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Posted by : achhiduniya
13 January 2015
बाल्टी की पैंदी में छेद
महात्मा बुद्ध विहार कर रहे थे साथ में एक शिष्य
था उसने पूछा, ध्यान शक्ति क्या है? मैं जानना चाहता हूं। बुद्ध ने सुना उत्तर नहीं दिया और आगे बढ़ गए मार्ग में
कुंआ आया। एक यात्री आ रहा था। वह प्यासा था। उसने देखा कुएं के पास एक बाल्टी पडी
थी। उसने उस बाल्टी को कुएं में डाला। डोरी खींची बाल्टी ऊपर आई पर उसमें पानी नहीं
था। फिर उसे कुएं में डाला ऊपर खींचा वह खाली ऊपर आई वह पानी नहीं पी सका। उसकी प्यास
वैसी ही बनी रही। बाल्टी की पैंदी में छेद था।
जितना पानी भरता वह ऊपर आते-आते खाली
हो जाता। बुद्ध आगे चले। कुछ ही दूरी पर दूसरा कुंआ दिखा। वहां भी डोर से बंधी बाल्टी
पड़ी थी। एक प्यासा पथिक आया पानी पीया प्यास बूझ गई। बुद्ध ने शिष्य से कहा,वत्स.... तुम जानना चाहते थे न ध्यान
की शक्ति क्या....? है,जो ध्यान नहीं करता
वह खाली रहता है,कभी नहीं भरता वह खाली रहता है और फूट जाता है।
जो कुछ अंदर आता है वह सारा का सारा निकल जाता है जो ध्यान करता है जितना अंदर आता
है वह उतना ज्यादा बढ़ता है। यह है ध्यान का महत्व तुम्हारी कितनी ही शक्तियां हैं
शरीर में मस्तिष्क में उनके विकास का मार्ग है ध्यान। ध्यान के बिना उनको विकसित नहीं
किया जा सकता। ध्यान साधना का मार्ग शक्तियों के विकास का मार्ग है।
हम रोटी का मूल्यांकन
करते हैं क्योंकि रोटी हमारा जीवन है परंतु जो सच में जीवन है उसका हम कभी मूल्यांकन
नहीं करते वह है प्राण ध्यान जो कि जीवन को प्राण ऊर्जा से भर देता है। गीता में भगवान
कहते हैं की जो कर्म में अकर्म को देखता है और अकर्म में कर्म को देखता है वह संपूर्ण
कर्मों को करने वाला होता है। अकर्म में से जो कर्म फलित होता है वह वास्तव में बहुत
निर्दोष और प्राणवान कर्म होता है।
गीता के हर शलोक मे भगवान क्रष्ण भी अर्जुन को फल
की इच्छा को त्याग कर अपने कर्मो को करने का उपदेश देते है । कर्म करना मनुष्य का धर्म है चाहे उसका मजहब –धर्म ,कुल -जाती कोई भी हो इससे कर्म करने पर कोई फर्क नही पड़ना चाहिए इसके लिए व्यक्ती
को हमेशा तत्पर रहना चाहिए ।
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