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- फर्श की शान कैसे बनाए जाते है कालीन......?
Posted by : achhiduniya
17 July 2016
कालीन
का इस्तेमाल फर्श को ढकने और उसकी सुंदरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। कालीन
बुनने में सिल्क का इस्तेमाल किया जाता है। सिल्क के बने कालीन बढ़िया क्वालिटी के
और महंगे होते हैं। इसके बाद गुणवत्ता में ऊनी कालीन आते हैं। यह भी हाथ से बनाए
जाते हैं। इनकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि इन्हें लंबे समय तक अच्छे ढंग से रखा जा
सकता है। सिंथेटिक फाइबर में नाइलॉन और एक्रिलिक विशेष तौर पर लोगों द्वारा पसंद
किए जाते हैं। एक्रिलिक से बने कालीनों को मेंटेन करना आसान होता है यह नमी में भी
सही बने रहते हैं और यह सिल्क और ऊनी कालीनों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं। हाथ
से बने कालीन महंगे होते हैं क्योंकि इन्हें बनाने में काफी लंबा समय लगता है।
ये परंपरागत लूम पर बनाए जाते हैं। हाथ से बने कालीन की गुणवत्ता उनकी मोटाई पर टिकी होती है। हाथ से बना कालीन विशिष्ट होता है। इसमें पूरे परिवार के सदस्यों की मेहनत लगी होती है, जिसे बनाने में चार से पांच महीने का समय लग जाता है। हाथ से बने कालीनों को बनाने का पेशा पुश्तैनी होता है जिसमें डिजाइनों को बनाने के लिए गुप्तकोड निर्धारित किए जाते हैं। उनके डिजाइन कोई दूसरा व्यक्ति कॉपी न करे इसके लिए भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी ध्यान रखना होता है। हाथों के बने कालीन भले ही दिखने में एक से लगते हों लेकिन हर कालीन मास्टर पीस होता है और हर कालीन की भाषा अलग होती है। इसी के अनुसार कालीन का मूल्य तय किया जाता है। हाथ के बने ऊनी, कश्मीरी कालीन 1500 से 2000 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिलते हैं। जबकि सिल्क कालीन दो से तीन हजार वर्ग फीट में मिलते हैं। कालीनप्रेमियों के लिए मशीन से बने कालीन एक सस्ता विकल्प भी हैं। हालांकि आज मशीन से बने कालीनों में भी नए आधुनिक डिजाइनों को समाहित किया गया है।
इनमें हाथ से बने कालीनों के डिजाइन को कॉपी किया जाने लगा है। मशीन से बने कालीन में बेस कॉटन या जूट का रखा जाता है। इस तरह का कालीन पांच से आठ साल तक टिकाऊ होता है। धागों के पीछे से बने कालीन सस्ते और लोकप्रिय हैं। इसमें धागों के गुच्छों को नीडल गन या मशीन की सहायता से बुना जाता है। यह ऊनी, सिंथेटिक या मिली-जुली फाइबर से बनाए जाते हैं। किसी भी कालीन की गुणवत्ता की जांच उसकी गांठों से की जाती है। कालीन की मोटाई, इस्तेमाल होने वाले धागे की क्वालिटी और गांठों के घनत्व पर निर्भर करती है। कालीन का इस्तेमाल हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सदियों से किया जा रहा है। अब तरह-तरह के फेब्रिक, डिजाइन और रंगों में ये बनाए जाते हैं। हर वर्ग की जरूरत के अनुसार और हर व्यक्ति के बजट और पसंद के अनुरूप इन्हें बनाया जाता है।
ये परंपरागत लूम पर बनाए जाते हैं। हाथ से बने कालीन की गुणवत्ता उनकी मोटाई पर टिकी होती है। हाथ से बना कालीन विशिष्ट होता है। इसमें पूरे परिवार के सदस्यों की मेहनत लगी होती है, जिसे बनाने में चार से पांच महीने का समय लग जाता है। हाथ से बने कालीनों को बनाने का पेशा पुश्तैनी होता है जिसमें डिजाइनों को बनाने के लिए गुप्तकोड निर्धारित किए जाते हैं। उनके डिजाइन कोई दूसरा व्यक्ति कॉपी न करे इसके लिए भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी ध्यान रखना होता है। हाथों के बने कालीन भले ही दिखने में एक से लगते हों लेकिन हर कालीन मास्टर पीस होता है और हर कालीन की भाषा अलग होती है। इसी के अनुसार कालीन का मूल्य तय किया जाता है। हाथ के बने ऊनी, कश्मीरी कालीन 1500 से 2000 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिलते हैं। जबकि सिल्क कालीन दो से तीन हजार वर्ग फीट में मिलते हैं। कालीनप्रेमियों के लिए मशीन से बने कालीन एक सस्ता विकल्प भी हैं। हालांकि आज मशीन से बने कालीनों में भी नए आधुनिक डिजाइनों को समाहित किया गया है।
इनमें हाथ से बने कालीनों के डिजाइन को कॉपी किया जाने लगा है। मशीन से बने कालीन में बेस कॉटन या जूट का रखा जाता है। इस तरह का कालीन पांच से आठ साल तक टिकाऊ होता है। धागों के पीछे से बने कालीन सस्ते और लोकप्रिय हैं। इसमें धागों के गुच्छों को नीडल गन या मशीन की सहायता से बुना जाता है। यह ऊनी, सिंथेटिक या मिली-जुली फाइबर से बनाए जाते हैं। किसी भी कालीन की गुणवत्ता की जांच उसकी गांठों से की जाती है। कालीन की मोटाई, इस्तेमाल होने वाले धागे की क्वालिटी और गांठों के घनत्व पर निर्भर करती है। कालीन का इस्तेमाल हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सदियों से किया जा रहा है। अब तरह-तरह के फेब्रिक, डिजाइन और रंगों में ये बनाए जाते हैं। हर वर्ग की जरूरत के अनुसार और हर व्यक्ति के बजट और पसंद के अनुरूप इन्हें बनाया जाता है।


