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- लक्ष्य को पाने के लिए किस पर ध्यान दे किस पर नही.......?
Posted by : achhiduniya
02 August 2016
हममे
से अनेक लोग ऐसे होते है जो ये तो जानते है की उन्हे क्या करना है लेकिन कैसे करना
है यह नही जानते...? कुछ लोग ऐसे होते है कैसे करना है
यह तो जानते है लेकिन क्या करना है यह नही जानते.....? आइए
एक छोटी सी लेकिन बड़े काम की बात से जानने की कोशिश करते है। एक पांच सितारा होटल
का सभागृह मे बिजलियां चमचमा रहीं थीं। मंच पर थे बॉलीवुड के एक मशहूर गायक और
उनका ऑर्केस्ट्रा बड़े दिल लगा कर गा रहे थे। हवाओं में संगीत लहरा रहा था। लेकिन
कुछ गड़बड़ थी।ये महफिल संगीतप्रेमियों की नहीं थी। एक दवा-कंपनी ने देशभर के अपने
मेडिकल-रिप्रेजेंटेटिव्ज को प्रेरित करने के लिए बुलाई थी। अक्सर ऐसी सेल्स
कॉन्फ्रेंस में कंपनी के उच्च पदाधिकारी सालभर हुए कामों की समीक्षा करने और निकट
भविष्य में लॉंच किए जाने वाले उत्पादों से परिचय कराते हैं। और फिर टीम को
प्रेरणास्पद प्रेजेंटेशन और फिल्में दिखाई जातीं हैं कि हिम्मत और जज्बे से बड़े-बड़े
पर्वत भी झुक जाते हैं, टीम मिल कर काम करे तो समंदर की
लहरें भी सर्मपण कर देतीं हैं। दो-दिनों की कड़ी मेहनत के बाद रात को पार्टी होती
है। किसी नामी गायक को बुलाया जाता है या फिर हास्य कलाकार को वो अपनी कला से सबका
मनोरंजन करते हैं।
साथ ही, पीछे की तरफ बार खोल दिया जाता है। किस्म-किस्म की मदिरा जो मदिरापान नहीं करते उनके लिए फलों के रस और मॉकटेल होते हैं। लोग अपने ग्लास से चुस्कियां लेते हैं और संगीत का सुरूर भी चढ़ता रहता है।ये कार्यक्रम उनकी कॉन्फ्रेंस को यादगार बना देता है। लेकिन उस दिन माजरा कुछ और ही था। मुफ्त की शराब कुछ लोगों को लालची बना देती है। ऐसे ही कुछ लोग संगीत से ज्यादा शराब में दिलचस्पी ले रहे थे। कुर्सियां खाली हो रहीं थीं। गायक महोदय इससे विचलित हुए बिना गाए जा रहे थे। जब उन्होंने देखा कि ज्यादा ही कुर्सियां खाली हो गईं हैं तो उन्होंने पंकज उधास के ऐसे तराने गाने शुरू किए जिनमें मदिरा का गुणगान किया जाता है। पीछेवाले लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। वो गीत के साथ झूमने लगे। कई लोग अपनी कुर्सियों पर लौट आए। देखते ही देखते महफिल में रंग जम गया।कार्यक्रम के बाद मैंने गायक महोदय से कहा,आज की शाम आपके लिए मुश्किल रही, कुछ लोग तो आखिर तक पीने में ही लगे रहे। वो मुस्कुराए, मुझे पहली बार मंच पर ले जाने से पहले गुरु जी ने समझाया था कि हर महफिल में 10-12% लोग ऐसे होते हैं जो तुम्हारा गाना नहीं सुनेंगे। उन पर ध्यान मत देना। जो सुननेवाले हैं उनके लिए गाओ।
अगर तुम 10% लोगों के कारण विचलित हो जाओगे तो बाकी 90% लोग जो सुनने के लिए आए हैं उनको पूरा आनंद नहीं मिलेगा। बस वही मैं करता हूं। जो कद्रदान हैं उनके लिए तो शाम यादगार रही होगी। ये सीख मुझे भी बहुत काम आई। पहले मैं भाषण देता था या ट्रेनिंग करता था तो मेरा ध्यान उन चंद लोगों पर रहता था जो आपस में बात करते थे, या अपने फोन में उलझे रहते थे। लेकिन अब मैं उन्हें देखता हूं जो एकटक हो कर मेरी बात सुनते हैं, महत्वपूर्ण विचारों को समझते हैं, मुस्कुराते हैं। देखते ही देखते उन लोगों के साथ एक रिश्ता जुड़ जाता है। इस प्रवाह में बाकी लोग भी बहने लगते हैं। इस प्रकार अपनी बाते अपने आइडिया उनसे शेयर करे जो आपको सुनते है,न की उन्हे सुनाए जो आपको नही सुनना चाहते।
साथ ही, पीछे की तरफ बार खोल दिया जाता है। किस्म-किस्म की मदिरा जो मदिरापान नहीं करते उनके लिए फलों के रस और मॉकटेल होते हैं। लोग अपने ग्लास से चुस्कियां लेते हैं और संगीत का सुरूर भी चढ़ता रहता है।ये कार्यक्रम उनकी कॉन्फ्रेंस को यादगार बना देता है। लेकिन उस दिन माजरा कुछ और ही था। मुफ्त की शराब कुछ लोगों को लालची बना देती है। ऐसे ही कुछ लोग संगीत से ज्यादा शराब में दिलचस्पी ले रहे थे। कुर्सियां खाली हो रहीं थीं। गायक महोदय इससे विचलित हुए बिना गाए जा रहे थे। जब उन्होंने देखा कि ज्यादा ही कुर्सियां खाली हो गईं हैं तो उन्होंने पंकज उधास के ऐसे तराने गाने शुरू किए जिनमें मदिरा का गुणगान किया जाता है। पीछेवाले लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। वो गीत के साथ झूमने लगे। कई लोग अपनी कुर्सियों पर लौट आए। देखते ही देखते महफिल में रंग जम गया।कार्यक्रम के बाद मैंने गायक महोदय से कहा,आज की शाम आपके लिए मुश्किल रही, कुछ लोग तो आखिर तक पीने में ही लगे रहे। वो मुस्कुराए, मुझे पहली बार मंच पर ले जाने से पहले गुरु जी ने समझाया था कि हर महफिल में 10-12% लोग ऐसे होते हैं जो तुम्हारा गाना नहीं सुनेंगे। उन पर ध्यान मत देना। जो सुननेवाले हैं उनके लिए गाओ।
अगर तुम 10% लोगों के कारण विचलित हो जाओगे तो बाकी 90% लोग जो सुनने के लिए आए हैं उनको पूरा आनंद नहीं मिलेगा। बस वही मैं करता हूं। जो कद्रदान हैं उनके लिए तो शाम यादगार रही होगी। ये सीख मुझे भी बहुत काम आई। पहले मैं भाषण देता था या ट्रेनिंग करता था तो मेरा ध्यान उन चंद लोगों पर रहता था जो आपस में बात करते थे, या अपने फोन में उलझे रहते थे। लेकिन अब मैं उन्हें देखता हूं जो एकटक हो कर मेरी बात सुनते हैं, महत्वपूर्ण विचारों को समझते हैं, मुस्कुराते हैं। देखते ही देखते उन लोगों के साथ एक रिश्ता जुड़ जाता है। इस प्रवाह में बाकी लोग भी बहने लगते हैं। इस प्रकार अपनी बाते अपने आइडिया उनसे शेयर करे जो आपको सुनते है,न की उन्हे सुनाए जो आपको नही सुनना चाहते।