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- भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस पर श्रद्धा सुमन....
Posted by : achhiduniya
06 December 2018
14 अप्रैल 1891 को वर्तमान मध्यप्रदेश के महू में जन्मे आंबेडकर के पिता रामोजी ब्रिटिश फौज में सैनिक थे। आंबेडकर महार जाति से आते थे। उनके पिता ने महू से मुंबई (तब बॉम्बे) शिफ्ट कर गये थे। आंबेडकर की स्कूली शिक्षा-दीक्षा मुंबई में ही हुई। मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद आंबेडकर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका और फिर ब्रिटेन चले गये। आंबेडकर ने इकोनॉमिक्स में पीएचडी करने के साथ ही लंदन से बैरिस्टर की डिग्री भी हासिल की। आंबेडकर अर्थशास्त्र और क़ानून के साथ ही भारतीय इतिहास और धर्मग्रंथों के भी बड़े विद्वान थे। उन्होंने मृत्यु से कुछ महीने पहले ही सार्जवनिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लिया था। आंबेडकर ने जाति व्यवस्था और बौद्ध धर्म पर कई किताबें लिखीं जो इन विषयों पर मौलिक योगदान मानी जाती हैं। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर समाज में दलित वर्ग को समानता दिलाने के जीवन भर संघर्ष करते रहे। उन्होंने दलित समुदाय के लिए एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो।
1932
में ब्रिटिश सरकार ने आंबेडकर की पृथक
निर्वाचिका के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, लेकिन इसके
विरोध में महात्मा गांधी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। इसके बाद आंबेडकर ने अपनी मांग वापस ले ली। बदले में दलित
समुदाय को सीटों में आरक्षण और मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार देने के साथ ही छुआ-छूत खत्म करने की बात मान ली गई। डॉक्टर
भीमराव आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक
औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। इस समारोह में उन्होंने श्रीलंका के
महान बौद्ध भिक्षु महत्थवीर चंद्रमणी से पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को
अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया।
आंबेडकर ने 1956
में अपनी आखरी किताब बौद्ध धर्म पर लिखी जिसका नाम था द बुद्ध एंड हिज़ धम्म. यह किताब उनकी मृत्यु के बाद 1957 में प्रकाशित हुई। आंबेडकर बचपन से
ही कुशाग्र बुद्धि थे,लेकिन जातीय छुआछूत की वजह से उन्हें
प्रारंभिक शिक्षा लेने में
भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्कूल में उनका उपनाम उनके गांव के नाम के आधार
पर आंबडवेकर लिखवाया गया था। स्कूल के एक टीचर को भीमराव
से बड़ा लगाव था और उन्होंने उनके उपनाम आंबडवेकर को सरल करते हुए उसे आंबेडकर कर दिया। डॉक्टर आंबेडकर ने छुआ-छूत और
जातिवाद के खात्मे के लिए खूब आंदोलन किए।
उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, दलितों और समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए न्योछावर कर दिया। वे स्वतंत्र
भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय
संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे। उनके विचार ऐसे रहे हैं जिसे न
तो दलित राजनीति करने वाली पार्टियां खारिज कर पाई है और न ही सवर्णों की राजनीति
करने वाली पार्टियां। भारतीय संविधान के निर्माता माने जाने वाले डॉ आंबेडकर का
निधन छह दिसंबर 1956 को हुआ था।



