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- 'सरबजीत'………फिल्म समीक्षा...... फिल्म कहानी के साथ
Posted by : achhiduniya
21 May 2016
पाकिस्तान
की सीमा से लगे पंजाब के एक गांव का रहने वाला सरबजीत सिंह (रणदीप हुड्डा) शराब के
नशे में सीमा पार कर जाता है। पाकिस्तानी सुरक्षा बल उसे जासूसी करने के आरोप में
पकड लेता है। सरबजीत की बडी बहन दलबीर कौर (ऐश्वर्या राय) और पत्नी (ऋचा चड्ढा) उसकी
तलाश में दिन-रात एक कर देती हैं। पाकिस्तान की अदालत में सरबजीत को रणजीत सिंह के
तौर पर पेश किया जाता है और लाहौर में बम धमाके करने के आरोप में उसे फांसी की सजा
सुनाई जाती है। दलबीर कौर अपने भाई की रिहाई के लिए सियासती गलियारों में फरियाद
करती है। प्रधानमंत्री से भी मिलती है, लेकिन कहीं उसकी कोई सुनवाई नहीं
होती। पाकिस्तान की जेल में सरबजीत पर जुल्मो-सितम होते हैं। लाहौर का वकील ओवैसी
शेख इस केस में मदद करने के लिए आगे आता है। पाकिस्तान की सरकार सरबजीत की फांसी
की तारीख को टाल देती है।
ऐसे में उसकी रिहाई की उम्मीद बढती है, लेकिन यह उम्मीद सिर्फ उम्मीद ही बनी रह जाती है। एक दिन जेल के कैदी सरबजीत सिंह के साथ इतनी मारपीट करते हैं कि अस्पताल में उसकी मौत हो जाती है। पाकिस्तान में जासूसी करने के आरोप में कई साल तक जेल में बंद रहे पंजाब के सरबजीत सिंह की कैदियों ने हत्या कर दी थी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। अपने भाई की रिहाई के लिए सरबजीत की बहन दलजीत कौर की कोशिशों को पूरे देश ने महसूस किया था। 'मैरी कोम' के निर्देशक ओमंग कुमार ने इस सच्ची घटना पर फिल्म बनाई है। भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के बीच झूलती एक जिंदगी की तमाम संवेदनाएं इस फिल्म को एक नया दर्जा देती हैं। दलबीर कौर के किरदार में ऐश्वर्या राय ने खुद को ढालने में कोई कसर नहीं छोडी वे इस फिल्म का केंद्र हैं और इस नाते उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सरबजीत के किरदार को निभाना रणदीप के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था, पर वे इस चुनौती पर पूरी तरह से खरे उतरे। ऐश्वर्या की तरह उनके करियर की भी यह बेस्ट परफार्मेंस है। जेल में बंद सरबजीत के दर्द को पर्दे पर लाने में रणदीप की अथाह मेहनत प्रभावशाली रही है।
सरबजीत की पत्नी के तौर पर ऋचा चड्ढा का काम कम अच्छा नहीं है। उनके चेहरे का दर्द एक ऐसी महिला की वेदना है, जो कई साल तक अपने पति का इंतजार करती है और अपनी बेटियों की परवरिश करती है। इन तीनों के अलावा पाकिस्तानी वकील के किरदार में दर्शन कुमार भी प्रभावशाली रहे हैं। फिल्म की गति को कायम रखना इन दोनों बातों में कर्मशियल फिल्मों के मसालों के इस्तेमाल ने मामला किरकिरा कर दिया। फिल्म के ज्यादातर गाने इसकी गति पर रुकावट डालते हैं और इमोशन को तोडते हैं। इतने सारे गानों की न जरूरत थी, न इनके लिए स्कोप था। कई ऐसे मौकों पर काल्पनिकता का इस्तेमाल किया गया, जहां इसकी जरूरत नहीं थी। क्लाइमेक्स बहुत ज्यादा लंबा खिंचा गया और बेवजह इसे ओवर इमोशनल बनाया गया। ओमंग कुमार ने निर्देशक के तौर पर इन सारे कलाकारों से बेहतरीन काम लिया।
ऐसे में उसकी रिहाई की उम्मीद बढती है, लेकिन यह उम्मीद सिर्फ उम्मीद ही बनी रह जाती है। एक दिन जेल के कैदी सरबजीत सिंह के साथ इतनी मारपीट करते हैं कि अस्पताल में उसकी मौत हो जाती है। पाकिस्तान में जासूसी करने के आरोप में कई साल तक जेल में बंद रहे पंजाब के सरबजीत सिंह की कैदियों ने हत्या कर दी थी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। अपने भाई की रिहाई के लिए सरबजीत की बहन दलजीत कौर की कोशिशों को पूरे देश ने महसूस किया था। 'मैरी कोम' के निर्देशक ओमंग कुमार ने इस सच्ची घटना पर फिल्म बनाई है। भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के बीच झूलती एक जिंदगी की तमाम संवेदनाएं इस फिल्म को एक नया दर्जा देती हैं। दलबीर कौर के किरदार में ऐश्वर्या राय ने खुद को ढालने में कोई कसर नहीं छोडी वे इस फिल्म का केंद्र हैं और इस नाते उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सरबजीत के किरदार को निभाना रणदीप के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था, पर वे इस चुनौती पर पूरी तरह से खरे उतरे। ऐश्वर्या की तरह उनके करियर की भी यह बेस्ट परफार्मेंस है। जेल में बंद सरबजीत के दर्द को पर्दे पर लाने में रणदीप की अथाह मेहनत प्रभावशाली रही है।
सरबजीत की पत्नी के तौर पर ऋचा चड्ढा का काम कम अच्छा नहीं है। उनके चेहरे का दर्द एक ऐसी महिला की वेदना है, जो कई साल तक अपने पति का इंतजार करती है और अपनी बेटियों की परवरिश करती है। इन तीनों के अलावा पाकिस्तानी वकील के किरदार में दर्शन कुमार भी प्रभावशाली रहे हैं। फिल्म की गति को कायम रखना इन दोनों बातों में कर्मशियल फिल्मों के मसालों के इस्तेमाल ने मामला किरकिरा कर दिया। फिल्म के ज्यादातर गाने इसकी गति पर रुकावट डालते हैं और इमोशन को तोडते हैं। इतने सारे गानों की न जरूरत थी, न इनके लिए स्कोप था। कई ऐसे मौकों पर काल्पनिकता का इस्तेमाल किया गया, जहां इसकी जरूरत नहीं थी। क्लाइमेक्स बहुत ज्यादा लंबा खिंचा गया और बेवजह इसे ओवर इमोशनल बनाया गया। ओमंग कुमार ने निर्देशक के तौर पर इन सारे कलाकारों से बेहतरीन काम लिया।