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- मानवता धर्म निभाते... भूखों को खाना खिलाते... सैयद उस्मान अजहर मकसुसी
Posted by : achhiduniya
21 May 2018
हैदराबाद के दबीरपुरा फ्लाईओरवर के समीप सैयद उस्मान अजहर मकसुसी जिन्होने पिछले छह साल से भूखों और जरूरतमंदों की भूख मिटाना अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है। इनका एक नारा है कि भूखों का कोई मजहब नहीं होता है। चार साल की उम्र में ही सिर से पिता का साया उठ जाने के पाद खुद भूखे रहने की पीड़ा झेल चुके अजहर भूखों का दर्द समझते हैं इसलिए वह उनके कष्टों को दूर करने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं। फ्लाईओवर के नीचे छह साल पहले एक दिन उन्हें एक बेघर औरत मिली जिनसे भूखों को खाना खिलाने का काम शुरू करने की प्रेरणा मिली।
36 साल के अजहर ने उस वाकये को याद करते हुए कहा, 'लक्ष्मी भूख से छटपटा रही थी। वह बिलख-बिलख कर रो रही थी। मैंने उसे खाना खिलाया और तभी फैसला किया कि मेरे पास जो सीमित संसाधन है उससे मैं भूखों की भूख मिटाऊंगा। शुरुआत में उनकी पत्नी घर में ही खाना पकाती थीं और वह फ्लाईओवर के पास खाना लाकर भूखे लोगों को परोसते थे। बाद में उन्होंने वहीं खाना तैयार करना शुरू कर दिया। इससे किराये की बचत हुई। अजहर ने कहा, शुरुआत में 30-35 लोग यहां होते थे मगर आज 150 से ज्यादा हैं, जिन्हें मैं रोज खाना खिलाता हूं। अजहर की एक संस्था है जो अब इस काम का संचालन करती है। संस्था का नाम है सनी वेल्फेयर फाउंडेशन संस्था ने आज खाना पकाने के लिए दो रसोइयों को रखा है।
बॉलीवुड अभिनेता सलमान ने अपने कार्यक्रम 'बीइंग ह्यूमन' में हिस्सा लेने के लिए मुंबई बुलाया था। उनका चयन देशभर के छह ऐसे लोगों में किया गया था, जो वास्तविक जीवन में नायक हैं। अजहर ने सलमान के साथ बातचीत की और उनके साथ फोटो भी खिंचवाई। इससे पहले सामाजिक कार्यकर्ता अजहर 'आज की रात है जिंदगी' में शामिल हुए थे जिसकी मेजबानी मेगास्टार अमिताभ बच्चन कर रहे थे। विभिन्न संगठनों ने भी उनको सम्मानित किया है। हालांकि अजहर आज भी जमीन से जुड़े हैं और कहते हैं, मुझे कोई दफ्तर या कर्मचारी की जरूरत नहीं है। मेरे लाइफस्टाइल में कोई बदलाव नहीं आया है। अजहर किसी से पैसे नहीं मांगते हैं। उन्होंने कहा, जो लोग चावल और दाल लेकर आते हैं उनका दान मैं स्वीकार कर लेता हूं। मैं किसी से नकद में पैसे नहीं लेता बशर्ते कि दानदाता चावल या दाल देने की स्थिति में न हो। तीन साल पहले उन्होंने यहां के अलावा सिकंदराबाद स्थित गांधी अस्पताल में भी भूखों को खाना खिलाने का काम शुरू कर दिया।
फाउंडेशन की वैन में रोज 150-200 लोगों का खाना यहां से जाता है। फाउंडेशन कुछ एनजीओ के साथ मिलकर बेंगलुरु, गुवाहाटी, रायचूर और तांदुर शहर में रोजाना आहार कार्यक्रम का संचालन करता है। अजहर को खुशी है कि जो काम उन्होंने अकेले शुरू किया था आज उसके साथ कारवां सज गया है और अनेक लोग व संगठन उनके काम से प्रेरित हुए हैं। अजहर को इससे अपनी कामयाबी का अहसास होता है। उनका मानना है कि सपना तभी साकार होगा जब इस देश से और दुनिया से भूख मिट जाएगी। भूख नाम की कोई चीज नहीं होनी चाहिए। दबीरपुरा फ्लाईओवर के पास उनकी प्लास्टर ऑफ पेरिस की दुकान है जहां वह हर दिन सुबह और शाम कुछ घंटे बिताते हैं। उन्होंने कहा, बाकी समय मैं दोनों जगहों पर भोजन की व्यवस्था में लगा रहता हूं। अजहर को इस काम में उनके भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के अलावा कुछ कार्यकर्ता वीकऐंड में उनका हाथ बंटाते हैं। अजहर ने कहा, मैं यह नहीं देखता कि कौन खाने को आ रहा है। मैं बस यही जानता हूं कि सभी भूखे हैं। यही उनका ठिकाना है। दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम।