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- Mother of Democracy है भारत,लाल किले से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने क्यू कहा ऐसा...?
Posted by : achhiduniya
15 August 2022
नई दिल्ली:- आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो पिछले 75 साल
में देश के लिए जीने मरने वाले, देश की सुरक्षा करने वाले, देश के संकल्पों को पूरा करने वाले चाहे सेना के जवान हों, पुलिस
के कर्मी हों,
शासन में बैठे हुए ब्यूरोक्रेट्स हों, जनप्रतिनिधि हों, स्थानीय
स्वराज की संस्थाओं के शासक-प्रशासक रहे हों, राज्यों
के शासक-प्रशासक रहे हों, केंद्र के शासक-प्रशासक रहे
हों; 75 साल में इन सबके योगदान को भी आज स्मरण करने का अवसर है और
देश के कोटि-कोटि नागरिकों को भी, जिन्होंने 75
साल में अनेक
प्रकार की कठिनाइयों के बीच भी देश को आगे बढ़ाने के लिए अपने से जो हो सका वो
करने का प्रयास किया है। 75 साल की हमारी ये यात्रा अनेक उतार-चढ़ाव से भरी हुई
है। सुख-दु:ख की छाया मंडराती रही है और इसके बीच भी हमारे देशवासियों ने
उपलब्धियां की हैं, पुरुषार्थ किया है, हार
नहीं मानी है। संकल्पों को ओझल नहीं होने दिया है। और इसलिए, और ये भी सच्चाई है कि सैंकड़ों सालों के गुलामी के कालखंड ने
भारत के मन को, भारत के मानवी की भावनाओं को गहरे
घाव दिए थे, गहरी चोटें पहुंचाई थीं, लेकिन
उसके भीतर एक जिद भी थी, एक जिजीविषा भी थी, एक जुनून भी था, एक जोश
भी था। उसके कारण अभावों के बीच में भी, उपहास
के बीच में भी और जब आजादी की जंग अंतिम चरण में थी तो देश को डराने के लिए, निराश करने के लिए, हताश
करने के लिए सारे उपाय किए गए थे। अगर आजादी आई अंग्रेज चले जाएंगे तो देश टूट
जाएगा, बिखर जाएंगे, लोग अंदर-अंदर लड़ करके मर
जाएंगे, कुछ नहीं बचेगा, अंधकार
युग में भारत चला जाएगा, न जाने क्या क्या आशंकाएं व्यक्त
की गई थीं। लेकिन उनको पता नहीं था ये हिंदुस्तान की मिट्टी है, इस मिट्टी में वो सामर्थ्य है
जो
शासकों से भी परे सामर्थ्य का एक अंतर प्रभाव लेकर जीता रहा है, सदियों तक जीता रहा है और उसी का परिणाम है, हमने क्या कुछ नहीं झेला है, कभी अन्न
का संकट झेला,
कभी युद्ध के शिकार हो गए। आंतकवाद ने डगर-डगर
चुनौतियां पैदा कीं, निर्दोष नागरिकों को मौत के
घाट उतार दिया गया। छद्म युद्ध चलते रहे, प्राकृतिक
आपदाएं आती रही, सफलता विफलता, आशा
निराशा, न जाने कितने पड़ाव आए हैं। लेकिन इन पड़ाव के बीच भी भारत आगे
बढ़ता रहा है। भारत की विविधता जो औरों को भारत के लिए बोझ लगती थी। वो
भारत की
विविधता ही भारत की अनमोल शक्ति है। शक्ति का एक अटूट प्रमाण है। दुनिया को पता
नहीं था कि भारत के पास एक inherent सामर्थ्य
है, एक संस्कार सरिता है, एक मन मस्तिष्क का, विचारों का बंधन है और वो है भारत लोकतंत्र की जननी है, Mother of Democracy है और जिनके जहन में लोकतंत्र होता है वे जब संकल्प कर के चल
पड़ते हैं,
वो सामर्थ्य दुनिया की बड़ी-बड़ी सल्तनतों के लिए
भी संकट का काल लेकर के आती है। ये Mother of Democracy, ये लोकतंत्र की जननी,
हमारे
भारत ने सिद्ध कर दिया कि हमारे पास एक अनमोल सामर्थ्य है। कुछ लोगों को इसके कारण संकट हो सकता है।
क्योंकि जब aspirational society होती है
तब सरकारों को भी तलवार की धार पर चलना पड़ता है। सरकारों को भी समय के साथ दौड़ना
पड़ता है और मुझे विश्वास है चाहे केन्द्र सरकार हो, राज्य सरकार हो, स्थानीय
स्वराज्य की संस्थाएं हों, किसी भी प्रकार की शासन व्यवस्था
क्यों न हो,
हर किसी को इस aspirational society को address करना
पड़ेगा, उनकी आकांक्षाओं के लिए हम ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते। हमारे
इस aspirational
society ने लंबे अरसे तक इंतजार किया है। लेकिन अब वो
अपनी आने वाली पीढ़ी को इंतजार में जीने के लिए मजबूर करने को तैयार नहीं हैं और
इसलिए ये अमृत काल का पहला प्रभात हमें उस aspirational society के आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बहुत बड़ा सुनहरा अवसर लेकर
के आई है। भारत की नारी शक्ति का संकल्प क्या होता है। भारत की नारी त्याग और
बलिदान की क्या पराकाष्ठा कर सकती है, वैसी
अनगिनत वीरांगनाओं का स्मरण करते हुए हर हिन्दुस्तानी गर्व से भर जाता है।
आजादी का जंग भी लड़ने वाले और आजादी के बाद देश बनाने वाले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
जी हों, नेहरू जी हों, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल
बहादुर शास्त्री, दीनदयाल उपाध्याय, जय
प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, आचार्य
विनाबाभावे,
नाना जी देशमुख, सुब्रह्मण्यमभारती, अनगिनत ऐसे महापुरुषों को आज नमन करने का अवसर है।
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