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- रियल लाइफ के विलेन हरदम कोई व्यक्ति हो जरूरी नहीं......
Posted by : achhiduniya
16 July 2016
फिल्मी
पोस्टर पर नायक को ही प्रधानता मिलती है। वो दर्शकों को फिल्म देखने के लिए
आकर्षित करता है। लेकिन फिल्मकार बखूबी जानते हैं कि खलनायक के बिना नायक का कोई
वजूद नहीं। जब कोई कहानीकार स्क्रिप्ट सुनाता है तो वो पूछते हैं, 'विलेन कौन है? कितना खूंखार है?' क्योंकि जितना बड़ा विलेन, उतना ही बड़ा हीरो। सामने
गब्बर होता है तो जय और वीरू भी बड़े हो जाते हैं। अति-बलशाली दशानन रावण सामने हो
तभी राम के देवत्व का भी पता चलता है। गांधी
जी का सामना किसी छोटे-मोटे राजा से नहीं, सबसे शक्तिशाली
ब्रिटिश साम्राज्य से था। अगर अंग्रेजों का शासन ना होता, तो
शायद गांधी भी अपनी वकालत करते हो सकता है बहुत बड़े वकील बन जाते। कठिन मुकदमे जीत
जाते। लेकिन वो शायद 'महात्मा' नहीं हो
पाते।
दूसरी बात, ये विलेन हरदम कोई व्यक्ति हो जरूरी नहीं। वो हर चीज जो हमारे नायक को उसके लक्ष्य तक जाने से रोकती है विलेन की ही भूमिका अदा कर रही है। विपरीत परिस्थितियों में भी जो हार ना माने, घबराए नहीं और बढ़ता जाए वही असली नायक होता है। इसीलिए राम को वनवास जाना पड़ता है, पांडवों को अज्ञातवास भोगना पड़ता है। हमारे फिल्मकार भी अपने नायक को कभी रेगिस्तान की झुलसती गर्मी में, समंदर की गहराइयों में, या फिर दुश्मन देशों में धकेलते हैं। नायक को हर मोड़ पर किसी ना किसी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। मुश्किलें नहीं तो नायक नहीं। असल जिंदगी पर आएं तो खराब मौसम, अपनी कमजोरियां, गरीबी और असहायता भी खलनायक के ही रूप हैं। जो इनको बहाना बना कर थम जाते हैं वो आम जिंदगी जीते हैं। लेकिन जो इन सब के बावजूद सफलता के मार्ग पर बढ़ते हैं वो असल जिंदगी के नायक बन जाते हैं।
इन खलनायकों से पार पाने के लिए उन्हें अपनी कमजोरियों से ऊपर उठना पड़ता है। नया कौशल अर्जित करना होता है। और इस प्रक्रिया में उनका निरंतर विकास होता है। फिल्म के हीरो की तरह शुरू में उन्हें भी मार सहनी पड़ती है। मुश्किलों के थपेड़े झेलने पड़ते हैं। लेकिन फिर उन्हें सही साथी मिलते हैं। नये अनुभव मिलते हैं। वो इतने बलवान हो जाते हैं कि बड़ी से बड़ी मुश्किल से भी पार पा जाते हैं। सफलता सुंदरी उन्हें आलिंगन में बांध लेती है। इसीलिए जब बड़ी चुनौती आए तो घबराइए मत, ये सोचिए कि आपके सामने एक अवसर है नायक बनने का ये अवसर है अपनी ताकत को पहचानने का ये अवसर है अपने सच्चे साथियों को जानने का ये सफर है साधारण से असाधारण होने का। चुनौतियों को अवसर समझिए। ये नायक बनने की। आपका मित्र पुनीत भटनागर [क्रिएटिव गुरु]
दूसरी बात, ये विलेन हरदम कोई व्यक्ति हो जरूरी नहीं। वो हर चीज जो हमारे नायक को उसके लक्ष्य तक जाने से रोकती है विलेन की ही भूमिका अदा कर रही है। विपरीत परिस्थितियों में भी जो हार ना माने, घबराए नहीं और बढ़ता जाए वही असली नायक होता है। इसीलिए राम को वनवास जाना पड़ता है, पांडवों को अज्ञातवास भोगना पड़ता है। हमारे फिल्मकार भी अपने नायक को कभी रेगिस्तान की झुलसती गर्मी में, समंदर की गहराइयों में, या फिर दुश्मन देशों में धकेलते हैं। नायक को हर मोड़ पर किसी ना किसी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। मुश्किलें नहीं तो नायक नहीं। असल जिंदगी पर आएं तो खराब मौसम, अपनी कमजोरियां, गरीबी और असहायता भी खलनायक के ही रूप हैं। जो इनको बहाना बना कर थम जाते हैं वो आम जिंदगी जीते हैं। लेकिन जो इन सब के बावजूद सफलता के मार्ग पर बढ़ते हैं वो असल जिंदगी के नायक बन जाते हैं।
इन खलनायकों से पार पाने के लिए उन्हें अपनी कमजोरियों से ऊपर उठना पड़ता है। नया कौशल अर्जित करना होता है। और इस प्रक्रिया में उनका निरंतर विकास होता है। फिल्म के हीरो की तरह शुरू में उन्हें भी मार सहनी पड़ती है। मुश्किलों के थपेड़े झेलने पड़ते हैं। लेकिन फिर उन्हें सही साथी मिलते हैं। नये अनुभव मिलते हैं। वो इतने बलवान हो जाते हैं कि बड़ी से बड़ी मुश्किल से भी पार पा जाते हैं। सफलता सुंदरी उन्हें आलिंगन में बांध लेती है। इसीलिए जब बड़ी चुनौती आए तो घबराइए मत, ये सोचिए कि आपके सामने एक अवसर है नायक बनने का ये अवसर है अपनी ताकत को पहचानने का ये अवसर है अपने सच्चे साथियों को जानने का ये सफर है साधारण से असाधारण होने का। चुनौतियों को अवसर समझिए। ये नायक बनने की। आपका मित्र पुनीत भटनागर [क्रिएटिव गुरु]


