- Back to Home »
- Suggestion / Opinion »
- तलाक तलाक तलाक के मुद्दे पर कुरान के मुताबिक संशोधन की सख्त जरूरत.........
Posted by : achhiduniya
13 June 2016
महिलाओ
को समान अधिकार मिले इसके चलते कुछ समय पूर्व उत्तराखंड की महिला सायरा बानो के
सुप्रीम कोर्ट जाने और कुछ महिलाओं के तलाक के मामले सामने आने के बाद से तीन तलाक
के मुद्दे को लेकर बहस तेज हो गई। कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर
सरकार का रुख जानने के लिए नोटिस जारी किया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार
पर धार्मिक मामले में दखल देने का आरोप लगाते हुए कहा, तलाक के मुद्दे पर कोई बदलाव नहीं होगा क्योंकि वह शरीयत के दायरे से बाहर
नहीं जा सकता। एक साथ तीन तलाक के मुद्दे पर संशोधन की मांग को ऑल इंडिया मुस्लिम
पर्सनल लॉ बोर्ड ने भले ही खारिज कर दिया हो, लेकिन इस्लाम
के जानकारों का कहना है कि तलाक की मौजूदा व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है।
क्योंकि यह 'कुरान और इस्लाम' के मुताबिक नहीं है। जामिया मिलिया इस्लामिया में इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिस के अनुसार तलाक की जो व्यवस्था मौजूदा समय में पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्वीकारी है वो कुरान और इस्लाम के नजरिए से पूरी तरह मेल नहीं खाती है। प्रोफेसर हारिस ने कहा, तलाक की पूरी व्यवस्था को लोगों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक बना दिया है। इसमें कुरान के मुताबिक संशोधन की सख्त जरूरत है। मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करनेवाले संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन' (बीएमएमए) ने हाल ही में तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने की मांग को लेकर देशभर से 50,000 से अधिक महिलाओं के हस्ताक्षर लिए और राष्ट्रीय महिला आयोग से इस मामले में मदद मांगी। पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी ने कहा, पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो हमेशा से तलाक के खिलाफ काम किया है। हारिस कहते हैं, कुरान में स्पष्ट किया गया है कि एक साथ तीन तलाक नहीं कहा जा सकता।
एक तलाक के बाद दूसरा तलाक बोलने के बीच करीब एक महीने का अंतर होना चाहिए। इसी तरह का अंतर दूसरे और तीसरे तलाक के बीच होना चाहिए। ये व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि आखिरी समय तक सुलह की गुंजाइश बनी रहे। ऐसे में एक साथ तीन तलाक मान्य नहीं हो सकता। बीएमएमए की संयोजक नूरजहां सफिया नियाज का कहना है, मुस्लिम महिलाओं को भी संविधान में अधिकार मिले हुए हैं और अगर कोई व्यवस्था समानता और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है तो उसमें बदलाव होना चाहिए।
क्योंकि यह 'कुरान और इस्लाम' के मुताबिक नहीं है। जामिया मिलिया इस्लामिया में इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिस के अनुसार तलाक की जो व्यवस्था मौजूदा समय में पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्वीकारी है वो कुरान और इस्लाम के नजरिए से पूरी तरह मेल नहीं खाती है। प्रोफेसर हारिस ने कहा, तलाक की पूरी व्यवस्था को लोगों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक बना दिया है। इसमें कुरान के मुताबिक संशोधन की सख्त जरूरत है। मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करनेवाले संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन' (बीएमएमए) ने हाल ही में तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने की मांग को लेकर देशभर से 50,000 से अधिक महिलाओं के हस्ताक्षर लिए और राष्ट्रीय महिला आयोग से इस मामले में मदद मांगी। पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी ने कहा, पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो हमेशा से तलाक के खिलाफ काम किया है। हारिस कहते हैं, कुरान में स्पष्ट किया गया है कि एक साथ तीन तलाक नहीं कहा जा सकता।
एक तलाक के बाद दूसरा तलाक बोलने के बीच करीब एक महीने का अंतर होना चाहिए। इसी तरह का अंतर दूसरे और तीसरे तलाक के बीच होना चाहिए। ये व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि आखिरी समय तक सुलह की गुंजाइश बनी रहे। ऐसे में एक साथ तीन तलाक मान्य नहीं हो सकता। बीएमएमए की संयोजक नूरजहां सफिया नियाज का कहना है, मुस्लिम महिलाओं को भी संविधान में अधिकार मिले हुए हैं और अगर कोई व्यवस्था समानता और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है तो उसमें बदलाव होना चाहिए।


