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- कुंठित मानसिकता ही समाज की सबसे बड़ी विकलांगता.....
Posted by : achhiduniya
04 December 2018
विकासात्मक देरी वाले लोगों के प्रति इतिहास दयालु नहीं रहा है।
पूरे इतिहास में विकासात्मक देरी वाले लोगों को निर्णय लेने और विकास के लिए उनकी
क्षमता को अयोग्य और अक्षम करार किया जाता रहा है। यूरोप में आत्मज्ञान के प्रसार
तक देखभाल और आश्रय परिवारों व चर्च (धार्मिक मठों और अन्य धार्मिक समुदायों में)
द्वारा प्रदान किया गया था, जिनमें भोजन, घर व कपड़े
जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के प्रावधानों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता था।
रुढिबद्ध धारणा के मुताबिक कम बुद्धिवाला गंवार और संभावित रूप से नुकसानदेह
प्रकृति वाले लोग (मिरगी रोग से ग्रस्त राक्षसी प्रकृति वाले) एक समय सामाजिक
व्यवहार में प्रमुख थे। पुनर्जागरण के दौरान समुदायों के लोग नावों पर उन्ही लोगों
को भेजते थे, जो विकासात्मक देरी से प्रभावित थे।
वे
इन्हें मूर्खों के जहाज कहते थे और वे दूसरे बंदरगाह दिखा देते थे, ताकि ये किसी दूसरे समुदाय में चले जायें। बीसवीं
सदी के शुरू में युजनिक्स (आबादी को नियंत्रित करने वाले) आंदोलन पूरी दुनिया में
लोकप्रिय बन गया। इसकी वजह से ज्यादातर विकसित देशों में बलात् नसबंदी और शादी के
निषेध के लिए मजबूर करने की प्रवृत्ति दिखी और बाद में हिटलर ने यहूदियों के
नरसंहार के दौरान मानसिक रूप से विकलांग लोगों की सामूहिक हत्या को तार्किक बताया।
युजनिक्स आंदोलन बाद में गंभीरता रूप से त्रुटिपूर्ण हो गया और मानवाधिकारों का
उल्लंघन होने लगा। इस तरह 20 वीं सदी के मध्य तक जबरन नसबंदी और शादी से निषेध का
अभ्यास ज्यादातर विकसित दुनिया में बंद हो गया। 18 वीं और 19 वीं शताब्दियों में
व्यक्तिवाद के आंदोलन और औद्योगिक क्रांति से पैदा हुए अवसरों के चलते मानसिक
चिकित्सालयों के मॉडल पर आवास और देखभाल करने की प्रवृत्ति दिखी।
लोगों को उनके
परिवारों से हटाकर (आम तौर पर बचपन में) बड़े संस्थानों में रखा जाने लगा, (3000 लोगों तक, कुछ संस्थानों
में इससे भी ज्यादा लोगों को रखा गया, जैसे 1960 के
दशक में पेंसिल्वेनिया राज्य के फिलाडेल्फिया सरकारी अस्पताल में 7,000 लोगों को
रखा गया।) जिनमें से कई उसमें रहने वालों के श्रम की बदौलत आत्मनिर्भर थे। इनमें
से कुछ संस्थानों में बहुत बुनियादी स्तर की शिक्षा (जैसे रंगों में अंतर, अक्ष्रों और अंकों की पहचान) दी जाती थी, लेकिन ज्यादातर का ध्यान केवल बुनियादी जरूरतों
के प्रावधान पर ही केंद्रित रहा। इन संस्थानों की हालत काफी विविधता लिए हुए रही, लेकिन जो सहायता प्रदान की जाती थी, वह गैर-व्यक्तिवादी व विपथगामी व्यवहार लिए हुए
थी और आर्थिक उत्पादकता के निम्न स्तर के कारण इन्हें समाज के लिए एक बोझ के रूप
में माना गया।
