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- क्या है हरी खाद जिससे खेत बने ज्यादा उपजाऊ.....?
Posted by : achhiduniya
01 October 2020
देश में ज्यादातर गोबर को उपले या कंडे यानी ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर के खत्म किया जाता है। गोबर की बाकी बची मात्रा,जो खाद के रूप में इस्तेमाल की जाती है,उस के ज्यादातर पोषक तत्त्व लीचिंग की क्रिया से खत्म हो जाते हैं। कार्बनिक पदार्थ को मिट्टी में बढ़ाने के लिए ज्यादातर किसान कंपोस्ट खाद को तैयार करने की विधियों से अनजान हैं। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने के लिए
खलियों का इस्तेमाल किया जाता है,लेकिन हमारे देश में फसलों के लिए पोषक तत्त्वों की आपूर्ति खलियों से करना नामुमकिन है, क्योंकि इन का इस्तेमाल पशुओं के भोजन के लिए भी किया जाता है। सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्त्वों को सही मात्रा में पहुंचाने और मिट्टी के भौतिक व जैविक गुणों को सुधारने के लिए कैमिकल खादों के साथसाथ जीवांश खादों व जैविक खादों,जैसे राइजोबियम,अजोला, नील हरित शैवाल,एजेटोबैक्टर,माइकोराइजा वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए। फसल चक्र में दलहनी व हरी खाद वाली फसलें यानी उड़द,मूंग,लोबिया,बरसीम,
ढैंचा,सनई वगैरह का इस्तेमाल ज्यादा करना,मिट्टी को पोषक तत्त्वों को पर्याप्त मात्रा में मुहैया कराने में काफी फायदेमंद साबित होता है।# क्या है हरी खाद:- दलहनी या अदलहनी फसलों के ऐसे पौधों,जो सड़े गले न हों या उन के कुछ भागों को जब मिट्टी की नाइट्रोजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए खेत में दबाया जाता है। तो इस प्रक्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। हरी खाद को दूसरे शब्दों में इस तरह सम झ सकते हैं। फसलें जो मिट्टी में जीवांश की मात्रा को बरकरार रखने या बढ़ाने के लिए उगाई जाती हैं। हरी खाद वाली फसलें कहलाती हैं।# हरी खाद के फायदे:- मिट्टी में बड़ी मात्रा में पौधों के हरे भागों को मिलाते रहने से मिट्टी में जीवांश की मात्रा ज्यादा बढ़ती है। मिट्टी व आबोहवा की
किस्मों व परिस्थितियों के लिए मुफीद अलगअलग प्रकार की फसलों का इस्तेमाल कर हर साल 50 से 100 किलोग्राम तक नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर मिट्टी में बढ़ाया जा सकता है। दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा अदलहनी फसलों के मुकाबले ज्यादा होती है। इस की खास वजह दलहनी फसलों की जड़ों में पाए जाने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया होते हैं। वे आबोहवा से नाइट्रोजन ले कर उसे पौधों की जड़ों की गांठों में स्टोर करते हैं,जिस का इस्तेमाल वे पौधे करते हैं। अगली फसल भी इस को
इस्तेमाल करती है।
मिट्टी की सतह का संरक्षण:- हरी खाद की फसलों की वानस्पतिक व जड़ों की बढ़वार काफी
होती है। इस प्रकार की फसलें मिट्टी की सतह को ढकती हैं। साथ ही उन की जड़ें
मिट्टी कणों को बांध कर रखती हैं। ऐसा कर के वे हवा व पानी द्वारा होने वाले
मिट्टी कटाव से मिट्टी की सतह बचा कर उसे पूरी तरह संरक्षण देती हैं। इस के साथ
साथ वे मिट्टी के जैविक गुण बढ़ाने,खरपतवार की रोकथाम,मिट्टी संरचना में सुधार, क्षारीय व
लवणीय मिट्टी
में सुधार व फसलों के उत्पादन में बढ़वार करने में मददगार होती है। कैसी हो हरी
खाद वाली फसल:- ऐसी फसल, जो कम समय में ज्यादा बढ़वार करती
हो। उस की जड़ें मिट्टी में गहराई तक पहुंचती हों फसल के तने,शाखाएं व पत्तियां ज्यादा व मुलायम होनी चाहिए। फसल कम पोषक तत्त्व ग्रहण
करने वाली हो। वह कीट व बीमारियों को सहन करने की कूवत रखती हो। वह मिट्टी को
ज्यादा मात्रा में जीवांश पदार्थ व नाइट्रोजन प्रदान करने वाली हो। फसल की शुरुआत
की बढ़वार खरपतवार को रोकने के लिए जल्दी से होनी चाहिए। फसल का बीज सस्ती दरों पर
मिलने
चाहिए। फसल के उत्पादन का खर्च कम होना चाहिए। फसल कई मकसद की पूर्ति करने
वाली होनी चाहिए जैसे, चारा, रेशा व
हरी खाद। हरी खाद देने की विधियां:- भारत में हरी खाद देने के अलगअलग तरीके अपनाए
जाते हैं। जैसे,हरी खाद की इन सीटू विधि, हरी पत्तियों से हरी खाद वगैरह। दलहनी फसलें: लोबिया,ग्वार,कुल्थी,उड़द,मूंग, बरसीम,मसूर,खेसारी वगैरह को हरी खाद के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। हरी खाद उगाना
क्यों जरूरी:- मिट्टी में जीवांश पदार्थ के लैवल को बनाए रखना हमारे देश में गोबर,कंपोस्ट व खलियों के द्वारा नामुमकिन है। इस के लिए हरी खाद की फसल उगाना
जरूरी हो जाता
है। इस के अलावा लवणीय मिट्टी में हरी खाद की फसल उगा कर उस का
सुधार भी मुमकिन है। उस का आने वाली फसल पर सीधा असर पड़ता है। इन सभी बातों को
ध्यान में रखते हुए मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक का लैवल बढ़ाने व मिट्टी की
भौतिक व जैविक कैमिकल दशा को सुधारने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल ही सब से बढि़या
उपाय है। हरी खाद की उपयोगिता व इस के
फायदे को ध्यान में रख कर हर किसान हरी खाद वाली फसलों को उगाए। खेतों को ज्यादा
समय तक टिकाऊ बनाने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल एक बढि़या विकल्प है।