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- सच्चाई सामने नहीं लाने के लिए पत्रकारों पर बनाया जाता है दबाव......
Posted by : achhiduniya
14 July 2016
आज
जिस तरह की पत्रकारिता की जाती है। यह सभी जानते है लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी
है। दुनिया भर के देश आम लोगों को सच्चाई से मरहूम रखने के लिए किस कदर लगे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन तक जानकारी पहुंचाने वाले
पत्रकारों को भी नहीं बख्शा जाता है और उन्हें मानसिक, आर्थिक और शारीरिक कष्ट देकर
भ्रमजाल बनाए रखने की कोशिश की जाती है। हाल में एक प्रसिद्ध पत्रिका में प्रकाशित
रिपोर्ट 'डेंजर इन ट्रुथ: ट्रुथ इन डेंजर' में बताया गया है कि पत्रकारों पर सिर्फ शारीरिक हमले ही नहीं किए जाते
हैं बल्कि उन पर कई तरह के दबाव बनाए जाते हैं ताकि वे लोगों के सामने सच्चाई न
लाएं। पत्रकारों को रहस्यों पर से पर्दा उठाने और भ्रमों को तोड़ने की महंगी कीमत
चुकानी पड़ती है। रिपोर्ट के अनुसार सत्य प्रकाशित न हो इसके लिए पत्रकारों का
अपहरण कर लिया जाता है, हत्या कर दी जाती है, आर्थिक दबाव बनाया जाता है तथा कई बार उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर
कर दिया जाता है। कई देशों में पत्रकार अब घटनाक्रम पर बारीक नजर रखने वाले सिर्फ
पर्यवेक्षक नहीं रहे बल्कि उन पर सीधे हमले किए जाते हैं।
वरिष्ठ पत्रकारों के मुताबिक सीरिया, इराक जैसे देश अब रिपोर्टिंग करने लायक नहीं रहे क्योंकि ऐसे देशों में काम करना जान जोखिम में डालना है। सीरिया में तैनात पत्रकारों का कहना है कि अब वहां बहुत ही कम अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार बचे हैं और जो वहां रह गए हैं वे बहुत दबाव में रहते हैं। इनमें कई पत्रकारों को जान का जोखिम भी झेलना पड़ता है। कुछ का अपहरण हुआ है तो कुछ पत्रकारों को युद्ध के दौरान जान गंवानी पड़ी है। लेकिन सच्चाई को बाहर लाने की जिम्मेदारी और कर्तव्य के कारण वे हर खतरे को उठाते हैं क्योंकि यह उनके प्रोफेशन की डिमांड है। आतंकवादी होने का ठप्पा लग जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब पत्रकारों पर बड़ी आसानी से आतंकवादी होने का ठप्पा लगा दिया जाता है और इस तरह सरकारें उन रिपोटरें पर लगाम लगा देती हैं जो उनके खिलाफ होती हैं। मीडिया को मिली आजादी के बारे में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में 40 से अधिक देशों के पत्रकारों की हालत का आकलन किया गया और पाया गया कि इन देशों में ऐसे 35 मामले थे। जिनमें पत्रकारों को आतंकवादियों से जोड़ दिया गया। इनमें से 11 मामले रूस के थे और शेष मामले बेल्जियम, हंगरी, फ्रांस और स्पेन के थे।
वरिष्ठ पत्रकारों के मुताबिक सीरिया, इराक जैसे देश अब रिपोर्टिंग करने लायक नहीं रहे क्योंकि ऐसे देशों में काम करना जान जोखिम में डालना है। सीरिया में तैनात पत्रकारों का कहना है कि अब वहां बहुत ही कम अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार बचे हैं और जो वहां रह गए हैं वे बहुत दबाव में रहते हैं। इनमें कई पत्रकारों को जान का जोखिम भी झेलना पड़ता है। कुछ का अपहरण हुआ है तो कुछ पत्रकारों को युद्ध के दौरान जान गंवानी पड़ी है। लेकिन सच्चाई को बाहर लाने की जिम्मेदारी और कर्तव्य के कारण वे हर खतरे को उठाते हैं क्योंकि यह उनके प्रोफेशन की डिमांड है। आतंकवादी होने का ठप्पा लग जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब पत्रकारों पर बड़ी आसानी से आतंकवादी होने का ठप्पा लगा दिया जाता है और इस तरह सरकारें उन रिपोटरें पर लगाम लगा देती हैं जो उनके खिलाफ होती हैं। मीडिया को मिली आजादी के बारे में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में 40 से अधिक देशों के पत्रकारों की हालत का आकलन किया गया और पाया गया कि इन देशों में ऐसे 35 मामले थे। जिनमें पत्रकारों को आतंकवादियों से जोड़ दिया गया। इनमें से 11 मामले रूस के थे और शेष मामले बेल्जियम, हंगरी, फ्रांस और स्पेन के थे।