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- रक्त दान नहीं.... तो क्षमा दान ही सही .....
Posted by : achhiduniya
26 January 2015
गलती को सुधारने के साथ जीवन मे अच्छे.....
प्राय देखा जाता की रक्त दान से किसी को
प्राण दान देने मे अहम योगदान दिया जा सकता है ,लेकिन अगर किसी कारण वश ऐसा संभव नही तो कोई बात नही किसी के द्वारा
अनजाने मे की गई गलती की सजा देने से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्षमा दान देना । जिससे
उसे अपनी गलती को सुधारने के साथ जीवन मे अच्छे राह पर चलने का एक मौका मिलता है।क्षमा इस बात पर निर्भर होनी चाहिए की
गलती का सतर क्या....? क्यू ....?और
असल बात,वस्तु स्थती
कौनसी ....?
है।
यह कलियुग का अंतिम चरण है, भूल तो प्राय: सभी करते हैं। खराब आदतें भी थोड़ी-बहुत सभी में हैं इसलिए
क्षमा करो।अब अपने जीवन में क्षमा का अध्याय खोलो और कुछ दान नहीं करते तो क्षमा
दान ही कर दो।क्षमा न करने से व्यक्ति स्वयं ही कूड़ेदान या नादान बन जाता
है।दयालु प्रभु के दयालु बच्चे बनो ।क्षमा मांगने की तरह ही महत्वपूर्ण आदत है
दूसरों को क्षमा देना । हम दूसरों की भूल को यदि मानस पटल पर पत्थर की लकीर की तरह
अंकित कर लेते हैं और उसे मन से मिटाने अर्थात भूलने का नाम ही नहीं लेते तो अपना
ही मन बोझिल अथवा छिद्र-छिद्र कर लेते हैं। भूलों को मन में इक्ट्ठा करना-यह कैसा
शौक है।
सुलगती हुई राख या सड़ते हुए कचरे को मन में भर देना अपनी ही बुद्धि का
दिवालियापन है। दूसरे की भूल का अपने मन को शूल अथवा आंख का बबूल बना लेना तो अपने
लिए स्वयं सूली तैयार करना अथवा कांटों की शैया तैयार करना है। हम दूसरों की भूलों
के लिए उन्हें क्षमा नहीं करते तो भगवान से अपने पापों और अपराधों की थोड़ी भी
क्षमा की आशा करने के भी योग्य कैसे बन सकते हैं?
अत: हम मन
को विशाल अथवा विराट करें और क्षमा करें। ‘क्षमा’ का अर्थ यह नहीं है कि धोखेबाज,
मक्कार, अत्याचारी, दुष्ट,
निर्दयी व्यक्ति को ऐसा क्षमा कर दो कि वह आपको ही निगल जाए।
दुष्ट
को बार-बार दुष्टता करने की खुली छूट मत दो।क्षमा करने का यह भाव भी नहीं है कि आप
तलवार उठा कर उसे यहां से सीधे धर्मराजपुरी में भेज दो जो कि अभी खुली ही नहीं।दे दान क्षमा दान।