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- 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' इनसाइड स्टोरी...
Posted by : achhiduniya
11 January 2019
काफी दिनो से राजनैतिक गलियारो मे विवादित बनी फिल्म 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' कहानी कुछ इस प्रकार है यूपीए-1
और यूपीए-2 के दौरान प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह (अनुपम खेर) के कार्यकाल की,लेकिन इस फिल्म के असली नायक हैं पत्रकार संजय बारू (अक्षय खन्ना)। कहानी
शुरू होती है 2004 में सोनिया गांधी द्वारा मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए जाने
से। उसके बाद एंट्री होती है संजय बारू की जिन्हें पीएम अपना प्रेस सेक्रेटरी
बनाना चाहते हैं। संजय बारू पीएमओ में आने के लिए मनमोहन सिंह के सामने दो शर्तें
रखते हैं जिन्हें मान लिया जाता है। संजय बारू पीएम के मीडिया एडवायजर बनाए जाते
हैं और उसके बाद शुरू होती है पार्टी और पीएमओ में संघर्ष की कभी ना खत्म होने
वाली दास्तां।
फिल्म में जो भी घटनाएं दिखाई गई हैं उनके पीछे
का एक ही उद्देश्य है पार्टी और पीएम डॉ.मनमोहन सिंह के मतभेद उजागर करना। ये
साबित करना कि मनमोहन सिंह देश के लिए काम कर रहे थे और पार्टी एक परिवार के लिए।
इसके लिए भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील दिखाई गई है जिसमें लेफ्ट पार्टियों के
विरोध और पार्टी के दबाव के बावजूद मनमोहन सिंह डंटे रहे और उन्होंने अपना इस्तीफा
तक ऑफर कर दिया। इस घटना ने उनकी छवि एक मजबूत नेता के तौर पर पेश की। दूसरी घटना कश्मीर समस्या के हल के लिए पाकिस्तान
के प्रधानमंत्री से मुलाकात की है। इसमें भी पार्टी को ऐतराज था। पहला कार्यकाल
पूरा करने के बाद मनमोहन सिंह को दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाया जाता है,लेकिन उनपर तलवार लटकती रहती है। पूरे पीएमओ में
चर्चा रहती है कि कब मनमोहन सिंह का इस्तीफा होगा और राहुल गांधी का राजतिलक किया
जाएगा,लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दूसरा
कार्यकाल पूरा करते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पार्टी और देश दोनों को हैरान कर
देते हैं।
पूरी फिल्म को सिर्फ संजय बारू के नजरिए से
दिखाया गया है। कमोबेस सभी सीन में यह स्थापित करने की कोशिश की गई है कि पूरे
पीएमओ में संजय बारू से ज्यादा बुद्धिमान और सुपीरियर कोई नहीं है। पीएम मनमोहन
सिंह भी नहीं। ऐसा लगता है कि पीएमओ और पीएम को वही चला रहे हैं। संजय बारू को वो
बातें भी पता हैं जो मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के बीच हुई हैं। वो खुद को हीरो
साबित करने में लगे रहते हैं। इस वजह मनमोहन सिंह के इंटेलिजेंस पर भी कई मौके पर
सवाल उठाए गए हैं। फिल्म के क्राफ्ट की बात की जाए तो संजय
बारू की किताब 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' पर आधारित ये एक कमजोर फिल्म है।
निर्देशन के
स्तर कई खामिया नजर आती हैं। निर्देशक अपना पूरा जोर संजय बारू के किरदार को
चमकाने में खर्च कर दिया है। फिल्म में मौके-दर-मौके अटल बिहारी वाजपेयी, एपीजे अब्दुल कलाम, मुलायम सिंह
यादव, अमर सिंह, कपिल सिब्बल
आदि के दृश्य हैं,लेकिन इन पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया
है। यहां तक कि निर्देशक मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी
और राहुल गांधी के किरदारों पर काम करने की ज्यादा कोशिश नहीं की है। फिल्म में
हीरो के तौर पर दिखाए गए संजय बारू के किरदार पर निर्देशक ने पूरी ताकत झोंकी है।
दूसरा महत्वपूर्ण किरदार उन्होंने फिल्म में खलनायक के तौर पर दिखाए गए अहमद पटेल
पर झोंकी है।
कुछ जगहों पर जब निर्देशक सीन रीक्रिएट करने में असफल हो जाते हैं तो
वे मनमोहन सिंह के असल फुटेज दिखाते हैं। पूरी फिल्म
अक्षय खन्ना ही नैरेट कर रहे हैं। वो सीधे दर्शकों से बात करते हैं। ये प्रयोग
दर्शकों को बांधे रखता है। खासकर अनुपम खेर की इरिटेटिंग एक्टिंग के बीच। फिल्म कई
मौकों पर डॉक्यूमेंट्री जैसा फील देती है लेकिन उसके साथ न्याय नहीं कर पाती। निर्देशक:-
विजय रत्नाकर गुट्टे की फिल्म द एक्सिडेंटल
प्राइम मिनिस्टर,कलाकार:- अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, सुज़ेन बर्नर्ट।




