- Back to Home »
- Religion / Social »
- सच्चा धर्म- मजहब क्या .....?
Posted by : achhiduniya
07 January 2015
इंसानियत ही सच्ची
बंदगी .....
मित्रो प्रणाम...
जैसा कि आप जानते ही है कि हर मनुष्य मे उस ईश्वर,गॉड,खुदा,गुरु का वास
होता है या यू कहना अतिश्योकती नही होगा कि वह {मनुष्य }उसका अंश है।
चाहे विज्ञान कितना भी विकसित हो जाए पर वह इस बात को पता लगाने मे पूरी तरह
असमर्थ ही नही पूरी तरह बौना है कि मनुष्य कहा से आता है और कहा चला जाता है।{जन्म और म्रत्यु
}आत्मा क्या
है.....?इसे जानने - समझने का एक मात्र रास्ता है,अध्यात्म यानी
सत्संग । रामचरितमानस में तुलसीदास जी लिखते हैं कि बड़े भाग्य पाईए सत्संगा
बिनहिं प्रयास होत भव भंगा। सत्संग बड़े भाग्य से मिलता है इसलिए सत्संग ब़ड़े ध्यान
से सुनना चाहिए और उस पर मनन करना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है की सत्संग मे जाना
महज खाना पूर्ती नही करनी वरन उस के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने के अलावा जीवन
मे उन उपदेशो को ढालना भी जरूरी है।
आपके साथ एक छोटी सी कहानी सांझा करेंगे । एक गॉव के राजा की पत्नी जो धार्मिक प्रवर्ती कि
थी। निताप्रति सत्संग मे जाकर महापुरषो के उपदेशो को सुन कर अपने जीवन मे आत्म सार
करती थी । लेकिन राजा कभी भी रानी के साथ नही जाता था । रानी के बहुत आग्रह करने
पर राजा एक दिन औपचारिकता निभाने के लिए
सत्संग चला गया । जब वह वहा पहुचा तो
महापुरष ने कहा आईए ,बैठिए कुछ देर तक
सत्संग चलता रहा लेकिन राजा का मन इधर –उधर की बातो मे भटकता रहा आखिर उठकर जाने
लगा तो महापुरष ने कहा जा रहे हो । उनके मन पर सत्संग की बातें असर नहीं करती थी।
कुछ दिन सत्संग में जाने के बाद तीन बातें उन्हें अवश्य याद रही की आईए, बैठिए
और जा रहे हो ।
एक दिन जब वह सत्संग सुन कर महल वापस लौट गए तो पलंग पर लेटते ही उनको
गहरी नींद आ गई। रात्रि को महल में एक चोर
आया उसने वहां चोरी की पर राजा वहां सोते सोते सत्संग की वही तीन बातें उनके मन
मस्तिष्क में घूम रही थी । वह नींद में बड़बड़ाए आईए,चोर एकदम चौकना
हुआ की राजा तो एकदम जाग रहा है फिर राजा बोले बैठिए कुछ देर बाद जब चोर जाने लगा
तो राजा ने कहा जा रहे हो। चोर तीनों शब्दों को सुनकर डर गया की यह तो मुझे रंगे हाथों
पकड़ना चाहता है। वह राजा के पास जाकर उनके पैर पकड़कर कहने लगा,राजा मुझे माफ
करो।
राजा तुरंत जागे और पूछा,भाई ! तुम कौन हो....?चोर बोला,राजा जी, मैं आपके महल
मे चोरी करने के मकसद से आया था पर जब
आपने कहा आईए बैठिए और जा रहे हो तो मैंने सोचा की आप जगे होंगे और मुझे चोरी करते
रंगे हाथों पकड़ना चाहते हैं। राजा बोला भाई मैं सत्संग में गया था वहां मैंने तीन बातें ही
सुनी । राजा सोचने लगा उन्हीं की बदौलत मेरा सब कुछ बच गया । अगर मैं लगातार
सत्संग में जाऊंगा और प्रभु के नाम को जानकर भजन करूंगा तो मैं भव सागर से तर
जाऊंगा। यह बात सुबह राजा ने रानी को बताई जिससे रानी की आस्था और बड़ गई ।
ज्ञान
को आत्मा का नेत्र कहा गया है। नेत्रविहीन व्यक्ति के लिये सारा संसार अंधकारमय
है। इसी प्रकार ज्ञानविहीन व्यक्ति के लिए इस संसार में जो भी कुछ उत्कृष्ट है, उसे
देख पाना असंभव है। ज्ञान के आधार पर ही धर्म का, कर्त्तव्य
का, शुभ- अशुभ का, उचित- अनुचित का विवेक होता है और पाप- प्रलोभनों के पार यह
देख सकना संभव होता है कि अन्ततः दूरगामी हित किसमें है। ज्ञान के दीपक का प्रकाश
ही इन्द्रियों की वासना और प्रलोभनों की तृष्णा से होने वाली दुर्दशा से बचा सकता
है। लेकिन इसके साथ सजग रहना जरूरी है क्योकि आज धर्म के नाम पर लोगो को ठगने का
काम किया जा रहा है।
अपने बुद्धी ,विवेक का उपयोग करके सही गलत का निर्णय करे । धर्म के नाम
पर अपनी रोटीया सेकने वालो से बचे। आप जिस भी धर्म से हो अपने इष्ट देव,गुरु,खुदा ,गॉड पर भरोसा रख
कर अपना अच्छे से अच्छा कर्म करने की कोशिश करे। मनुष्य – मनुष्य से प्रेम,इंसानियत ,मददगार ,हितैषी सभी का
भला चाहना ही सच्चा धर्म- मजहब है, तथा इस पर चलने वाला सच्चा
धर्मात्मा ,सच्चा इंसान होता है ।
आपका मित्र अनिल
भवानी ।
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
.jpg)
