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- राजनीति का अप्राधिकरण या अपराधियो का राजनीतिकरण,क्या कहती है न्यायपालिका....?
Posted by : achhiduniya
13 December 2022
2008 से लेकर 2012 तक हुए देशभर के विधानसभा
चुनाव में गंभीर आपराधिक छवि वाले 9.3 प्रतिशत उम्मीदवार थे, जो 2018-22 में बढ़कर 14.5 प्रतिशत हो गया है। 2008 से 2022 तक
में केरल चुनाव में सबसे ज्यादा 34 प्रतिशत दागी उम्मीदवार मैदान में उतरे। इसके
बाद बिहार में 32 प्रतिशत और झारखंड में 31 प्रतिशत दागी उम्मीदवारों ने किस्मत
अजमाई। अपराधियों को राजनीति करने से रोकने के लिए तमाम नियम और कानून बनाए गए, मगर सब बेअसर ही रहे। गुजरात-हिमाचल चुनाव के ताजा आंकड़े भी
इसकी
गवाही दे रहे हैं। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में 182 में से 40 नए
विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे हैं। इनमें 29 विधायकों पर गंभीर धाराओं में केस
दर्ज है। बात हिमाचल की करे तो वहां भी 68 में 28 विधायक दागी हैं। 12 विधायकों पर
हत्या-बलात्कार जैसे गंभीर अपराध की धाराओं में केस दर्ज है। राजनीति में दागियों
की एंट्री की सबसे बड़ी वजह पैसा और नेटवर्किंग है। चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों और पार्टियों को
जितने पैसे की जरूरत होती है, जो साधारण लोगों के बस में
नहीं है। साथ ही इलाके में अपराध की वजह से अपराधियों की नेटवर्किंग काफी मजबूत
रहती है। इन दोनों वजहों से राजनीतिक दल अपराधियों को टिकट देती है। इनमें कई
अपराधी चुनाव जीत कर रॉबिनहुड की छवि बना लेते हैं। अपराधियों के खिलाफ हल्लाबोल
कर राजनीति में उतरी AAP ने गुजरात चुनाव में सबसे अधिक
93 दागी कैंडिडेट उतारे। इनमें से 43 पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज था। हालांकि, AAP को इसका ज्यादा लाभ नहीं मिला और सिर्फ 5 सीटों पर पार्टी की
जीत हुई। नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर ने 2019 लोकसभा चुनाव के बाद आपराधिक छवि
वाले सांसदों की संख्या जारी की। रिपोर्ट के अनुसार 2009 में गंभीर आपराधिक मामलों
वाले सांसदों की संख्या 76 थी, जो 2019 में यह बढ़कर 159 हो गई।
बीजेपी के 339 में से 64, कांग्रेस के 97 में से 8 और
राजद के 9 में से 6 लोकसभा-राज्यसभा सांसदों के खिलाफ गंभीर आपराधिक
मामले दर्ज
हैं यानी दागी नेता सभी पार्टियों में है। सुप्रीम कोर्ट में कानून मंत्रालय ने 4
दिसंबर को एक हलफनामा दाखिल किया है। मंत्रालय ने कहा- किसी भी मामले में दोषी
नेताओं के आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है। याचिकाकर्ता अश्विनी
उपाध्याय ने सर्वोच्च अदालत से मांग की है कि सजायफ्ता नेताओं को आजीवन चुनाव
लड़ने से रोका जाए। सजायाफ्ता नेताओं की सदस्यता रद्द करने का- 4 सितंबर 2013 को
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि 2 साल या उससे अधिक की सजा पाए
नेताओं की सदस्यता रद्द हो जाएगी। सदस्यता रद्द होने के अलाव
दागी नेता 6 साल तक
चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। कोर्ट ने फैसले में आगे कहा था कि जेल में रहते हुए किसी
नेता को वोट देने का अधिकार भी नहीं होगा और ना ही वे चुनाव लड़ सकेंगे। विज्ञापन
देकर बताएं दागियों को टिकट क्यों- सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक फैसले में कहा कि
राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि दागी उम्मीदवारों को क्यों टिकट दिया और उनपर
कितने केस दर्ज हैं। कोर्ट ने कहा- सभी
माध्यमों में विज्ञापन देकर राजनीतिक दल जनता को दागी छवि वाले
उम्मीदवारों के
बारे में बताएं। साल 2018 सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि देश में कितने
सांसद और विधायक दागी हैं? इनके केसों की सुनवाई के लिए
कितने स्पेशल कोर्ट बनाया गया है? इसकी जानकारी दीजिए। केंद्र ने
हलफनामा जमा नहीं किया, जिस पर कोर्ट और केंद्र में ठन
गई। 2018 में दागी नेताओं को टिकट नहीं देने की याचिका पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा
की बेंच में सुनवाई चल रही थी। इस पर केंद्र सरकार भड़क गई। तत्कालीन अटॉर्नी जनरल
केके वेणुगोपाल ने कहा कि संसद का काम भी आप ही कर दीजिए। इस पर चीफ जस्टिस ने
कहा- जब तक आप नहीं करेंगे तब तक हम हाथ पर हाथ धड़े नहीं बैठ सकते हैं।
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