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- गर्म तवे पर बैठकर भी “तेरा भाणा मीठा लागे” कहने वाले श्री गुरु अर्जुन देव शहादत दिवस विशेष...
Posted by : achhiduniya
02 June 2022
श्री गुरु अर्जुन देव का पूरा जीवन मानव सेवा को
समर्पित रहा है। वे दया और करुणा के सागर थे। वे समाज के हर समुदाय और वर्ग को
समान भाव से देखते थे। गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल साल 1563 में हुआ था। वे गुरु रामदास
और माता बीवी भानी के पुत्र थे। उनके पिता गुरु रामदास स्वयं सिखों के चौथे गुरु
थे, जबकि उनके नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे। गुरु
अर्जुन देव जी का बचपन गुरु अमरदास की देखरेख में बीता था। उन्होंने ही अर्जुन देव
जी को गुरमुखी की शिक्षा दी। साल 1579 में
उनका विवाह माता गंगा जी के साथ हुआ था। दोनों का एक पुत्र हुआ, जिनका नाम हरगोविंद सिंह था, जो बाद
में सिखों के छठवें गुरु बने। वर्ष
1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने। उन्होंने ही
अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इस
गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं अर्जुन देव जी ने ही बनाया था। मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद अक्तूबर, 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। साम्राज्य
संभालते ही गुरु अर्जुन देव के विरोधी सक्रिय हो गए और वे जहांगीर को उनके खिलाफ
भड़काने लगे। उसी बीच, शहजादा खुसरो ने अपने पिता
जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी। तब जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया, तो वह भागकर पंजाब चला गया। खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास
पहुंचा। तब गुरु अर्जन देव जी ने उसका स्वागत किया और उसे अपने यहां पनाह दी। इस बात की जानकारी जब जहांगीर को हुई तो वह
अर्जुन देव पर भड़क गया। उसने अर्जुन देव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उधर गुरु
अर्जुन देव बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंपकर स्वयं लाहौर पहुंच गए। उन पर
मुगल बादशाह जहांगीर से बगावत करने का आरोप लगा। जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी को
यातना देकर मारने का आदेश दिया। मुगल शासक जहांगीर के आदेश के
मुताबिक, गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा। अंत में ज्येष्ठ मास के
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन्
1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया। उनके ऊपर गर्म
रेत और तेल डाला गया। यातना के कारण जब वे
मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया।
उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है।
उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ
साहिब का संपादन भाई गुरदास के सहयोग से किया था। उन्होंने रागों के आधार पर गुरु
वाणियों का वर्गीकरण भी किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्वयं गुरु अर्जुन देव के
हजारों शब्द हैं। उनके अलावा इस पवित्र ग्रंथ में भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत नामदेव, संत रविदास जैसे अन्य संत-महात्माओं के भी शब्द हैं।
{ श्री माधवदास ममतानी संयोजक श्री कलगीधर सत्संग मंडल जरिपटका नागपुर महाराष्ट्र }