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- असंतुष्ट मनुष्य की उदासी……
Posted by : achhiduniya
22 May 2016
बीते
समय मनुष्य गहरी निराशा के क्षणों में अकेला बैठा था। तब सभी जीव-जंतु उसके निकट
आए और उससे बोले- तुम्हें इस प्रकार दुखी देखकर हमें अच्छा नहीं लग रहा। तुम्हें
हमसे जो भी चाहिए तुम मांग लो और हम तुम्हें वह देंगे। मनुष्य ने कहा, मैं चाहता हूं कि मेरी दृष्टि पैनी हो जाए। गिद्ध ने उत्तर दिया, मैं तुम्हें अपनी दृष्टि देता हूं। मनुष्य ने कहा,'मैं
शक्तिशाली बनना चाहता हूं। जगुआर ने कहा, तुम मेरे जैसे
शक्तिशाली बनोगे मै तुम्हे अपनी शक्ति देता हूं।
फिर मनुष्य ने कहा, मैं पृथ्वी के रहस्यों को जानना
चाहता हूं। सर्प ने कहा, मैं तुम्हें उनके बारे में बताऊंगा।
इस प्रकार अन्य जीव-जंतुओं ने भी मनुष्य को अपनी खूबियां और विलक्षणताएं सौंप दीं।
जब मनुष्य को उनसे सब कुछ मिल गया तो वह अपने रास्ते चला गया।
जीव-जंतुओं के समूह में उपस्थित उल्लू ने सभी से कहा, अब जबकि मनुष्य इतना कुछ जान गया है, वह बहुत सारे कामों को करने में सक्षम होगा। इस विचार से मैं भयभीत हूं। हिरण ने कहा, मनुष्य को जो कुछ भी चाहिए था वह उसे मिल तो गया! अब वह कभी उदास नहीं होगा। उल्लू ने उत्तर दिया, नहीं. मैंने मनुष्य के भीतर एक अथाह विवर देखा है। उसकी नित-नई इच्छाओं की पूर्ति कोई नहीं कर सकेगा। वह फिर उदास होगा और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए निकलेगा। वह सबसे कुछ-न-कुछ लेता जाएगा, और एक दिन यह पृथ्वी ही कह देगी, मैं पूरी रिक्त हो चुकी हूं, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है।
जीव-जंतुओं के समूह में उपस्थित उल्लू ने सभी से कहा, अब जबकि मनुष्य इतना कुछ जान गया है, वह बहुत सारे कामों को करने में सक्षम होगा। इस विचार से मैं भयभीत हूं। हिरण ने कहा, मनुष्य को जो कुछ भी चाहिए था वह उसे मिल तो गया! अब वह कभी उदास नहीं होगा। उल्लू ने उत्तर दिया, नहीं. मैंने मनुष्य के भीतर एक अथाह विवर देखा है। उसकी नित-नई इच्छाओं की पूर्ति कोई नहीं कर सकेगा। वह फिर उदास होगा और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए निकलेगा। वह सबसे कुछ-न-कुछ लेता जाएगा, और एक दिन यह पृथ्वी ही कह देगी, मैं पूरी रिक्त हो चुकी हूं, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है।