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- क्या है पितृ पक्ष की कथा श्राद्ध क्यू जरूरी......?
Posted by : achhiduniya
25 September 2018
हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है। मान्यता है कि अगर श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। वहीं कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं। इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी हो जाती है। पितृ पक्ष की पौराणिक कथा के अनुसार जोगे और भोगे नाम के दो भाई थे।
दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे अमीर था और भोगे गरीब। दोनों भाइयों में तो प्रेम था,लेकिन जोगे की पत्नी को धन का बहुत अभिमान था। वहीं भोगे की पत्नी बड़ी सरल और सहृदय थी। पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे उसे बेकार की बात समझकर टालने की कोशिश करने लगा। पत्नी को लगता था कि अगर श्राद्ध नहीं किया गया तो लोग बातें बनाएंगे। उसने सोचा कि अपने मायके के लोगों को दावत पर बुलाने और लोगों को शान दिखाने का यह सही अवसर है। फिर उसने जोगे से कहा, आप ऐसा शायद मेरी परेशानी की वजह से बोल रहे हैं।
मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी और हम दोनों मिलकर सारा काप निपटा लेंगे। इसके बाद उसने जोगे को अपने मायके न्यौता देने के लिए भेज दिया। अगले दिन भोगे की पत्नी ने जोगे के घर जाकर सारा काम किया। रसोई तैयार करके कई पकवान बनाए। काम निपटाने के बाद वह अपने घर आ गई। उसे भी पितरों का तर्पण करना था। दोपहर को पितर भूमि पर उतरे। पहले वह जोगे के घर गए। वहां उन्होंने देखा कि जोगे के ससुराल वाले भोजन करने में जुटे हुए हैं। बड़े दुखी होकर फिर वो भोगे के घर गए। वहां पितरों के नाम पर अगियारी दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे। थोड़ी ही देर में सारे पितर इकट्ठा हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने आप बीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे कि अगर भोगे सामर्थ्यवान होता तो उन्हें भूखा न रहना पड़ता।
भोगे के घर पर दो जून की रोटी भी नहीं थी। यही सब सोचकर पितरों को उन पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाच कर कहने लगे- भोगे के घर धन हो जाए, भोगे के घर धन हो जाए। शाम हो गई। भोगे के बच्चों को भी खाने के लिए कुछ नहीं मिला था। बच्चों ने मां से कहा कि भूख लगी है। मां ने बच्चों को टालने के लिए कहा, जाओ! आंगन में आंच पर बर्तन रखा है। उसे खोल लो और जो कुछ मिले बांटकर खा लेना। बच्चे वहां गए तो देखते हैं कि बर्तन मोहरों से भरा पड़ा है। उन्होंने मां के पास जाकर सारी बात बताई। आंगन में आकर जब भोगे की पत्नी ने यह सब देखा तो वह हैरान रह गई।
इस तरह भोगे अमीर हो गया, लेकिन उसने घमंड नहीं किया। अगले साल फिर पितर पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की पत्नी ने छप्पन भोग तैयार किया। ब्राहम्णों को बुलाकर श्राद्ध किया, भोजन कराया और दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने के बर्तनों में भोजन कराया। यह सब देख पितर बड़े प्रसन्न और तृप्त हो गए।