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- पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा क्यू होती है खास....?
Posted by : achhiduniya
16 July 2018
श्री कृष्ण जी को भगवान विष्णु का 8वां मानवरूपी अवतार माना जाता है। पुरी में भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक भव्य मंदिर है जिसे 'जगन्नाथ मंदिर' के नाम से जाना जाता है। हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से यहाँ रथ यात्रा का प्रारम्भ होता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में निकाली जाने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा में कुल तीन रथ होते हैं। एक भगवान जगन्नाथ (कृष्ण जी) का, एक जगन्नाथ के भाई बलराम का और तीसरा बहन सुभद्रा का रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम का रथ होता है। हर रथ की महत्वता को समझते हुए उसे एक अलग रंग और सजावट दी जाती है। बलराम का रथ 44 फीट ऊंचा होता है और इसे नीले रंग से सजाया जाता है। देवी सुभद्रा के रथ की ऊंचाई 43 फीट होती है। इस रथ को विशेषतः काले रंग की वस्तुओं का प्रयोग करके सजाया जाता है। यात्रा में बलराम के रथ के बाद सुभद्रा देवी का रथ होता है। इसके बाद आता है भगवान जगन्नाथ का रथ। जिसे यात्रा के दौरान हमेशा आखिर में रखा जाता अहिया। इस रथ की ऊंचाई 45 फीट की होती है और रथ को पीले रंग की सजावट दी जाती है। यात्रा के अलावा इस मंदिर के भी कई ऐसे रहस्य हैं जो हैरान कर देने वाले हैं।
मंदिर के गुंबद पर लगा ध्वज रहस्यमयी है। यह हमेशा हवा से विपरीत दिशा में लहराता हैइसके अलावा मंदिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र को आप किसी भी दिशा से देखें, यह आपको देखने पर बिलकुल सामने से ही दिखेगा। मंदिर के ऊपर कभी भी किसी पक्षी को उड़ते हुए नहीं देखा जाता है। इसके अलावा दिन के समय तेज धूप में भी मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया अदृश्य ही रहती है। जगन्नाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक धाम है। हर साल लाखों लोग मंदिर में दर्शन करने आते हैं। यह हिन्दुओं के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। रथ में संबंधित देवी-देवता से जुड़ी मूर्ति होती है,लेकिन यह कोई ऐसी-वैसी मूर्ति नहीं होती। दुनिया भर में दिखने वाली मूर्तियों से काफी अलग होती हैं ये मूर्तियां और इन्हें बनाने का तरीका भी अलग होता है।
भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों को एक खास प्रकार की लकड़ी से बनाया जाता है। देशभर के मंदिरों में देखी जाने वाली मूर्तियों संगमरमर से बनी होती हैं, लेकिन पुरी के जगन्नाथ की मूर्ति एक खास प्रकार की लकड़ी से बनायी जाती है। कहते हैं कि भगवान विष्णु के आदेश से ही इन मूर्तियों को लकड़ी के प्रयोग से बनाया गया। उन्होंने ही समुद्र किनारे से मिलने वाली इस लकड़ी का संकेत दिया था। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आरम्भ होने के सात दिन के बाद इसकी वापसी होती है। यात्रा के दौरान तीनों रथों को बड़ी-बड़ी रस्सियों से खींचा जाता है। रथ यात्रा के सात दिन बाद जब जगन्नाथ वापिस लौटते हैं तो इस भव्य यात्रा को उनके जन्मभूमि में वापसी की यात्रा माना जाता है।