- Back to Home »
- Property / Investment »
- पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने दी केंद्र सरकार को सलाह....
Posted by : achhiduniya
10 November 2018
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बर्कले में शुक्रवार को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में कहा कि नोटबंदी और जीएसटी इन दो मुद्दों से प्रभावित होने से पहले 2012 से 2016 के बीच चार साल के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि काफी तेज रही। भारत के भविष्य पर आयोजित सेकेंड भट्टाचार्य व्याख्यान में राजन ने कहा, नोटबंदी और जीएसटी के दो लगातार झटकों ने देश की आर्थिक वृद्धि पर गंभीर असर डाला। देश की वृद्धि दर ऐसे समय में गिरने लग गई जब वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर गति पकड़ रही थी। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने नोटबंदी और जीएसटी को देश की आर्थिक वृद्धि की राह में आने वाली ऐसी दो बड़ी अड़चन बताया जिसने पिछले साल वृद्धि की रफ्तार को प्रभावित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सात प्रतिशत की मौजूदा वृद्धि दर देश की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है। राजन ने वैश्विक वृद्धि के प्रति भारत के संवेदनशील होने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि भारत अब काफी खुली अर्थव्यवस्था है। यदि विश्व वृद्धि करता है तो भारत भी वृद्धि करता है।
उन्होंने
कहा, 2017
में यह हुआ कि विश्व की वृद्धि के गति पकड़ने के बाद भी भारत की रफ्तार सुस्त पड़ी।
इससे पता चलता है कि इन झटकों (नोटबंदी और जीएसटी) वास्तव में गहरे झटके थे।
इन झटकों के कारण हमें ठिठकना पड़ा। राजन ने कहा कि देश के
सामने अभी तीन दिक्कतें हैं। पहली दिक्कत उबड़-खाबड़ बुनियादी संरचना है। उन्होंने
कहा कि निर्माण वह उद्योग है जो अर्थव्यवस्था को शुरुआती चरण में चलाता है। उसके
बाद बुनियादी संरचना से वृद्धि का सृजन होता है। उन्होंने कहा कि दूसरा अल्पकालिक
लक्ष्य बिजली क्षेत्र की स्थिति को बेहतर बनाना हो सकता है। यह सुनिश्चित किया
जाना चाहिये कि सालाना उत्पन्न बिजली उनके पास पहुंचे जिन्हें इसकी जरूरत है। तीसरा
मुद्दा बैंकों के कर्ज खातों को साफ सुथरा बनाना है। राजन ने कहा कि भारत में
समस्या का एक हिस्सा यह है कि वहां राजनीतिक निर्णय लेने की व्यवस्था हद से अधिक
केन्द्रीकृत है।
राजन ने कहा, भारत केंद्र से काम नहीं कर सकता है। भारत तब काम करता है जब कई
लोग बोझ उठा रहे हों। आज के समय में केंद्र सरकार बेहद केंद्रीकृत है। उन्होंने
कहा, इसका
एक उदाहरण है कि बहुत सारे निर्णय के लिये प्रधानमंत्री कार्यालय की सहमति आवश्यक
है। इस संबंध में राजन ने हाल ही में अनावृत की गई सरदार पटेल की मूर्ति ‘स्टैच्यू
ऑफ यूनिटी’ का
जिक्र करते हुए बड़ी परियोजनाओं में प्रधानमंत्री कार्यालय की सहमति की जरूरत को
रेखांकित किया। उन्होंने कहा, उदाहरण के तौर पर हमने इतनी बड़ी सरदार पटेल की मूर्ति समय पर
बनाई। इससे पता चलता है कि जहां चाह वहां राह. क्या हम किसी और चीज के लिए इस तरह
की इच्छाशक्ति दिखा सकते हैं।