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- अच्छे –बुरे कर्मो का फल जरूर मिलता है.....
Posted by : achhiduniya
24 December 2018
एक सेठ के घर एक भिखारी रोज
एक दरवाजें पर रोज जाता और भिख के लिए आवाज लगाता और जब घर
मालिक बाहर आता तो उसे गंदी गंदी गालिया और ताने देता, मर जाओ, काम क्यूं नही
करतें, जीवन भर भीख मांगतें रहोगे, कभी-कभी गुस्सें
में उसे धकेल भी देता पर भिखारी बस
इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें, एक दिन सेठ बड़े गुस्सें में था, व्यापार में घाटा हुआ था, वो भिखारी उसी वक्त भीख मांगने आ गया, सेठ ने आओ देखा ना ताओ, सीधा उसे पत्थर से दे मारा, भिखारी के सर से खून बहने लगा, फिर भी उसने सेठ से कहा ईश्वर तुम्हारें पापों को
क्षमा करें और वहां से जाने लगा, सेठ का थोड़ा गुस्सा कम हुआ, तो वहां सोचने लगा मैंने उसे पत्थर से भी मारा पर
उसने बस दुआ दी, इसके पीछे क्या रहस्य है जानना पड़ेगा, और वहां भिखारी के पीछे चलने लगा।
भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे जाता, कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जलिल करता गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें। अब अंधेरा हो चला था। भिखारी अपने घर लौट रहा था, सेठ भी उसके पीछे था। भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा, एक टूटी फूटी खाट पे एक बुढिया सोई थी। जो भिखारी की पत्नी थी, जैसे ही उसने अपने पति को देखा उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी। उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी। उसे देखते ही बुढिया बोली बस इतना ही और कुछ नही, और ये आपका सर कहा फूट गया? भिखारी बोला, हाँ बस इतना ही किसी ने कुछ नही दिया सबने गालिया दी, पत्थर मारें, इसलिए ये सर फूट गया। भिखारी ने फिर कहा सब अपने ही पापों का परिणाम हैं, याद है ना तुम्हें, कुछ वर्षो पहले हम कितने रईस हुआ करते थे। क्या नही था हमारे पास, पर हमने कभी दान नही किया, याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी, बुढिया की ऑखों में ऑसू आ गये और उसने कहा हाँ,कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उडाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जालिल करते थे, कैसे हम उसे कभी-कभी मार वा धकेल देते थे।
अब बुढिया ने कहा हाँ सब याद है मुझे, कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाई और घर के बनें नालें में गिरा दिया था। जब भी वहाँ रोटिया मांगता मैंने बस उसे गालियाँ दी, एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर करेंगे, मैं नही, आज उस भिखारी की बद्दुआ और हाय हमें ले डूबी। फिर भिखारी ने कहा, पर मैं किसी को बद्दुआ नही देता, चाहे मेरे साथ कितनी भी जात्ती क्यू ना हो जाए। मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती हैं, मैं अब नही चाहता की कोई और इतने बुरे दिन देखे। मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूं, क्यूकि उनको मालूम ही नही। वो क्या पाप कर रहें है, जो सीधा ईश्वर देख रहा हैं, जैसी हमने भुगती है, कोई और ना भुगते, इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती हैं। सेठ चुपके-चुपके सब सुन रहा था। उसे अब सारी बात समझ आ गयी थी।
बुढे-बुढिया ने आधी रोटी को दोनो मिलकर खाया, और प्रभु की महिमा है बोल कर सो गयें। अगले दिन, वहाँ भिखारी भिख मांगने सेठ के यहाँ गया, सेठ ने पहले से ही रोटिया निकल के रखी थी। उसने भिखारी को दी और हल्की से मुस्कान भरे स्वर में कहा, माफ करना बाबा, गलती हो गयी, भिखारी ने कहा, ईश्वर तुम्हारा भला करे, और वो वहाँ से चला गया। सेठ को एक बात समझ आ गयी थी, इंसान तो बस दुआ-बद्दुआ देते है पर पूरी वो ईश्वर वो जादूगर कर्मो के हिसाब से करता हैं। हो सके तो बस अच्छा करें, वो दिखता नही है तो क्या हुआ, सब का हिसाब पक्का रहता है उसके पास।
भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे जाता, कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जलिल करता गालियाँ देता, पर भिखारी इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें। अब अंधेरा हो चला था। भिखारी अपने घर लौट रहा था, सेठ भी उसके पीछे था। भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा, एक टूटी फूटी खाट पे एक बुढिया सोई थी। जो भिखारी की पत्नी थी, जैसे ही उसने अपने पति को देखा उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी। उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी। उसे देखते ही बुढिया बोली बस इतना ही और कुछ नही, और ये आपका सर कहा फूट गया? भिखारी बोला, हाँ बस इतना ही किसी ने कुछ नही दिया सबने गालिया दी, पत्थर मारें, इसलिए ये सर फूट गया। भिखारी ने फिर कहा सब अपने ही पापों का परिणाम हैं, याद है ना तुम्हें, कुछ वर्षो पहले हम कितने रईस हुआ करते थे। क्या नही था हमारे पास, पर हमने कभी दान नही किया, याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी, बुढिया की ऑखों में ऑसू आ गये और उसने कहा हाँ,कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उडाते थे, कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जालिल करते थे, कैसे हम उसे कभी-कभी मार वा धकेल देते थे।
अब बुढिया ने कहा हाँ सब याद है मुझे, कैसे मैंने भी उसे राह नही दिखाई और घर के बनें नालें में गिरा दिया था। जब भी वहाँ रोटिया मांगता मैंने बस उसे गालियाँ दी, एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था, तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर करेंगे, मैं नही, आज उस भिखारी की बद्दुआ और हाय हमें ले डूबी। फिर भिखारी ने कहा, पर मैं किसी को बद्दुआ नही देता, चाहे मेरे साथ कितनी भी जात्ती क्यू ना हो जाए। मेरे लब पर हमेशा दुआ रहती हैं, मैं अब नही चाहता की कोई और इतने बुरे दिन देखे। मेरे साथ अन्याय करने वालों को भी मैं दुआ देता हूं, क्यूकि उनको मालूम ही नही। वो क्या पाप कर रहें है, जो सीधा ईश्वर देख रहा हैं, जैसी हमने भुगती है, कोई और ना भुगते, इसलिए मेरे दिल से बस अपना हाल देख दुआ ही निकलती हैं। सेठ चुपके-चुपके सब सुन रहा था। उसे अब सारी बात समझ आ गयी थी।
बुढे-बुढिया ने आधी रोटी को दोनो मिलकर खाया, और प्रभु की महिमा है बोल कर सो गयें। अगले दिन, वहाँ भिखारी भिख मांगने सेठ के यहाँ गया, सेठ ने पहले से ही रोटिया निकल के रखी थी। उसने भिखारी को दी और हल्की से मुस्कान भरे स्वर में कहा, माफ करना बाबा, गलती हो गयी, भिखारी ने कहा, ईश्वर तुम्हारा भला करे, और वो वहाँ से चला गया। सेठ को एक बात समझ आ गयी थी, इंसान तो बस दुआ-बद्दुआ देते है पर पूरी वो ईश्वर वो जादूगर कर्मो के हिसाब से करता हैं। हो सके तो बस अच्छा करें, वो दिखता नही है तो क्या हुआ, सब का हिसाब पक्का रहता है उसके पास।



