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- भविष्य ही धुआं धुआं...ना....
Posted by : achhiduniya
14 December 2014
गतिवीधी पर अपनी नजर .. व्रद्धा आश्रम
कि जरूरत नही...
मित्रो प्रणाम ......बचपन से लेकर
किशोरावस्था ,जवानी और बुढापा इन मुक़ामो से होती हुई जीवन की गाड़ी आखरी मंजिल तय करती है । अभिभावक
मानते हैं कि बच्चों की देखभाल उनके बचपन तक ही जरूरी होती है लेकिन विशेषज्ञों का
कहना है कि किशोरावस्था वह नाजुक मोड़ है जब मामूली सी लापरवाही जीवन भर के लिए एक
अभिशाप बन सकती है।इन लापरवाहियों पर माता
–पिता को ध्यान देना चाहिए ।
बचपन के बाद किशोरावस्था,जवानी आती है और उम्र के इन दोनों पड़ावों को
चरित्रनिर्माण की नींव कहा जा सकता है। बच्चो को सिर्फ डाटने और ज़ोर चलाने कि कोशिश ना करे उन्हे समझे अपने
बच्चो को चाहे 10 साल से लेकर 18 साल के हो चुके हो उन्हे योग,ध्यान योग के साथ धार्मिक संस्कार,खेल –कूद,पारिवारी संस्कर्ती ,मनोरंजन की जानकारी दे।
संयुक्त
परिवारों में किशोरावस्था समस्या नहीं होती क्योंकि तब किशोरों को अकेले रहने का
बहुत ज्यादा समय नहीं मिल पाता,लेकिन एकल परिवारों में जहां
माता पिता दोनों नौकरी करते हैं, वहां किशोरों को काफी समय
अकेले बिताना पड़ता है. अगर वह सही दिशा में हैं तब तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन
गलत राह पर बढ़ने पर उन्हें रोकना जरूरी हो जाता है।
बच्चो की हर गतिवीधी पर अपनी
नजर बनाए रखे। इस उम्र में उत्सुकता इतनी
अधिक होती है कि किशोर सही गलत का अंतर नहीं कर पाते। बच्चे अगर धूम्रपान करे तो
उसका भविष्य ही धुआं धुआं हो जाएगा. उन्हें तंबाकू के दुष्प्रभावों की जानकारी
नहीं होगी तो टीवी या सिनेमा देख कर यही सोचेंगे कि धूम्रपान में कोई बुराई नहीं
है। तंबाकू से होने वाले मुख कैंसर,फेफड़ो मे होने वाले रोगो
की जानकारी की कमी या इस पर ज़ोर शोर किया जा रहा प्रचार युवाओ को पथ भ्रष्ट
करने मे अहम भूमिका निभा रहा है।
इस उम्र
में किशोरो का मन बड़ा ही चंचल होता हैं, उन्हें अगर बताया
जाए कि अमुक काम करने में खतरा है तो बहुत कम किशोर ही उस काम को करने से बचेंगे.
ज्यादातर किशोरों के मन में यह उत्सुकता होगी कि कैसा खतरा है। यह देखने के लिए इस
काम को करना चाहिए इसलिए बेहतर होगा कि किशोरों को खतरे के बारे में भी साफ बता
दिया जाए।
माता –पिता को चाहिए कि सेक्स के विषय पर भी खुल कर अपने बच्चो से बात
करके उनके अन्दर की जिज्ञासा को शांत करना चाहिए । किशोरावस्था को गंभीरता से लेने
में शायद कुछ समय लगेगा। आज टीवी का
प्रभाव किशोरों पर अधिक है। सिनेमा तो
पहले से ही प्रभावी रहा है। इन
किशोरों के पास कहीं ज्यादा पैसा, विकल्प, ज्यादा जानकारी है और पहले से कहीं ज्यादा प्रौद्योगिकी
उनकी पहुंच में है। यह बात यौन संबंधों को
परिभाषित करने के तौर पर सबसे ज्यादा उभर कर सामने आ रही है। बड़े शहर के किसी स्कूल की 100 प्रतिशत किशोरवय
लड़कियों में से कम-से-कम 25 प्रतिशत ने सेक्स का अनुभव कर लिया है, 35 प्रतिशत
नियमित तौर पर सेक्स करती हैं,15प्रतिशत डॉक्टरों के पास जाती हैं और 25प्रतिशत यौन शोषण
की शिकार हो चुकी हैं,लेकिन
अच्छा यही होगा कि किशोरों को हर बात के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू के बारे में
बताया जाए।
केवल ग्लैमर की चकाचौंध उनका
भविष्य बर्बाद कर देगी। किशोरावस्था वह
उम्र होती है जब किशोरों में नयी नयी बातों के बारे में जानने की उत्सुकता होती
है। उनसे छिपाने से अच्छा है कि उन्हें विस्तृत जानकारी दी जाए तथा उनकी जिज्ञासा
का शमन किया जाए। किशोरों की जिज्ञासा शांत करने के लिए उन्हें जो बातें बताई जाती
हैं,
उन्हें वह अच्छी तरह याद रखते हैं। यह बात हमें नहीं भूलना चाहिए कि उनके मन पर हर
अच्छी बुरी बात का प्रभाव पड़ता है, इसलिए हमारी कोशिश यह
होनी चाहिए कि उन्हें अच्छी बातों के बारे में तो बताएं, साथ
ही उसके नकारात्मक पहलुओं की भी जानकारी दें।
किशोरावस्था मनोवेग में अपराध हो सकता है लेकिन आरोपी किशोर
को इस तरह समझाना चाहिए और ऐसा व्यवहार उसके साथ करना चाहिए कि उसे उसके किए पर
पछतावा तो हो पर वह खुद को समाज से अलग थलग न समझे। किशोरावस्था की कोई भूल जिंदगी भर का अभिशाप बन
सकती है और जिंदगी तबाह भी कर सकती है. इसलिए इस उम्र में किशोरों के साथ दोस्ताना
व्यवहार करते हुए उन्हें सही राह दिखाने की जरूरत होती है। अगर हर माता – पिता
अपने परिवार को पालने कि ज़िम्मेदारी के साथ – साथ अपने बच्चो के चरित्र निर्माण पर
भी ध्यान देने के लिए छोटा सा प्रयास करे तो किसी भी माता –पिता को व्रद्धा आश्रम
कि जरूरत नही पड़ेगी ।
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