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- क्या आर्थिक मंदी की तरफ बड़ रही है दुनिया.....?
Posted by : achhiduniya
30 July 2019
एक तरफ रेलवे निजीकरण पर विचार कर रहा है वही इंडियन रेलवे बड़े पैमाने पर अपने कर्मचारियों को निकालने जा
रहा है। भारतीय रेलवे अपने सभी जोन को मिलाकर 3 लाख कर्मचारियों की
छंटनी करने जा रहा है। छंटनी की खबर ने बुरी तरह
से झकझोर दिया है। खबर है कि रेलवे 55 साल से अधिक उम्र वाले कर्मचारियों की
परफॉर्मेंस को रिव्यू कर रहा है। देश का ऑटो मोबाइल सेक्टर भयानक संकट से जूझ रहा
है। पिछले दो वर्षों में गाड़ियों की बिक्री में काफी कमी आई है। बताया गया कि ऑटो
मोबाइल सेक्टर से 10 लाख नौकरियां जा रही हैं।
इन खबरों के बीच एक सवाल ये उठता है
कि क्या दुनिया में मंदी आ चुकी है? चीन की
आर्थिक विकास दर पिछले तीन दशकों में सबसे निचले स्तर पर जा चुकी है। अमेरिका के
साथ उसके ट्रेड वॉर को इसके पीछे की वजह बताया जा रहा है,लेकिन सिर्फ यही एक वजह नहीं है। चीन की जीडीपी
में दूसरे तिमाही में 6.2 फीसदी की गिरावट आई है। ये 1992 के बाद, जबसे चीन ने जीडीपी के तिमाही आंकड़े जारी करने
शुरू किए हैं, अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। अमेरिका के
साथ चीन के टैरिफ वॉर ने वहां के मैन्युफैक्चरिंग और एग्रीकल्चर सेक्टर को बुरी
तरह से प्रभावित किया है। अमेरिकी कंपनियां चीन को छोड़कर वियतनाम, ताइवान, साउथ कोरिया
और बांग्लादेश जैसे देशों के सप्लायर का रुख कर रही हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में
स्लो डाउन है। इसे अब तक मंदी तो नहीं माना गया है कि लेकिन अमेरिका मंदी से निपटने की तमाम कोशिशें कर रहा है। दुनियाभर
के देश इकोनॉमिक स्लो डाउन से गुजर रहे हैं। मंदी से निपटने के लिए अमेरिका ने 1995 के बाद
पांचवीं बार रेट कट कैंपेन शुरू किया है। अमेरिका में इसके पहले 1995, 1998, 2000 और 2007
में ब्याज दरों में कटौती की जा चुकी है। जर्मनी ने अपनी आर्थिक गति खो दी है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने का असर
यूरो ज़ोन के दूसरे देशों पर पड़ सकता है। इसमें इटली, फ्रांस, पोलैंड और
स्पेन जैसे देश शामिल हैं। जर्मनी का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर मंदा पड़ा है।
पिछले
कुछ महीनों में इसमें सुस्ती देखी जा रही है। इसी से अंदाजा लगाया जा रहा है कि
क्या ये मंदी की आहट है? अगर ऐसा होता है तो ये पूरे यूरो ज़ोन को
अपनी चपेट में लेगा। जर्मनी की अर्थव्यवस्था में कार बनाने वाली कंपनियों का बड़ा
योगदान होता है। इसका ऑटो मोबाइल सेक्टर पूरे यूरोप में सबसे बड़ा है। स्लोडाउनका
असर जर्मनी की नौकरियों पर पड़ेगा। जिसकी वजह से पूरा यूरोप प्रभावित होगा। चीन की
अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन का असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। पिछले एक दशक में
वैश्विक ग्रोथ में चीन का करीब एक तिहाई योगदान रहा है।
हालांकि विशेषज्ञ बता रहे
हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था में कमजोरी का भारत पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
भारत के आयात में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। करीब 16 फीसदी से भी ज्यादा। चीन
भारत के लिए निर्यात का भी चौथा सबसे बड़ा बाजार है। भारत के निर्यात में चीन की
हिस्सेदारी 4.39 फीसदी है. इसलिए भारत पर बहुत ज्यादा असर पड़ने की उम्मीद नहीं है।