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- अगर बैंक तय ब्याज देने से इंकार करे तो.......... ?
Posted by : achhiduniya
20 May 2016
आज
महंगाई के इस दौर मे बड़ी बचत या अल्प बचत करना समय की जरूरत बनती जा रही है। लेकिन
बचत और ब्याज के कारण होने वाली दिक्कतों से कैसे.......? निपटा जा सकता है इस पर एक घटना द्वारा नजर डालते है। एक मामले में
उपभोक्ता ने एक निजी बैंक में विशेष बचत योजना में रु. 4338 रुपए
का निवेश किया। बैंक ने इस पर 16 फीसदी ब्याज देने का वादा
किया था। तथा 20 साल की परिपक्वता अवधि पूरी होने पर एक लाख
रुपए देने की बात की। शिकायतकर्ता ने अपना पैसा 28 जून 1986
में डाला था और योजना 28 जून 2006 को परिपक्व होनी थी। दस साल बाद बैंक ने बिना शिकायतकर्ता को बताए जमा
योजना जिसमें शिकायतकर्ता ने निवेश किया था उसे रिन्यू कर दिया और उस पर ब्याज भी
घटा दिया। इसकी वजह से परिपक्वता पर मिलने वाली जमा राशि भी कम हो गई। जब
शिकायतकर्ता 28 जून को बैंक में गया तो उसे बैंक द्वारा
बताया गया कि उसे 47,128 रुपए ही मिलेंगे। बैंक ने उसे बताया
कि उसे पुरानी जमा योजना के बदले नई योजना में डाल दिया गया था, क्योंकि रिर्जव बैंक के नए निर्देश के अनुसार बैंक 8.25 फीसदी ब्याज ही दे सकते हैं जिसकी वजह से राशि घट गई है।
हताश होकर उपभोक्ता ने सेवा में कमी के तहत जिला उपभोक्ता फोरम में बैंक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और ब्याज बैंक द्वारा बिना उसे सूचना दिए घटाने के लिए मुआवजे की मांग की। जिला फोरम ने मामले पर गौर करते हुए बैंक को सेवा में कमी और अनुचित व्यापार पद्धति के लिए दोषी माना और उपभोक्ता की जमा योजना के मुताबिक उसे भुगतान करने के साथ पांच हजार रुपए मानसिक पीडा के भी देने को कहा। बैंक ने जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले के खिलाफ राज्य आयोग में अपील की जो खारिज हो गई। इसके बाद बैंक ने राष्ट्रीय आयोग में रिवीजन याचिका दायर की। यहां भी बैंक ने कहा कि रिर्जव बैंक के नए दिशा-निर्देशों में ब्याज की रकम घटा दी गई थी।राष्ट्रीय आयोग ने पाया कि रिर्जव बैंक के निर्देश नए निवेशकों के लिए थे न कि पुराने निवेशकों के लिए अत: बैंक को अनुचित व्यापार पद्धति के लिए जिम्मेदार मानते हुए शिकायतकर्ता को तय की गई रकम एक लाख रुपए वापस करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही दस हजार का मुआवजा भी देने का आदेश दिया – मित्र डॉ. शीतल कपूर [उपभोक्ता मामलों की जानकार] के द्वारा जनहित के लिए जानकारी।
हताश होकर उपभोक्ता ने सेवा में कमी के तहत जिला उपभोक्ता फोरम में बैंक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और ब्याज बैंक द्वारा बिना उसे सूचना दिए घटाने के लिए मुआवजे की मांग की। जिला फोरम ने मामले पर गौर करते हुए बैंक को सेवा में कमी और अनुचित व्यापार पद्धति के लिए दोषी माना और उपभोक्ता की जमा योजना के मुताबिक उसे भुगतान करने के साथ पांच हजार रुपए मानसिक पीडा के भी देने को कहा। बैंक ने जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले के खिलाफ राज्य आयोग में अपील की जो खारिज हो गई। इसके बाद बैंक ने राष्ट्रीय आयोग में रिवीजन याचिका दायर की। यहां भी बैंक ने कहा कि रिर्जव बैंक के नए दिशा-निर्देशों में ब्याज की रकम घटा दी गई थी।राष्ट्रीय आयोग ने पाया कि रिर्जव बैंक के निर्देश नए निवेशकों के लिए थे न कि पुराने निवेशकों के लिए अत: बैंक को अनुचित व्यापार पद्धति के लिए जिम्मेदार मानते हुए शिकायतकर्ता को तय की गई रकम एक लाख रुपए वापस करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही दस हजार का मुआवजा भी देने का आदेश दिया – मित्र डॉ. शीतल कपूर [उपभोक्ता मामलों की जानकार] के द्वारा जनहित के लिए जानकारी।