं से सिंचित कर सुरक्षित किया।
बाद में इस मांसपेशी को 100 पर्वों यानी भागो में बांटा तथा 100 कुण्ड घी से भरे हुए थे। उनमें इन्हें रखकर दो वर्ष तक सुरक्षित रखा। तथा गांधारी यानी दुर्योधन की माता को इनकी देखभाल करने के लिए कहा तथा दो वर्षो के बाद द्वैपायन व्यास ऋषि ने आकर देखा तब क्रमानुसार 100 भ्रूण कौरवों का जन्म हुआ।यह उस युग के विज्ञान का ज्ञान जो ऋषियों-मुनियो के पास था। इस कथा को अलग-अलग तरीके से पेश किया गया जिससे यह लगे की ये सभी 100 पुत्र गांधारी के गर्भ से उत्पन्न हुए है।गर्भपात के बाद की गई प्रकिया से उत्पन्न होने के कारण उन्हे गांधारी के पुत्र होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।