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- सावधान अस्पताल के मेडिकल किडनैपिंग और फेक बिलिंग से....?
Posted by : achhiduniya
15 November 2022
भारत में मेडिकल किडनैपिंग का एक नया ही रूप
देखने को मिल रहा है। भले ही अमेरिका में इस टर्म का मतलब ही अलग हो,लेकिन भारत में ये सिर्फ और सिर्फ पैसे से जोड़ी जाती है अगर
कोई मरीज़ आया है तो उससे जितना हो सके उतने पैसा ले लो। यकीनन एक छोटे से पेट
दर्द के इलाज के लिए भी अगर किसी अस्पताल में जाते हैं तो आज के समय में ये कहा
जाता है कि एडमिट हो जाइए,फलानी जांच करवाइए। ये किसी से
नहीं छुपा कि अस्पताल कितना ज्यादा पैसा चार्ज करते हैं। इलाज के नाम पर किसी को
लूटने की हद होती है। प्राइवेट अस्पताल आपका इलाज करने से ज़्यादा आपको मानसिक और
आर्थिक तौर पर नोच खाने के लिए बनाए गए हैं। मेडिकल किडनैपिंग के शिकार अक्सर वो
लोग होते हैं जो असल में अपनों की जान बचाने और उन्हें ठीक होते देखने के लिए इतने
परेशान होते हैं कि जो अस्पताल वाले कह देते हैं वो करने को तैयार हो जाते हैं और
हो भी क्यों न भारत में अस्पताल डर का फायदा जो उठाते हैं। दिल्ली के AIIMS तक कई सरकारी अस्पतालों में लापरवाही के किस्से सामने आ चुके हैं।
इसके
अलावा,
अगर प्राइवेट अस्पतालों के बारे में देखा जाए तो
गाहे-बगाहे हर बड़े अस्पताल में मेडिकल किडनैपिंग और फेक बिलिंग के केस सामने आ ही
जाते हैं। भारत इतनी तरक्की कर रहा है,तो यहां
की जनता के पास इलाज के अच्छे अवसर तो होने ही चाहिए,लेकिन क्या करें सरकारी तो दिक्कत, प्राइवेट तो दिक्कत है। हर बार ऐसे किस्से सामने आते हैं और फिर
भी अस्पताल वालों की इतनी हिम्मत हो जाती है कि वो पहले से परेशान मरीजों से इतनी
बुरी तरह से पेश आएंगे। आखिर कैसे? क्यों
सरकार की तरफ से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है इस मामले में क्यों स्वास्थ्य
सेवाएं
इतनी पीछे चल रही हैं? बात सोचने वाली है कि आखिर
कैसे ऐसे धोखे हर रोज़ मिल रहे हैं मरीजों और उनके परिजनों को,आज ये किसी और के साथ हुआ है कल किसी और के साथ होगा, लेकिन आखिर ऐसा कब तक चलेगा? क्या ये
हालत नहीं है अभी मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की? जहां
देखिए वहां हिंदुस्तान में मरीजों को बेवकूफ बनाया जा रहा है। भारत हेल्ड इंडेक्स
में 145वें नंबर पर है जो रिपोर्ट वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से आती है।
195 देशों में से 145वें स्थान पर आना वो भी तब जब हम दुनिया की सबसे तेज़ी से
बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था हैं ये बड़ी ही चिंता की बात है। ये आंकड़ा, श्रीलंका, बंग्लादेश और भूटान से भी बुरा
है।
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