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- बेटे का सौदा.......
Posted by : achhiduniya
08 July 2016
एक
तरफ हो रही कन्या भ्रूण हत्या तो दूसरी तरफ दहेज की आग मे जलती बहुए और लड़किया इसके
लिए नारी को अपनी आवाज बुलंद करने की जरूरत आन पड़ी है। जैसे एक दहेज में मोटी रकम
की आस लगाये गोपीचन्द शर्मा अपनी पत्नी एवं बेटे कुन्दन के साथ रमाकान्त के द्वार
पर हंसते-मुस्कुराते पहुंचे। रमाकान्त जी ने बहुत आदर-सत्कार के साथ उन्हें अपने
ड्राइंगरुम में बिठाया। इतने में रमाकान्तजी की पत्नी पार्वती भी मन में प्रसन्नता
के भाव लिए गोपी बाबू की पत्नी से मिलीं। गोपी बाबू अपनी पत्नी एवं बेटे कुन्दन के
साथ सोफे पर बैठ गए और ठीक सामने रमाकान्त जी सहित पार्वती भी बैठ गईं। औपचारिक
बातों का सिलसिला शुरू हो गया। इतने में सेवकराम ट्रे में पानी लिए उपस्थित हुआ तो
दीनू कुछ मिठाइयां एवं नमकीन लिये हाजिर हुआ।
रमाकान्त जी ने नमकीन, मिठाइयों एवं बिस्कुटों की ओर संकेत करते हुए कहा, गोपी बाबू, जल ग्रहण किया जाए। 'हां, हां क्यों नहीं। पर वो बिटिया दिखाई नहीं दे रही है?' अभी वो कुछ और आगे कहते कि शालिनी अपनी भाभी के साथ आई और भाभी ने उसे कुन्दन के सामने बिठा दिया। चाय का सिप लेते हुए उन्होंने कुन्दन की ओर मुखातिब होते हुए कहा, बेटा, लड़की को ठीक से देख लो, पसंद आए तो लेन-देन की बात करें। यह बात शालिनी के स्वाभिमान को बुरी तरह आहत कर गई। वह सोफे से उठ खड़ी हुई और गोपी बाबू से बोली,'मि.शर्मा, मैं प्रदर्शनी में रखी कोई बिकाऊ वस्तु नहीं हूं, जिसे आपका बेटा पसंद या नापसंद करेगा। 'बेटा ये हमारे अतिथि हैं। 'पापा जो नारी को सामान समझे वो कैसा अतिथि। गोपी बाबू के चेहरे का रंग कभी लाल तो कभी पीला होने लगा। 'यही नहीं इसके साथ मेरी कुछ शर्तें भी हैं, जिन्हें आप द्वारा मान लेने पर ही आगे बात होगी लड़की ने कहा।
'वो क्या हैं?' स्तब्ध गोपी बाबू ने पूछा। 'यदि मेरी शादी आपके लड़के से हो जाती है,तो यह हमारे यहां घरजमाई बनकर रहेगा। सारी कमाई मेरे माता-पिता के हाथ में देगा,मेरे माता-पिता जो कहेंगे, इसे करना पड़ेगा। दहेज लेना-देना दोनों जुर्म है। उसका तो प्रश्न ही नहीं उठता। यदि मेरी शर्तें मंजूर हैं तो ठीक, वरना जिस दरवाजे से आप लोग आए हैं, जा सकते हैं। 'बेटा ऐसा नहीं कहते.' रमाकान्त जी बेटी को समझाने के ख्य़ाल से कहा।''नहीं पापा, जो लोग नारी को सामान समझें उनके साथ ऐसा ही सलूक होना चाहिए।”
रमाकान्त जी ने नमकीन, मिठाइयों एवं बिस्कुटों की ओर संकेत करते हुए कहा, गोपी बाबू, जल ग्रहण किया जाए। 'हां, हां क्यों नहीं। पर वो बिटिया दिखाई नहीं दे रही है?' अभी वो कुछ और आगे कहते कि शालिनी अपनी भाभी के साथ आई और भाभी ने उसे कुन्दन के सामने बिठा दिया। चाय का सिप लेते हुए उन्होंने कुन्दन की ओर मुखातिब होते हुए कहा, बेटा, लड़की को ठीक से देख लो, पसंद आए तो लेन-देन की बात करें। यह बात शालिनी के स्वाभिमान को बुरी तरह आहत कर गई। वह सोफे से उठ खड़ी हुई और गोपी बाबू से बोली,'मि.शर्मा, मैं प्रदर्शनी में रखी कोई बिकाऊ वस्तु नहीं हूं, जिसे आपका बेटा पसंद या नापसंद करेगा। 'बेटा ये हमारे अतिथि हैं। 'पापा जो नारी को सामान समझे वो कैसा अतिथि। गोपी बाबू के चेहरे का रंग कभी लाल तो कभी पीला होने लगा। 'यही नहीं इसके साथ मेरी कुछ शर्तें भी हैं, जिन्हें आप द्वारा मान लेने पर ही आगे बात होगी लड़की ने कहा।
'वो क्या हैं?' स्तब्ध गोपी बाबू ने पूछा। 'यदि मेरी शादी आपके लड़के से हो जाती है,तो यह हमारे यहां घरजमाई बनकर रहेगा। सारी कमाई मेरे माता-पिता के हाथ में देगा,मेरे माता-पिता जो कहेंगे, इसे करना पड़ेगा। दहेज लेना-देना दोनों जुर्म है। उसका तो प्रश्न ही नहीं उठता। यदि मेरी शर्तें मंजूर हैं तो ठीक, वरना जिस दरवाजे से आप लोग आए हैं, जा सकते हैं। 'बेटा ऐसा नहीं कहते.' रमाकान्त जी बेटी को समझाने के ख्य़ाल से कहा।''नहीं पापा, जो लोग नारी को सामान समझें उनके साथ ऐसा ही सलूक होना चाहिए।”