मादक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग और सहायता की सामूहिक पद्धतियां (जैसे
चिड़ियों को दाना चुगाना या पशुओं को चराना) अपनाई गईं और विकलांगता का चिकित्सकीय
मॉडल बरकरार रहा। सेवाएं प्रदाता की सुविधा के हिसाब से प्रदान की जाती थीं, न कि व्यक्ति की मानवीय जरूरतों पर आधारित थीं। प्रचलित
दृष्टिकोण की अनदेखी करते हुए 1952 में नागरिकों ने विकासात्मक विकलांगों की सेवा
को बड़े संगठनात्मक रूप से प्रमुखता देने का सिलसिला शुरू किया। उनके प्रारंभिक
प्रयासों में विशेष शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षकों के लिए कार्यशालाएं आयोजित
करना और विकलांग बच्चों के लिए दिवस शिविर आयोजित करना शामिल था, यह सब उस समय हुआ, जब इस तरह के
प्रशिक्षण कार्यशालाओं और कार्यक्रमों का अस्तित्व नहीं था। विकासात्मक विकलांग
लोगों के अलगाव पर शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं ने तब तक व्यापक रूप से सवाल
नहीं उठाया, जब तक 1969 में वोल्फ वोल्फेंसबर्गर के
बीजगर्भित कार्य "द ऑरिजिन एंड नेचर ऑफ आवर इंस्टीच्यूटनल मॉडेल्स" का
प्रकाशन हुआ।
इसमें कुछ ऐसे विचारों को लिया गया, जिन्हें 100
साल पहले एसजी होव ने प्रस्तावित किया था। इस पुस्तक में कहा गया है कि विकलांग
लोगों को समाज बेकार, उप मानव और दान के बोझ के रूप में मानता है
और इसका परिणाम यह होता है कि लोग इन्हें "विसामान्य" भूमिका में पाते
हैं। वोल्फेंसबर्गर ने तर्क दिया कि इस अमानवीकरण और इससे पैदा हुए अलग संस्थाओं
ने उन संभावित उत्पादक योगदानों की उपेक्षा की जो ये लोग समाज को दे सकते हैं।
उन्होंने नीति और व्यवहार में बदलाव पर जोर दिया, ताकि "विकलांगों"
की मानवीय जरूरतों को मान्यता प्राप्त हो सके और बाकी जनसंख्या जितने ही बुनियादी मानव
अधिकार प्रदान किये जा सकें।
@ विश्व विकलांग दिवस पर एक दिवसीय
कार्यशाला एवं दिव्यांगों का सत्कार संपन्न...
सामाजिक विकास कार्यक्रम के अंर्तगत विश्व विकलांग दिवस 2018 के
उपललक्ष आयुध निर्माणी शिक्षण संस्थान अंबाझरी, में एक दिवसीय
कार्यशाला का आयोजन किया गया l जिसमें प्रमुख
वक्ता संजय पवार बाल कल्याण आयोग सदस्य ने दिव्यांगों के मान सम्मान हक अधिकार एव
दिव्यांगों को शासकिय लाभ से वंचित रहने वाले कैसे दिव्यांग योजना का लाभ उठाएं
इसपर प्रकाश डाला मार्गदर्शन किया। संगीता गुप्ता निदेशक आयुध निर्माणी शिक्षण
संस्थान अंबाझरी,इन्होंने विश्व विकलांग दिवस पर मार्गदर्शन
किया। इस कार्य शाला का आयोजन आयुध निर्माणि शिक्षण संस्थान प्रशासनिक भवन में
किया गया।
इस कार्यशाला में आयुध निर्माणी अंबाझरी अपंग कर्मचारी,केंद्रीय विद्यालय के छात्र-छात्राये एवं उनके
पालक गण इस कार्यशाला में उपस्थित थे। साथ ही स्वच्छता पखवाड़ा के चलते सभी
कार्यशाला में उपस्थितियो को केंद्रीय विद्यालय की कक्षा 8 वी छात्रा दिव्यांग ईशा
पाठक ने स्वच्छता शपथ दिलाई।






