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- मुंगेरी लाल के हसीन सपने .....
Posted by : achhiduniya
31 January 2015
सोचोगे
बड़ा तो होगा बड़ा......
मित्रो प्रणाम ......जीवन मे आगे बड़ने के लिए सपने देखना उतना हो जरूरी है
जितना जीवन के प्रती आशावादी होना एक कहावत है कि सोती लोमड़ी सपने में मुर्गियाँ
ही गिनती रहती है, क्योंकि जागते हुए वह इसी
उधेड़बुन में लगी रहती है कि मुर्गियों को कैसे पकड़े। इसी तरह किसी काम या उलझन में
होने पर व्यक्ति को उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते उस काम के सिवाय कुछ नहीं सूझता। वह बात उसके मन-मस्तिष्क पर
इस तरह हावी रहती है कि उसे आसानी से नींद नहीं आती। यदि आती भी है तो वह उसी के
बारे में सोचते-सोचते सोता है और एक झटके के साथ जागकर फिर से उस पर सोचना शुरू कर
देता है। ऐसे में उसके ख्वाब भी उस विषय से कैसे अछूते रह सकते हैं। वह सपने में
भी अपने आपको उन्हीं परिस्थितियों में पाता है, जिनमें कि वह
जागृत अवस्था में रहता है।
तब कई बार उसके सपने उसे उस समस्या का हल भी सुझा देते
हैं।सपने देखने के लिए भी सोचने की जरूरत की आप कैसे जीवन मे आगे जाना चाहते है ,जरूरत होती है सिर्फ उन्हें समझने की। लेकिन कहा जाता है कि सपनों के
सहारे जिंदगी नहीं जी जाती, क्योंकि वे हकीकत से दूर होते
हैं। यह बात पूरी तरह सही नहीं है. कहते हैं कि मूर्खों के
सपने मूर्खतापूर्ण होते हैं। तो फिर समझदारों के सपने भी समझदारीभरे होंगे। यानी
महत्वपूर्ण यह है कि सपने देख कौन रहा है। यदि आप अपने सपने पूरे करने के लिए सही
राह पर चल रहे हैं, तो आपके सपने भी आपको गलत राह नहीं
दिखाएँगे।
कही ऐसा न हो कि आप मुंगेरी लाल कि तरह सिर्फ बेतुकी कल्पना मे जाकर
सपने देखे और उनके पूरा न होने पर बेवजह कि चिंता ,परेशानीयो
से घिरते जाए अच्छे सपने मुसीबत में पड़ने पर वे आपको उससे निकलने की राह भी
सुझाएँगे बशर्ते आप उनकी मानें, उन्हें पढ़ना जानें। कहते है कि बिल्ली को छिछड़ों के ख्वाब। अकसर यह बात
नकारात्मक सेंस में सामने वाले पर कटाक्ष में कही जाती है कि उसे किसी बात या
कार्य विशेष के अलावा कुछ नहीं सूझता।
इसमें कटाक्ष भले ही हो, लेकिन यह बात भी जानने की है कि हम जो पाना चाहते हैं, जब तक उसके सपने नहीं देखेंगे तो उसे पाएँगे कैसे। सपने होंगे तभी तो
उन्हें हकीकत में बदलने की कोशिश करेंगे। इसलिए खूब सपने सँजोओ ताकि उन्हें पूरा
कर सको। फिर भले ही दिन हो या रात। दिन के सपने को लोग भले ही दिवास्वप्न कहकर
नकार ही क्यों न दें।
तब संभवतः हम हकीकतों से सीख पाएँगे। इसलिए सपनों से सीखकर सपने पूरे करें। अरे भई,
बिना कुछ किए ख्वाब पूरे होने वाले नहीं।
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