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- अक्षय तृतीया संग्रह करने की बजाय दान देने की प्रेरणा......
Posted by : achhiduniya
20 April 2015
शुक्लपक्ष की तृतीया को सनातन ग्रंथों में अक्षय-
फलदायी बताया गया है........
शास्त्रों में वर्णन के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया सोमवार द्वितीय पहर रोहिणी नक्षत्र शोभन योग में त्रेता युग की शुरु आत हुई थी। इस युग की आयु 12,96,000 साल रही। इसी युग में भगवान श्री वामन, भगवान श्री परशुराम एवं भगवान श्री राम ने अवतार लिया। इसी विलक्षण योग में बद्रीनाथ के पट खुलते हैं। इस दिन पूर्ण बलि सर्वार्थसिद्धि योग रहता है। इस दिन सोने-चांदी की खरीद और दान-पुण्य सबसे अधिक शुभ फल देने वाला होता है।
अक्षय तृतीया के दिन वस्तुत: दान देने से तन-मन-धन, तीनों शुद्ध हो जाते हैं। पांडुलिपियों और शास्त्रों में उल्लेख है कि अक्षय तृतीया पर्व के दिन भगवान श्रीकृष्ण चरण दर्शन करने से बद्रीनाथ धाम के दर्शनों का पूरा फल श्रद्धालु को मिलता है। स्वामी हरिदासजी ने 500 साल पहले ब्रज में साधनारत संत के लिए ठाकुर बांकेबिहारी के (चरण) सर्वांग दर्शन की शुरु आत कर बद्रीनाथ दर्शन का पुण्य फल लेने की प्रेरणा दी थी। कारण था कि वे ब्रजधाम छोडकर बाहर न जाने का प्रण कर चुके थे।
बांकेबिहारी मंदिर में अक्षय तृतीया के दिन प्रात: ठाकुरजी के चरण दर्शन और शाम को सर्वांग दर्शन करवाए जाते हैं। मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। सोना खरीदने से धन में वृद्धि होती है। वैशाख मास को भगवान विष्णु के नाम पर माधव मास कहा जाता है। इस मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को सनातन ग्रंथों में अक्षय-फलदायी बताया गया है,इसी कारण इस तिथि का नाम अक्षय तृतीया पड गया।
युगादि तिथि के दिन किसी तीर्थ, पवित्र नदी अथवा सरोवर में स्नान कर दान करने से एक सहस्त्र गायों के दान (गोदान) का पुण्यफल मिलता है। ऋषि-मुनियों का निर्देश है कि अक्षय तृतीया के दिन हर व्यक्ति को अपनी सार्मथ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। भविष्योत्तर पुराण में जौ-चने का सत्तू, दही-चावल, गन्ने का रस, दूध से बनी मिठाई, शक्कर, जल से भरे घडे, अन्न तथा ग्रीष्म ऋतु में उपयोगी वस्तुओं के दान की बात कही गई है।
कई लोग इस दिन से प्यासे पथिकों के लिए प्याऊ लगवाते हैं। कुछ लोग शीतल जल का शर्बत पिलाते हैं। सही मायनों में तन-मन-धन से गरीबों की सेवा ही नारायण की अर्चना है। धन होने पर दान जरूर करें, इससे मन को संतोष मिलता है और चित्त शुद्ध हो जाता है।
अक्षय तृतीया संग्रह करने की बजाय दान देने की प्रेरणा देती है। अर्थात इस तिथि में थोडा या बहुत, जितना और जो कुछ भी दान दिया जाता है, उसका फल अक्षय हो जाता है।