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- राज्य आयोग से करे बैंक के खिलाफ सेवा में कमी की शिकायत….
Posted by : achhiduniya
04 July 2016
कई
बार हम बैक के द्वारा दी जा रही सेवा पर ध्यान नही देते जिससे बाद मे हमे धोखे का
सामना करना पड़ता है। ऐसे मे क्या किया जा सकता है आइए जानते है एक घटना जो कुछ
वक्त पहले की है। क्या आपका पैसा बैंक में सुरक्षित है? अपनी पास बुक में बैंक से समय-समय पर एंट्री करवाएं तथा उसे ध्यान से पढे।
ऐसे एक मामले में शिकायतकर्ता का एक बचत
खाता एचडीएफसी बैंक में था जहां उसने चेक बुक, एटीएम की
सुविधा ली हुई थी। 29 अप्रैल 2006 को
जब उपभोक्ता ने अपनी पास बुक देखी तो पाया कि 1.6 लाख रुपए
गायब थे। उसके बैंक से पूछताछ करने पर बताया गया कि नेट बैंकिंग द्वारा ये पैसे
तिकरमी सिंध के अकाउंट में डाले गए हैं। शिकायतकर्ता के अनुसार उसने नेट बैंकिंग
के लिए कभी भी प्रस्ताव नहीं दिया। अत: बैंक को लापरवाही तथा सेवा में कमी के लिए
जिम्मेदार ठहराते हुए उसने बैंक से पैसे वापस करने की दर्खास्त की।बैंक ने कहा कि उन्हें 8/2/2006 को नेट
बैंकिंग अकाउंट खोलने के लिए चिट्ठी प्राप्त हुई थी तथा उनके द्वारा गुप्त पासवर्ड
भी नए पते पर भेज दिया गया था। जिसमें यह लिखा था कि अपना पासवर्ड किसी को न
बताएं।
जिला उपभोक्ता फोरम के सामने जब मामला आया तो उन्होंने उपभोक्ता को पासवर्ड संभाल के न रखने के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए नतीजा दिया इस पर उपभोक्ता ने राज्य आयोग में अपील की और आयोग ने पाया कि शिकायतकर्ता ने नेट बैंकिंग के लिए कभी प्रस्ताव नहीं दिया था और फार्म पर हस्ताक्षर भी जाली थे। अगर बैंक मैनेजर हस्ताक्षर को मिलाता तो यह गलती पकड़ी जाती। अत:उन्होंने बैंक को लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया और शिकायतकर्ता के पैसे वापस करने को कहा। इस पर बैंक ने राष्ट्रीय आयोग में अपील की जहां राज्य आयोग द्वारा निर्णय को सही मानते हुए आयोग ने कहा कि अगर बैंक द्वारा जाली हस्ताक्षर जो नेट बैंकिंग के लिए तथा पता बदलने के लिए थे वह गलती न होती और वे ध्यान से काम करते तो शिकायतकर्ता का नुकसान न होता। अत: बैंक को 1.6 लाख रुपए तुरंत शिकायकर्ता को देने को कहा गया। मित्र - डॉ. शीतलकपूर [उपभोक्ता मामलों की जानकार] की तरफ से जनहित के लिए
जिला उपभोक्ता फोरम के सामने जब मामला आया तो उन्होंने उपभोक्ता को पासवर्ड संभाल के न रखने के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए नतीजा दिया इस पर उपभोक्ता ने राज्य आयोग में अपील की और आयोग ने पाया कि शिकायतकर्ता ने नेट बैंकिंग के लिए कभी प्रस्ताव नहीं दिया था और फार्म पर हस्ताक्षर भी जाली थे। अगर बैंक मैनेजर हस्ताक्षर को मिलाता तो यह गलती पकड़ी जाती। अत:उन्होंने बैंक को लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया और शिकायतकर्ता के पैसे वापस करने को कहा। इस पर बैंक ने राष्ट्रीय आयोग में अपील की जहां राज्य आयोग द्वारा निर्णय को सही मानते हुए आयोग ने कहा कि अगर बैंक द्वारा जाली हस्ताक्षर जो नेट बैंकिंग के लिए तथा पता बदलने के लिए थे वह गलती न होती और वे ध्यान से काम करते तो शिकायतकर्ता का नुकसान न होता। अत: बैंक को 1.6 लाख रुपए तुरंत शिकायकर्ता को देने को कहा गया। मित्र - डॉ. शीतलकपूर [उपभोक्ता मामलों की जानकार] की तरफ से जनहित के लिए