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- सुंदर सुराहीनुमा खूबसूरत घोसले “बया” की पहचान हैं......
Posted by : achhiduniya
16 June 2016
बया
पक्षी अपने सुंदर सुराहीनुमा घोसलों के लिए ही जाना जाता है। ये घोसले ताड़ के
वृक्षों, नदियों और तालाबों के किनारे पानी
की तरफ झुके पेडों की पानी छूती टहनियों, कंटीली झाडियों के
झुरमुटों आदि में लटकते देखे जा सकते हैं। ये घोंसले इतनी सफाई से बने होते हैं कि
उनके सामने मनुष्य द्वारा निर्मित कोई भी चीज फीकी लगती है। बया के घोसलों का
द्वार नीचे के ओर बढ़ी हुई नली में रहता है ताकि बिल्ली, सांप
आदि इनमें प्रदेश न कर सकें। घोसले की भीतरी सतह पर गीली मिट्टी लीपकर बया उसे जलरोधक बना देती है। इससे
भीषण से भीषण बारिश में भी घोंसले के अंदर पानी की एक बूंद भी नहीं घुस पाती।
घोसला पेड़ की शाखा के साथ इतनी मजबूती से बंधा होता है कि तेज से तेज आंधी तूफान
से भी वह नहीं गिरता।
बया घने वनों का पक्षी है, पर चौमासा लगते ही वह मैदानों में आ जाती है। यहां उसे अपना घोसला बनाने के लिए गेहूं, बाजरा और ज्वार के खेतों से सूखे तिनके मिल जाते हैं। प्रजननकाल के सिवाय अन्य समय नर और मादा देखने में एक जैसे लगते हैं, कुछ-कुछ मादा गौरैया के समान पर चौमासे में, जब बया प्रजनन करती हैं, नर का रंग-रूप निखरता है। उसके परों में पीला रंग उभर आता है और चेहरे पर एक काला नकाब चढ़ जाता है। बरसात के तुरंत बाद जब घास के अंकुर फूट ही रहे हों, नर बया बड़े-बड़े झुंड बनाकर मैदानों में आकर ऐसे स्थलों की खोज करने लगते हैं, जहां घोंसले बनाए जा सकते हैं। ऐसे स्थल उन्हें कंटीली झाडियों के झुरमुटों में और पानी की ओर झुकी शाखाओं में मिल जाते हैं। उपयुक्त स्थलों में पांच से लेकर पच्चीस तक घोसले बन जाते हैं। जब ये घोसले आधे तैयार हो जाएं, तब मादाएं उन्हें देखने आती हैं। उन्हें आकर्षित करने के लिए नर पंख फड़ फड़ाते हुए जोर-जोर से चहकते हैं।
मादाएं हर घोंसले का निरीक्षण करती हैं और यदि कोई घोसला उन्हें पसंद आ जाए तो उसे बनाने वाले नर के साथ प्रणयसूत्र में बंधने के लिए तैयार हो जाती हैं। फिर दोनों मिलकर घोसला पूरा करते हैं। तत्पश्चात मादा तीन या चार सफेद अंडे देती है और उन्हें सेने लगती है। अब नर दूसरा घोसला बनाने और दूसरी मादा से जोड़ा बांधने के लिए मुक्त हो जाता है। वह हर साल तीन-चार घोसले बनाता है। जब अंडों से चूजे निकल आते हैं, तो मादा उन्हें छोटे कीड़े और दाने लाकर खिलाती है। अपनी प्रथम उड़ान में यदि चूजे पेड़ की ऊंची डाली तक नहीं पहुंच सके, तो वे पानी में गिरकर डूब जाते हैं या मेढक, सांप, कछुए आदि का शिकार हो जाते हैं। बया, खास तौर से नर बया आसानी से पालतू बनाई जा सकती है और वह मनबहलाव का अच्छा साधन है। उसे मनकों के छिद्रों में धागा पिरोना, कूची से रंग उकेरकर चित्र बनाना और चोंच से हारमोनियम बजाना सिखाया जा सकता है। दाना चुगने की उसकी आदत के कारण बया को कुछ लोग फसलों के लिए नुकसानकारक मानते हैं, पर उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि बया दानों के साथ-साथ उन कीडों को भी खाती है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, खासकर,जब बया के घोंसले में चूजे होते हैं।
बया घने वनों का पक्षी है, पर चौमासा लगते ही वह मैदानों में आ जाती है। यहां उसे अपना घोसला बनाने के लिए गेहूं, बाजरा और ज्वार के खेतों से सूखे तिनके मिल जाते हैं। प्रजननकाल के सिवाय अन्य समय नर और मादा देखने में एक जैसे लगते हैं, कुछ-कुछ मादा गौरैया के समान पर चौमासे में, जब बया प्रजनन करती हैं, नर का रंग-रूप निखरता है। उसके परों में पीला रंग उभर आता है और चेहरे पर एक काला नकाब चढ़ जाता है। बरसात के तुरंत बाद जब घास के अंकुर फूट ही रहे हों, नर बया बड़े-बड़े झुंड बनाकर मैदानों में आकर ऐसे स्थलों की खोज करने लगते हैं, जहां घोंसले बनाए जा सकते हैं। ऐसे स्थल उन्हें कंटीली झाडियों के झुरमुटों में और पानी की ओर झुकी शाखाओं में मिल जाते हैं। उपयुक्त स्थलों में पांच से लेकर पच्चीस तक घोसले बन जाते हैं। जब ये घोसले आधे तैयार हो जाएं, तब मादाएं उन्हें देखने आती हैं। उन्हें आकर्षित करने के लिए नर पंख फड़ फड़ाते हुए जोर-जोर से चहकते हैं।
मादाएं हर घोंसले का निरीक्षण करती हैं और यदि कोई घोसला उन्हें पसंद आ जाए तो उसे बनाने वाले नर के साथ प्रणयसूत्र में बंधने के लिए तैयार हो जाती हैं। फिर दोनों मिलकर घोसला पूरा करते हैं। तत्पश्चात मादा तीन या चार सफेद अंडे देती है और उन्हें सेने लगती है। अब नर दूसरा घोसला बनाने और दूसरी मादा से जोड़ा बांधने के लिए मुक्त हो जाता है। वह हर साल तीन-चार घोसले बनाता है। जब अंडों से चूजे निकल आते हैं, तो मादा उन्हें छोटे कीड़े और दाने लाकर खिलाती है। अपनी प्रथम उड़ान में यदि चूजे पेड़ की ऊंची डाली तक नहीं पहुंच सके, तो वे पानी में गिरकर डूब जाते हैं या मेढक, सांप, कछुए आदि का शिकार हो जाते हैं। बया, खास तौर से नर बया आसानी से पालतू बनाई जा सकती है और वह मनबहलाव का अच्छा साधन है। उसे मनकों के छिद्रों में धागा पिरोना, कूची से रंग उकेरकर चित्र बनाना और चोंच से हारमोनियम बजाना सिखाया जा सकता है। दाना चुगने की उसकी आदत के कारण बया को कुछ लोग फसलों के लिए नुकसानकारक मानते हैं, पर उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि बया दानों के साथ-साथ उन कीडों को भी खाती है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, खासकर,जब बया के घोंसले में चूजे होते हैं।