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- वैदिक तरीके से भोजन करने की विधि जाने व अपनाने की कोशिश करे........
Posted by : achhiduniya
26 April 2016
आप जो भी भोजन करते हैं वह आप स्वयं नहीं
ग्रहण करते बल्कि अपनी देह में स्थित परमात्मा को अर्पित करते हो, जिससे समस्त सृष्टि तृप्त होती है।
भोजन इसी भाव से भोजन-मन्त्र बोलकर भगवान को अर्पित कर के करना चाहिए। क) पाँच
अंगों (दो हाथ, दो पैर, मुख ) को अच्छी
तरह से धो कर ही भोजन करें। ख) गीले पैर खाने से आयु में वृद्धि होती है। ग) प्रातः
और सायं ही भोजन का विधान है। घ) पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके ही खाना
चाहिए। ङ) दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है। च) पश्चिम
दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है। छ) शैय्या पर, हाथ पर रख कर, टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना
चाहिए। ज) मल मूत्र का वेग होने पर,कलह के माहौल में,अधिक शोर में,पीपल एवं वट वृक्ष के नीचे, भोजन नहीं करना चाहिए। झ) परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। ञ)
खाने से पूर्व अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके,उनका धन्यवाद देते हुए तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो ईश्वर से ऐसी प्रार्थना
करके भोजन करना चाहिए। ट) भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले तीन रोटिया अलग
निकाल कर (गाय, कुत्ता, और कौवे हेतु )
फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाएं।
ठ) इर्षा, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीन भाव, द्वेष भाव, के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है। ड) आधा खाया हुआ फल,मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए। ढ) खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए। ण) भोजन के समय मौन रहे। त) भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए। थ) रात्री में भरपेट न खाए। द) गृहस्थ को 32 ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए। ध) सबसे पहले कडुवा, फिर नमकीन, अंत में मीठा खाना चाहिए। न) सबसे पहले रस दार, बीच में गरिस्थ, अंत में द्रव्य पदार्थ (मट्ठा- छाछ) ग्रहण करे। प) थोडा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल,सुख, सुन्दर संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है। फ) जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहाँ कभी न खाए। ब) तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। भ) कुत्ते का छुवा, रजस्वला स्त्री का परोसा (वर्तमान में कई रोगों का कारण), श्राध का निकाला, बासी, मुहसे फूक मरकर ठंडा किया, बाल गिरा हुवा भोजन, अनादर युक्त, अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे। मित्र deepak pandya व Gagan Sharma Bhartiya जी के द्वारा अच्छी दुनिया की तरफ से आप सभी मित्रो के साथ विचार सांझा किए गए।
ठ) इर्षा, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीन भाव, द्वेष भाव, के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है। ड) आधा खाया हुआ फल,मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए। ढ) खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए। ण) भोजन के समय मौन रहे। त) भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए। थ) रात्री में भरपेट न खाए। द) गृहस्थ को 32 ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए। ध) सबसे पहले कडुवा, फिर नमकीन, अंत में मीठा खाना चाहिए। न) सबसे पहले रस दार, बीच में गरिस्थ, अंत में द्रव्य पदार्थ (मट्ठा- छाछ) ग्रहण करे। प) थोडा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल,सुख, सुन्दर संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है। फ) जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहाँ कभी न खाए। ब) तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। भ) कुत्ते का छुवा, रजस्वला स्त्री का परोसा (वर्तमान में कई रोगों का कारण), श्राध का निकाला, बासी, मुहसे फूक मरकर ठंडा किया, बाल गिरा हुवा भोजन, अनादर युक्त, अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे। मित्र deepak pandya व Gagan Sharma Bhartiya जी के द्वारा अच्छी दुनिया की तरफ से आप सभी मित्रो के साथ विचार सांझा किए गए।