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- अज़ान के लिए लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल ग़ैर इस्लामी जाने मुस्लिम उलेमाओं ने क्या कहा...?
Posted by : achhiduniya
19 May 2022
मुस्लिम उलेमाओं और ए.एम.यू समुदाय को अपने लोगों
से अज़ान देने के लिए लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल को बंद करने की अपील करनी चाहिए।
यह ध्यान देने वाली बात है कि लाउडस्पीकरों का आविष्कार पैग़म्बर मोहम्मद के वक़्त
में नहीं हुआ था। इनका आविष्कार या निर्माण पहली बार 1925 में हुआ था। सत्तर के
दशक में हिंदुस्तानी उलेमाओं के बीच में इस चीज़ को लेकर बहुत ज़बरदस्त बहस चल रही
थी कि लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल अज़ान के लिए करना चाहिए या नहीं। उस वक़्त कई
पारंपरिक लोगों ने कहा था कि इसका प्रयोग ग़ैर इस्लामी है क्योंकि शरिआ ने इसका
प्रयोग करने या न करने के बारे में कुछ नहीं कहा है। आज हम
मानवाधिकारों के युग
में रहते हैं। हर व्यक्ति चाहे वो किसी भी धर्म, जाति, रंग, राष्ट्रीयता,नस्ल या भाषा का हो उसको निश्चित रूप से इस बात का अधिकार है कि वो अपने
अविच्छेद्य मौलिक अधिकारों का प्रयोग करे। साथ ही मानवाधिकारों की अवधारणा से
जुड़े विधिशास्त्र ने इस बात की बार बार पुष्टि की है कि मानवाधिकार पूर्ण और
असीमित नहीं होते, वे तर्कसंगत प्रतिबंधों के अधीन होते हैं।
हर व्यक्ति पर वही प्रतिबंध लागू होंगे जो क़ानून द्वारा केवल दूसरों की आज़ादी को
विधिवत रूप से मान्यता देने और उनका सम्मान करने के लिए और नैतिकता, क़ानून व्यवस्था और आम कल्याण की जायज़ माँगो
को पूरा करने हेतु क़ानून
द्वारा निर्धारित किए जाएँगे। इसके अलावा अपने साथी नागरिकों के प्रति और दूसरे
समुदायों के प्रति सबके कर्तव्य भी होते हैं। असल में अधिकार और कर्तव्य एक ही
सिक्के के दो पहलू हैं। धर्मनिर्पेक्ष भारत के नागरिक होने के नाते हमें अपने
संविधान में, मौलिक अधिकारों में और उसमें प्रतिष्ठापित
मौलिक कर्तव्यों में भरोसा होना चाहिए।
अनुच्छेद 51 ए के अंतर्गत 11 मौलिक अधिकारों में से तीन ऐसे हैं जो हिंदू
मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द को
सुनिश्चित करने के लिए सबसे मौलिक हैं। ये
हैं (क) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और
उसको अक्षुष्ण रखे, (ख) भारत के सभी लोगों में समरसता और
समान भातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और
प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से परे हो (ग) वैज्ञानिक दृष्टिकोण,
मानववाद और ज्ञानरंजन तथा सुधार की भावना का विकास करे।