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- ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का इस्लाम धर्म में क्यू है इतना अधिक महत्व....?
Posted by : achhiduniya
29 October 2020
हर धर्म की अपनी एक परंपरा धार्मिक महत्व उसकी
नीव होता है जिससे उस धर्म समुदाय के लोग बड़ी शिद्दत से मानते है। हिन्दू धर्म के
दशहरे-दिवाली जैसे ही ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को दुनिया भर के मुसलमान बेहद खुशी के साथ
मनाते हैं। इस दिन रात भर इबादत, दुआओं का सिलसिला जारी रहता है
और जुलूस निकाले जाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल
की 12वीं तारीख, 571 ईं. के दिन पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब का जन्म
हुआ था। इस्लाम के आखिरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद का पूरा नाम पैगंबर हज़रत मुहम्मद
सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम था। मक्का शहर में उनका जन्म हुआ था। हजरत मुहम्मद साहब
ने 25 साल की उम्र में खदीजा नाम की एक विधवा महिला से विवाह किया था। उनके कई
बच्चे हुए,
जिनमें बेटों की मृत्यु हो गई। उनकी बेटी बीबी
फ़ातिमा का निकाह हज़रत अली से हुआ था। मान्यता है कि 610 ईसवीं में मक्का के पास
हिरा नामक गुफा में हज़रत मुहम्मद को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद पैगंबरे-इस्लाम
ने दुनिया को इस्लाम धर्म की पवित्र किताब क़ुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया।
हज़रत मुहम्मद साहब ने तालीम पर जोर दिया और सबके साथ समानता का व्यवहार करने पर
बल दिया। पैगंबरे-इस्लाम की पैदाइश के इस दिन को लोग बेहद खुशी से मनाते आ रहे
हैं। इस दिन घरों और मस्जिदों में रोशनी की जाती है, उन्हें
सजाया जाता है। लोग रात भर मस्जिद में इबादत करते हैं, क़ुरान की तिलावत करते हैं। लोगों को मिठाइयां बांटते हैं और
गरीबों को दान देते हैं। इस साल ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 30 अक्टूबर को मनाई जाएगी।