Posted by : achhiduniya 03 October 2020

देश की आजादी से पहले ही स्वतंत्रता सेनानियों को संविधान के लिए चिंता सता रही थी। आजादी के बाद हमारा अपना कोई कानून नहीं था। इसे संविधान के रूप में निर्माण करने में कई अड़चनों का सामना करना पड़ा। 16 जून 1946 को अंग्रेज सरकार द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया कि हिंदुस्तान को दो देशों में विभाजित किया जाए। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद ही नए संविधान का 

निर्माण करना तय किया गया। इसके बाद 19 दिसंबर 1946 को पहली बार संविधान सभा एकत्रित हुई। इस दौरान संविधान सभा में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना उपस्थित नहीं रहे। डॉक्टर सच्चिदानंद एक वरिष्ठ नेता थे इसलिए उन्हें सभा का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया और डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष बनाया गया। देश दो भागों में बंट चुका था और नेताओं का सबसे बड़ा लक्ष्य संविधान का निर्माण करना था। 29 अगस्त 1947 संविधान निर्माण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में दर्ज है। इस दिन संविधान सभा द्वारा संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए डॉ भीमराव 


अंबेडकर की अध्यक्षता में एक प्रारूप समिति का गठन किया गया। प्रारूपण समिति ने तैयार किया गया संविधान का प्रारूप 21 फरवरी 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के समक्ष पेश किया, इसमें समिति को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और कुछ सुझाव भी मिलें। इसके बाद संशोधनों के निरीक्षण के बाद 4 नवंबर 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष के सामने प्रारूप को पुन: पेश करते हुए डॉ अंबेडकर ने प्रारूप से जुड़ी आलोचनाओं का उत्तर दिया, खासकर इस आलोचना का कि प्रारूप में ऐसी सामग्रियां बहुत ही कम हैं जो मूल होने का दावा करती हैं। डॉ 

अंबेडकर ने कहा- मैं पूछना चाहता हूं कि क्या विश्व के इतिहास में इस समय बनने वाले किसी भी संविधान में कोई नई बात कही जा सकती है ? सैकड़ों साल बीत गए, जब पहले लिखित संविधान का प्रारूप तैयार किया गया था। अनेक देशों ने इसका अनुसरण करके अपने संविधान को लिखित रूप में बदल दिया। इस प्रश्न का समाधान बहुत पहले ही हो चुका है कि संविधान का विषयक्षेत्र क्या होना चाहिए। इसी प्रकार संविधान के मूल आधार क्या हैं। इससे सारी दुनिया पहले से ही 

परिचित है, इसलिए सभी संविधानों के मुख्य प्रावधानों को एकसमान देखा जा सकता है। इतना समय बीत जाने के बाद जो संविधान निर्मित किया गया है, उसमें नई बात सिर्फ यह है कि प्रावधानों की त्रुटियों और देश की जरूरतों के अनुरूप इसमें आवश्यक हेरफेर किए गए हैं। मुझे यकीन है कि बाकी देशों के संविधान के अंधानुकरण का जो आरोप प्रारूप समिति पर लगाया गया है, वह संविधान के पर्याप्त अध्ययन ना किए जाने के कारण ही लगाया गया है। जहां तक इस आरोप का संबंध है कि संविधान के प्रारूप में भारत शासन एक्ट, 1935 के अधिकांश प्रावधानों को ज्यों-का-त्यों शामिल 

कर लिया गया, मैं इसके लिए क्षमायाचना नहीं करता। किसी से उधार लेने में कोई शर्म की बात नहीं है, इसमें कोई चोरी नहीं है। संविधान के मूल विचारों के बारे में किसी का कोई पेटेंट अधिकार नहीं है। संविधान के प्रारूप पर खंडवार विचार 15 नवंबर 1948 से 17 अक्टूबर 1949 के दौरान पूरे कर लिए गए। इसके प्रारूपण समिति ने प्रारूप में आवश्यक संशोधन कर अंतिम संविधान प्रारूप तैयार किया, जिसे 26 नवंबर 1949 को स्वीकृत कर लिया गया। इस दिन संविधान सभा में भारत की जनता ने अपने देश के प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार किया और उसे 

अधिनियमित करने के साथ-साथ स्वयं को अर्पित भी किया। संविधान सभा को संविधान बनाने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा, जिसे राजभाषा हिंदी और अंग्रेजी में लिखा गया है। बाबासाहेब की चेतावनी 26 नवंबर 1949 को देश की जनता द्वारा अपनाने के समय प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ अंबेडकर ने अपने भाषण में आने वाले समय के लिए चेतावनी दी और सावधानी बरतने को कहा। संविधान सभा को संबोधित करते हुए बाबासाहेब ने कहा- मैं संविधान की अच्छाईयां गिनाने नहीं जाऊंगा क्योंकि मेरा मानना है कि 'संविधान कितना भी अच्छा क्यों ना हो 

वह अंतत: खराब सिद्ध होगा, यदि उसे अमल / इस्तेमाल में लाने वाले लोग खराब होंगे। वहीं संविधान कितना भी खराब क्यों ना हो, वह अंतत: अच्छा सिद्ध होगा यदि उसे उसे अमल / इस्तेमाल में लाने वाले लोग अच्छे होंगे। संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्यों के अंगों का प्रावधान कर सकता है। राज्य के उन अंगों का संचालन लोगों पर और उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं व अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाए जाने वाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है। कौन कह सकता है कि भारत के लोगों 

और उनके राजनीतिक दलों का व्यवहार कैसा होगा ? जातियों और संप्रदायों के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अलावा, विभिन्न और परस्परविरोधी विचारधारा रखने वाले राजनीतिक दल बन जाएंगे। मैं नहीं जानता कि भारत की जनता देश को अपने धर्म से ऊपर रखेगी या अपने धर्म को देश से ऊपर रखेगी, लेकिन एक बात निश्चित है कि भारत के राजनीतिक दल अपने धर्म को देश से ऊपर रखेंगे, तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जाएगी। हम सभी को इस आशंकित घटना का दृढ़ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए और अपनी स्वतंत्रता की खून 



के आखिरी कतरे के साथ रक्षा करने का संकल्प करना चाहिए। इसके बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा भारत का संविधान लागू कर दिया गया। संविधान लागू होने पर भारत इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाता है। संविधान सभा में कुल 284 सदस्य थे, जिसमें 15 महिलाएं शामिल थी। जब संविधान लागू हुआ था, उस समय इसमें 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियां और 22 भाग थे, जो वर्तमान में 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 25 भाग हो गए हैं।

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