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- वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं...? सुप्रीम कोर्ट ने मांगा केंद्र से जवाब
Posted by : achhiduniya
17 January 2023
भारतीय कानून में मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं
है। इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठनों की ओर से लंबे वक्त से मांग
उठ रही है। अदालत भारतीय रेप कानून के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने की
मांग वाली याचिकाओं पर विचार कर रही है। इससे पहले हाईकोर्ट ने सात फरवरी को
केंद्र को मैरिटल रेप अपराधीकरण की मांग वाली याचिकाओं पर अपना पक्ष रखने के लिए
दो सप्ताह का समय दिया था। केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर अदालत से याचिकाओं पर
सुनवाई टालने का आग्रह किया था, जिसमें कहा गया था कि मैरिटल
रेप का अपराधीकरण देश में बहुत दूर तक सामाजिक- कानूनी प्रभाव डालता है और राज्य
सरकारों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ एक सार्थक परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता
है। 11 मई को मैरिटल रेप अपराध है या नहीं, इस पर
दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच का बंटा हुआ फैसला सामने आया था। इस मामले की
सुनवाई के दौरान दोनों जजों की राय एक मत नहीं दिखी। सुनवाई के दौरान जहां पीठ की
अध्यक्षता करने वाले
जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप अपवाद को रद्द करने का
समर्थन किया। वहीं जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि
आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है। इसी के चलते दोनों जजों ने इस मामले को सुप्रीम
कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को
अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली याचिकाओं पर बड़ा कदम उठाया है। वैवाहिक
बलात्कार को अपराध के दायरे में लाया जाए या
नहीं, इस सवाल
पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट 14
मार्च से इस मामले पर अंतिम सुनवाई करेगा। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट
ने कहा कि सभी पक्ष तीन मार्च तक लिखित दलीलें दाखिल करें। सुनवाई के दौरान केंद्र
की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले का बड़ा असर होगा। हमने
कुछ महीने पहले सभी हितधारकों से विचार मांगे थे। हम इस मामले में जवाब दाखिल करना
चाहते हैं।
याचिकाकर्ता ने IPC की धारा 375 (रेप) के तहत
मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी। इस धारा के
अनुसार, विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म
नहीं माना जाएगा, जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो। गौरतलब है कि
हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए
बार-बार समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी। अदालत ने केंद्र
को समय प्रदान करने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ के
समक्ष केंद्र ने तर्क रखा था कि उसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस
मुद्दे पर उनकी टिप्पणी के लिए पत्र भेजा है। वैवाहिक दुष्कर्म के मामले पर
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और
जस्टिस जे बी पारदीवाला की बेंच ने की सुनवाई की।
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