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- फांसी की सजा पर होगा विचार भारत की कानून व्यवस्था से जुड़े तीन नए बिल से...
Posted by : achhiduniya
15 February 2024
बीते सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने फांसी की सजा से
जुड़े कानून की समीक्षा और उसमें कमियों को दूर करने के लिए संविधान पीठ का गठन
किया था। दिसंबर 2023 में
सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित पक्षों से अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। संभावना है कि
साल 2024 में इस
पर सुनवाई हो सकती है। वहीं मार्च 2023 में
सुप्रीम कोर्ट ने फांसी देने के तरीके की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक कैदी
की याचिका पर विचार किया। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि एक विशेषज्ञ समिति
बनाकर फांसी के दूसरे विकल्प और अधिक मानवीय तरीकों की जांच करें जो संविधान के
अनुरूप हों। अगस्त 2023 में संसद
ने भारत की कानून व्यवस्था से
जुड़े तीन नए बिल (BNS, BNSS और BSB) पारित किए। राष्ट्रपति ने 25 दिसंबर 2023 को तीनों
बिलों पर अपनी मंजूरी दे दी। इसके बाद ये तीनों बिल कानून बन गए, हालांकि अभी गृह मंत्रालय को यह अधिसूचित करना बाकी है कि ये
बिल कब से लागू होंगे। जल्द ही ये कानून मौजूदा दंड संहिता आईपीसी, सीआरपीसी, आईईए की
जगह ले सकते हैं। IPC की जगह लेने
वाले भारतीय न्याय सहिंता कानून (BNS) में मौत
की सजा वाले अपराधों की संख्या 18 है, जबकि भारतीय दंड संहिता में संख्या 12 थी। नए कानून में फांसी की सजा पाए कैदियों की ओर से दया
याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया को व्यवस्थित किया गया है।
साथ ही फांसी की सजा कम
करके आजीवन कारावास किए जाने पर दी जा सकने वाली सजाओं के दायरे को भी सीमित किया
गया है। 2023 में यह
पाया गया कि निचली अदालतें अक्सर दोष साबित होने के बाद फांसी की सजा सुनाने के
बीच बहुत कम समय देती हैं। कुछ मामलों में तो उसी दिन भी सजा सुनाई जा चुकी है। यह
चिंताजनक है क्योंकि अपराधी के जीवन-इतिहास की गहन जांच के बिना न्यायपालिका को यह
तय करना मुश्किल हो जाता है कि उसे फांसी दी जाए या आजीवन कारावास। कुछ सुप्रीम
कोर्ट फैसलों ने उसी दिन सजा सुनाए जाने की वैधता पर संदेह जताया है, जबकि अन्य फैसलों में इसे उचित सुनवाई का उल्लंघन नहीं माना
गया है।
आंकड़ों के अनुसार, 2023 में
निचली अदालतों द्वारा सुनाई गई फांसी की सजाओं में से 37.14% मामलों में उसी दिन या दोषसिद्धि के
एक दिन बाद सजा सुनाई गई। 45.71% मामलों
में दो से सात दिनों के भीतर सजा दी गई। केवल 17.14% मामलों में ही दोषसिद्धि के एक हफ्ते
बाद सजा सुनाई गई।