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- धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है..... सुप्रीम कोर्ट
Posted by : achhiduniya
30 July 2018
दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि महिला सिर्फ पति की पसंदीदा बनने के लिए ऐसा क्यों करे? क्या वो पालतू भेड़ बकरियां है? उसकी भी अपनी पहचान है। र्ट ने कहा कि ये व्यवस्था भले ही धार्मिक हो, लेकिन पहली नज़र में महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नज़र आती है। कोर्ट ने ये भी कहा कि सवाल ये है कि कोई भी महिला के जननांग को क्यों छुए? वैसे भी धार्मिक नियमों के पालन का अधिकार इस सीमा से बंधा है कि नियम सामाजिक नैतिकता और व्यक्तिगत स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाला न हो। याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी ने कहा कि बोहरा मुस्लिम समुदाय इस व्यवस्था को धार्मिक नियम कहता है। समुदाय का मानना है कि 7 साल की लड़की का खतना कर दिया जाना चाहिए।
इससे वो शुद्ध हो जाती है। ऐसी औरतें पति की भी पसंदीदा होती हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि खतना की प्रक्रिया को अप्रशिक्षित लोग अंजाम देते हैं। कई मामलों में बच्ची का इतना ज्यादा खून बह जाता है कि वो गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है। याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने आगे कहा कि दुनिया भर में ऐसी प्रथाएं बैन हो रही हैं। खुद धार्मिक अंजुमन ऐसा कर रहे हैं। इस्लाम भी मानता है, जहां रहो, वहां के कानून का सम्मान करो। वैसे भी किसी को भी बच्ची के जननांग छूने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए। IPC की धारा 375 की बदली हुई परिभाषा में ये बलात्कार के दायरे में आता है। बच्ची के साथ ऐसा करना पॉक्सो एक्ट के तहत भी अपराध है।
सुनवाई के दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई कि क्लिटोरल हुड के कट जाने से महिलाएं यौन सुख से वंचित हो जाती हैं। केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका का समर्थन करते हुए कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और वह इस पर रोक का समर्थन करता है। इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है। आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इस्लामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिवारी ने याचिका दायर कर इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग की है।


